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झारखंड के इस गांव में रहते हैं एक ही खनदान के लोग

रांची : झारखंड के कोडरमा में बसे नादकरी गांव सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हो रही है। पूरा गांव एक ही खानदान के लोगों से बना है। गांव के दो टोलो में एक ही परिवार के लोग रहते हैं। गांव में बुनियादी सुविधाएं तो काफी न्यून हैं, लेकिन जो है भी उसे इसी परिवार के लोग संचालित करते हैं। यानी ग्राहक भी परिवार का और सेवा प्रदाता भी परिवार का। लेकिन सबकुछ काफी प्रोफेशनल अंदाज में किया जाता है। यही कारण है कि यह गांव अपने वजूद से लेकर अभी तक बरकरार है और आगे भी बढ़ रहा है।

कोडरमा के नादकरी गांव की दास्तां

जानकारी के अनुसार नादकरी गांव कोडरमा जिला के मरकच्चो प्रखंड में स्थित है। इस गांव में दो टोला है, ऊपर टोला और नीचे टोला। दोनों टोलों को मिला कर करीब 1300 लोग इस गांव में रहते हैं, और ये सभी एक ही खानदान के हैं। गांववालों से मिली जानकारी के अनुसार साल 1905 में झारखंड के ही गिरिडीह जिला के रेम्बा से इनके पूर्वज उत्तीम मियां यहां आये थे। उस वक्त इस जगह पर जंगल हुआ करता था। उन लोगों ने जंगल साफ कर यहां खेती-बाड़ी शुरू की।धीरे—धीरे जीवन यापन सुचारू होने लगा।

1905 में एक व्यक्ति ने बसा दिया गांव

उत्तीम मियां के परपोते मतीन अंसारी ने बताया कि उनके परदादा उत्तीम मियां के पांच बेटे थे। उन पांचों के मिलाकर कुल 26 बेटे हुए और उन छब्बीसों के 100-125 हुए और अभी वर्तमान में खानदान इतना बड़ा हो चुका है कि गिनती के आंकड़े भी गड़बड़ा जाते हैं। नादकरी गांव की खास बात यह है कि यहां इतना बड़ा परिवार होने के बावजूद लोगों में आपस में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती। सब मिलजुल कर रहते हैं। यदि कोई विवाद होता भी है तो गांव के बुजूर्ग का निर्णय सभी को मान्य होता है। खास अवसरों पर तो गांव का माहौल और भी निराला हो उठता है। गांव के दो-दो टोला में एक ही खानदान के लोगों के होने से छोटे से छोटे अवसर पर भी यहां मेले जैसा दृश्य बन जाता है। सभी लोग एकत्रित होकर किसी भी अवसर या पर्व को इकट्ठा मनाते हैं।

बुनियादी सुविधाओं की कमी का दंश

गांव के एक अन्य बुजुर्ग सहजाद बताते हैं कि जब से नादकरी गांव बना है तब से आज तक कभी पक्का सड़क इस गांव में नहीं बना। किसी के बीमार पड़ने पर कच्चे और गड्ढे वाले रास्ते से ही इलाज के लिए ले जाने को मजबूर होते हैं। बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी इस गांव में है। जो भी व्यवस्था है, उसे गांववाले मिलजुलकर ही पूरा करते हैं। हालांकि अब सरकार ने भी गांव की सुध लेनी शुरू की है। लेकिन अभी कार्रवाई के स्तर पर धरातल पर कुछ खास पहल होनी बाकी है।