जज साहब के बहाने नीतीश ने कैसे चला कुशवाहा कार्ड? भाजपा क्यों हुई बेचैन?
पटना : पिछड़ा वर्ग आयोग के माध्यम से नीतीश कुमार ने कुशवाहा कार्ड खेलने का प्रयास किया है। चुपचाप चले गए इस दांव के निशाने पर पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा हैं। वर्ष 2019 का उत्सव अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि नीतीश कुमार ने अचानक 3 जनवरी को यह राजनीतिक दांव चल दिया। वर्ष 2018 के अंतिम दिन, यानी 31 दिसंबर को पटना हाईकोर्ट के जज संजय कुमार ने अवकाश ग्रहण किया। वे कुशवाहा जाति से आते हैं। उनके अवकाश ग्रहण करने के साथ ही नीतीश कुमार ने उन्हें राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बना दिया। नीतीश सरकार के इस फैसले को ‘लव-कुश’ समीकरण को मजबूत बनाने की दिशा में एक सोची समझी रणनीति माना जा रहा है। संजय कुमार मुजफ्फरपुर जिले के सकरा के रहने वाले हैं। वे कद्दावर समाजवादी नेता मंजय लाल के रिश्तेदार बताए जाते हैं। उनके पिता सत्यनारायण प्रसाद की कुशवाहा बिरादरी में अच्छी पैठ है। उपेद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार पर व्यक्तिगत हमला बोलते हुए एनडीए को छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया। तब नीतीश के कथित बयान को अस्त्र बनाते हुए उपेन्द्र कुशवाहा ने उन्हें कुशवाहा जाति का अपमान करने वाला बताया था। सुशासन के चेहरे के बावजूद नीतीश कुमार का आधार वोट ‘लव-कुश’ समीकरण ही है। परेशान नीतीश कुमार को उनके सलाहकारों ने अवकाश ग्रहण कर रहे उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजय कुमार को अत्यंत पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाने की सलाह दी। फिर क्या था, अवकाश ग्रहण करने के दो दिन बाद ही संजय कुमार को अध्यक्ष मनोनीत करने का आदेश जारी हो गया। नीतीश के इस निर्णय को राजनीतिक विश्लेषक लालू प्रसाद के जातीय समीकरण को साधने की शैली से जोड़कर देख रहे हैं। लालू प्रसाद ने भी कुशवाहा वोटरों को लुभाने के लिए अवकाश प्राप्त न्यायाधीश धर्मपाल सिंह को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष मनोनीत कर दिया था। अभी तक बिहार में आयोग और बोर्ड के सभी पद खााली पड़े हैं। भाजपा के प्रयास के बावजूद इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। भाजपा के कई समर्पित कार्यकर्ता इस कारण मायूस भी हैं। नीतीश सरकार के इस कदम को लेकर भाजपा में भी खलबली मच गयी है। नीतीश कुमार बोर्ड, आयोग के पदों पर बहाली अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए कर रहे हैं।
रमाशंकर
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रिपोर्ट में किसी भाजपा नेता का कमेंट हो सकता था।