नवादा : बिहार में जुगाड़ तकनीक से लोगों की जान सांसत में है। जुगाड़ तकनीक की रानी झरझरी तो अब हमारे पिछड़े राज्य की पहचान बन चली है। नवादा के पकरीबरांवा प्रखंड क्षेत्र के स्टैंड से दर्जनों गांवों के लिए जुगाड़ वाहन झरझरी रोजाना लोगों को गंतव्य तक पहुंचा रहे हैंं। नवादा ही नहीं, समूचे बिहार के ग्रामीण इलाकों के साथ ही, पटना के व्यवसायिक मंडियों में भी ऐसे वाहनों का धड़ल्ले से उपयोग किया जाता है। आइए हम झरझरी पर एक नजर डालते हैं।
कैसे तैयार होता है झरझरी वाहन
यह वह वाहन है जिसमें कबाड़खाने का चदरा, पम्पसेट का इंजन, बेकार पड़े सवारी वाहनों की बॉडी आदि का इस्तेमाल कर उसे एक कामचलाऊ वाहन का रूप दे दिया जाता है। इसपर दो दर्जन से भी अधिक सवारी लेकर गन्तव्य तक आसानी से ढोया जा सकता है। इस वाहन का इंजन भी पूरी तरह से खुला होता है। झरझरी की एक पहचान काफी मात्रा में काला धुंआ देने वाली जुगाड़ गाड़ के तौर पर है। किसी-किसी वाहन से निकलने वाला धुंआ इतना काला रहता है कि पीछे वाले वाहन को कुछ दिखता ही नहीं है। जिसके कारण पीछे वाले वाहन के हमेशा दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना बनी रहती है।
इस वाहन का कोई मालिक नहीं, बल्कि स्वयं चालक ही मालिक होता है। मालिक होने के कारण वे अपने वाहन पर अधिक से अधिक सवारी बैठाते हैं। हद तो तब हो जाती है जब चालक जुगाड़ वाहन के साथ-साथ खुले इंजन के बगल में भी सवारी बैठा देता है। अगर जरा सा भी इधर किया तो आप सीधे-सीधे इंजन में चले जाऐंगे। फिर आपका बचना मुश्किल है। अगर वाहन पलट भी गया तो एक बड़े हादसे को कोई नहीं रोक सकता।
झरझरी वाहन से जान तो जोखिम में रहता ही है, सरकार को भी राजस्व का चूना लग रहा है।
एक तरफ सरकार परिवहन संचालन के नए-नए नियम बना रही है तो दूसरी ओर सरकार के ही कर्मी झरझरी जैसे जोखिम से आंख मूंदकर नियमों को लागू करने में शिथिलता बरत रहे हैं। जानकर बताते हैं कि वैसे वाहनों से स्थानीय प्रशासन शुभ-लाभ कमा रही है। इसका जीता-जागता उदाहरण पकरीबरांवा प्रखंड कार्यालय के गेट के समीप बने इस अवैध वाहन के स्टैंड से हो जाता है। इस अवैध स्टैंड के कारण सरकार को राजस्व का तो चूना लग ही रहा है, वहीं नवादा-जमुई पथ पर जाम की समस्या भी उत्पन्न हो रही है। इस बाबत सीओ शुक्रान्त राहुल पूछने पर कुछ भी बताने से इनकार करते हैं।
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