जनाधार के अभाव में बैकफुट पर कांग्रेस, महागठबंधन में संशय बरकरार

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पटना : महागठबंधन में आपसी कलह लगातार सुर्खियों में है। बिहार में महागठबंधन के घटक दलों में शुरुआती दौर से ही कोई सामंजस्य बनता नहीं दिख रहा। मंचों पर एकता दिखाने वाली तमाम पार्टियां अब व्यवहारिक पटल पर भरभरा कर गिर गई हैं।

दरअसल, बिहार में 40 लोकसभा सीटों के लिए राजद, कांग्रेस, रालोसपा, हम, वीआईपी और भाकपा माले एकसाथ महागठबंधन के तमगे से मैदान में होगी। लंबे समय से घटक दलों में चालीस लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर तो कभी उम्मीदवारों के नाम को लेकर विवाद पनपता आया है। इस विवाद में हालांकि क्षेत्रीय दलों को खासकर जो नई पार्टियां बनी हैं, उन्हें ही फायदा होता दिख रहा है। महागठबंधन में राजद बिहार में सबसे बड़ी यादव और मुस्लिम वोटों के जनाधार वाली पार्टी है। शायद इसी जनाधार के बलबूते, राजद राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस पर भी दबाव बनाने से नहीं चूक रही। फिर चाहे वो बात कांग्रेस को मात्र 9 सीटों पर उतरने की हिदायत से हो या फिर सुपौल और दरभंगा जैसे सीटों पर मनपसंद उम्मीदवार नहीं उतारे जाने का दबाव हो।

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क्या है कांग्रेस की मजबूरी ?

कांग्रेस की तरफ से कई बार सीट बंटवारे के दौरान नाराज़गी का मामला उभर कर सामने आया है। शुक्रवार को जब महागठबंधन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीटों का ऐलान किया, तब भी कांग्रेस के किसी भी शीर्ष नेता की गैरमौजूदगी इस बात को और पुख़्ता करने का एक इशारा सा है। बहरहाल, कांग्रेस भी इस महागठबंधन में राजद के कैडर वोट को अपने पाले सुनिश्चित करने में लिए लगी हुई थी। कांग्रेस का लालच यादव और मुस्लिम वोटों को पा बिहार में ज़मीन तैयार करने का था, जो शायद पूरा होता नहीं दिख रहा। सूत्रों के अनुसार यह भी खबरें लगातार आ रही है कि राजद के ज़िद को वजह से कांग्रेस कई बार अकेले आने का मन बना रही है। या यह भी विकल्प हो सकता है कि कुछ सीटों पर कांग्रेस महागठबंधन के प्रत्याशी के विरुद्ध भी उम्मीदवार उतार दे।

कई सीटों पर फंसे दांवपेंच में हालांकि एक सकारात्मक बात जो कांग्रेस के पक्ष में रही। सुपौल लोकसभा सीट पर राजद पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन को टिकट दिए जाने पर सहमत जरूर हो गई है। पर दरभंगा की सीट सिटिंग एमपी कीर्ति आजाद के पीला से छूटकर राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी के खाते में जा गिरी है।

चुनाव का पहला चरण 11 अप्रैल से है। ऐसे में चुनाव से पहले अगर महागठबंधन के अंदर ये जिच बरकरार रहा तो एनडीए को कड़ी टक्कर देने का समीकरण ठंडे बस्ते में जाता दीख सकता है।

सत्यम दुबे

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