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झारखंड नतीजों के बाद बिहार में सियासी बवंडर! तब्दीली की बहने लगी बयार

पटना : झारखंड चुनाव परिणाम के बाद बिहार की राजनीतिक फिजा मेंं अप्रत्याशित बदलाव के संकेत मिलने लगें हैं। महागठबंधन सहित एनडीए इस प्रत्याशा में है कि पड़ोसी राज्य में संभावित राजनीतिक करवट के साथ यहां भी बदलाव हो जाए।

लालू रिम्स से ही नजर गड़ाए हैं झारखंड के पैंतरे पर

इस संबंध में राजद के सूत्रों ने बताया कि झारखंड चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे जदयू के कई विधायक उनके आकाओं के सम्पर्क में है। राजनीति के धुरंधर लालू प्रसाद यादव सीबीआई की ज्यूडिशियल कस्टडी में जाने के बाद बारीकी से झारखंड चुनाव पर नजर गड़ाए हुए हैं।

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जगदानन्द के यहां सजने लगा नेताओं का दरबार

उनके इशारे पर प्रदेश अध्यक्ष के बदले जाने के बाद बिहार की राजनीतिक स्थितियां कितनी बदली, ये फिलहाल तो नहीं कहा जा सकता, पर भाजपा की ओर तेजी से भाग रहे अगड़ों की एक जाति राजपूत जगदानन्द सिंह का मुंह जरूर ताकने लगी है। उनके अध्यक्ष बनते ही सबसे अधिक दरबार उनके पास ही लगने लगी है। वे पार्टी को दिशा निर्देश भी देने लगे हैं। कई बातों पर उनकी मंत्रणा लालू प्रसाद अथवा उनके बेटों से नहीं भी हो रही है।

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जदयू भी अपना दांव खेलने की जुगत में

विदित हो कि बिहार में संख्या बल के हिसाब से सबसे बड़ी पार्टी राजद का आंकड़ा 72 है। जबकि सत्ता के शीर्ष पर बैठने वाली पार्टी जदयू 70 तथा भाजपा 54 के आंकड़े पर है। सूत्रोंं ने बताया कि पड़ोसी राज्य के चुनाव परिणाम के बाद यह रणनीति भी बन सकती है कि भाजपा को कैसे घेरा जाए। ऐसे में भाजपा ने झारखंड में बिहार की राजनीतिक हस्तियों को चुनाव में उतारते हुए बिहार में रणनीति बनाने की भी जिम्मेवारी दे दी है।

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भाजपा को बिहार में घेरने की कवायद

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिलहाल यात्रा पर हैं। यात्रा करना तो उनके शगल में है। पर, चुनाव के ठीक पहले उनकी यात्रा मैराथन हो जाती है। यात्रा के क्रम में ही विकासात्मक परियोजनाओं का शिलान्यास उनकी दिनचर्या हो जाती है। अभी हाल ही में वे चम्पारण गये थे और अभी चम्पारण में ही हैं।

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प्रेक्षकों का कहना है कि यात्रा के बहाने वे जनता की नब्ज टटोलते हें। हालांकि कांग्रेस का गढ़ रहे चम्पारण में फिलहाल भगवा रंग परवान पर है। चम्पारण के वाल्मीकिनगर में नीतीश कुमार की अच्छी पकड़ मानी जाती है। कारण- उन्होंने थारू जनजाति के विकास के लिए एक अलग कमिटी ही बना दी थी। दूसरे कभी बल्ब नहीं देखने वाली पहाड़ी जनजातियों को उन्होंने सड़क, बिजली तथा अन्य विकासात्मक योजनाओं से नहला-सा दिया है। नतीजा भी सामने आया कि आउटडेटेड मान लिए गये वै़द्यनाथ महतो कुशवाहा को नीतीश के ही नाम पर जीत दर्ज करवा संसद में भेज दिया।