जदयू को भाजपा की दो टूक है सोची समझी रणनीति का हिस्सा

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जदयू को सांकेतिक जवाब देने के लिए बुलाई गई थी प्रेसवार्ता! राजद नेताओं की जदयू में एंट्री को लेकर क्यों खफा है भाजपा, एनडीए की विश्वसनीयता को खतरे में नहीं डालना चाहती भाजपा, यादव नेताओं के लिए भाजपा बन सकती है विकल्प!

21 अगस्त को बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल प्रदेश कार्यालय में बिहार प्रदेश कार्यसमिति के बारे में जानकारी देने के लिए प्रेसवार्ता कर रहे थे। इस दौरान उन्होनें एक बयान दिया, जिसकी चर्चा उस दिन से जारी है। दरअसल, डॉ जायसवाल ने कहा था कि भाजपा उन सीटों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगी, जहां उसके उम्मीदवार 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद से हारे थे। जायसवाल कहते हैं कि 2015 के चुनाव में भले ही हम हार गए, लेकिन जो हमारी परंपरागत सीटें हैं और जहां हम राजद से हारे हैं, उन सीटों को भाजपा नहीं छोड़ने वाली है। 2020 के चुनाव में भाजपा परंपरागत सीटों को लेकर कोई समझौता नहीं करेगी। भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को ही चुनाव लड़ाएगी।

जायसवाल के इस बयान को पार्टी की चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि हाल ही में राजद छोड़कर 6 विधायक जदयू में शामिल हुए हैं तथा सभी टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। नीतीश कुमार की भी यही प्लानिंग थी कि जो विधायक राजद और कांग्रेस छोड़कर जदयू में शामिल होंगे। उनके लिए एनडीए के सहयोगी दलों पर दवाब बनाकर टिकट कन्फर्म करेंगे। लेकिन, ऐन वक्त पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने बयान देकर सहयोगी दल को एक अलग संदेश दे दिया।

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जदयू को सांकेतिक जवाब देने के लिए बुलाई गई थी प्रेसवार्ता!

जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार को परिवारवाद तथा दलबदल नीति को बढ़ावा देने से रोकने के लिए जिम्मेदार नेता के बयान की जरूरत थी, ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने इस काम के लिए अपने प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल को आगे किया। ताकि जो नेता दल बदलकर एनडीए के सहयोग से चुनाव लड़ने की सोच रहे थे, उनको एक कड़ा संदेश दिया जाए। इसलिए सोची समझी रणनीति के तहत 21 अगस्त को प्रेसवार्ता बुलाई गई थी।

जो लोग बिहार की राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए हैं उनका मानना है कि इस बार भाजपा किसी भी हाल में सबसे बड़ी पार्टी बनना चाहती है। अगर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनती है तो लोजपा का ज्यादा रुझान भाजपा की तरफ होना स्वाभाविक है। ऐसे में नीतीश कुमार भी यह बात भली-भांति समझ रहे हैं कि अगर जदयू ज्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी तो पार्टी को नुकसान हो सकता है। इसलिए नीतीश कुमार सहयोगी दलों पर दवाब बनाने के लिए पार्टी तथा अन्य पार्टी के नेताओं को जदयू में टिकट देने के आश्वासन के बाद शामिल करा रहे हैं।

लेकिन, भाजपा के लिए मार्गदर्शक का काम करने वाले विचार परिवार का थिंक-टैंक इस बात को समझ गया कि नीतीश कुमार का यह कदम भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकती है। इसलिए विचार परिवार के निर्देश के बाद भाजपा आलाकमान ने इस गतिविधि को गंभीरता से लेते हुए डॉ संजय जायसवाल से जदयू को सांकेतिक जवाब दिलवा दिया है।

सूत्रों की मानें तो 25 अगस्त से लेकर 30 अगस्त तक बिहार में भाजपा के कद्दावर नेताओं का दौरा होने वाला है। इसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, संगठन महामंत्री बी एल संतोष, सह संगठन महामंत्री सौदान सिंह, बिहार चुनाव प्रभारी देवेंद्र फडणवीस तथा बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव मौजूद रहेंगे। इस दौरान पार्टी आगे की रणनीति को अंतिम रूप देगी तथा बैठक का एक महत्वपूर्ण मकसद यह है कि जदयू को सांकेतिक नहीं साफ तौर पर यह कहा जाएगा कि टिकट का प्रलोभन देकर दल बदल की परंपरा को खत्म किया जाय।

राजद नेताओं की जदयू में एंट्री को लेकर क्यों खफा है भाजपा

सूत्र बताते हैं कि विचार परिवार के थिंक-टैंक के सर्वे में जो बातें सामने आई है, वो बातें नीतीश कुमार के पक्ष में नहीं हैं। अफसरशाही तथा एन्टी इनकंबेंसी की वजह से नीतीश की मनमानी के कारण एनडीए को नुकसान हो सकता है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी नहीं चाहती है कि जदयू के द्वारा इस बार दवाब की राजनीति की जाए।

एनडीए की विश्वसनीयता को खतरे में नहीं डालना चाहती भाजपा

वहीं दूसरी बात यह कि अगर जदयू इस तरह की गतिविधि जारी रखती है तो मजबूरन भाजपा को सख्त निर्णय लेना पड़ेगा। अगर भाजपा सख्त निर्णय लेती है तो इसका असर एनडीए की विश्वसनीयता पर पड़ सकता है, क्योंकि आरोप-प्रत्यारोप के दौरान दल बदल करने वाले नेता अगर टिकट से वंचित रह जाते हैं तो उनका सीधा आरोप नीतीश कुमार पर होगा और तीन- चौथाई की बहुमत की आकांक्षाओं के कारण भाजपा अपने मुख्यमंत्री के चेहरे पर ज्यादा जोखिम नहीं उठानी चाहती है।

राजद का यादवी दुर्ग नीतीश कुमार के अचूक तीर से ढहने लगा है। अभी जो छह विधायकों ने राजद का दामन छोड़ कर जदयू में शामिल हुए, उनमें तीन यादव हैं। दो तो ऐसे यादव परिवार जिनकी राजनीतिक धाक पटना से लेकर दिल्ली तक थी। वर्ष 1990 के पूर्व लालू प्रसाद बोला करते थे कि- काश! मेरी ताकत रामलखन सिंह जैसी हो जाती। तो हम बता देते कि शक्ति किसको कहते हैं? राजनीति कैसे होती है? दूसरा परिवार दारोगा प्रसाद के पुत्र चन्द्रिका यादव हैं। एक सुसंस्कृत यादव परिवार की छवि इनकी पूरे बिहार में है। दारोगा प्रसाद राय के परिवार ने 1952 से लेकर आज तक हुए कुल 17 चुनावों, उपचुनावों में से 14 बार जीत हासिल की है।

यादव नेताओं के लिए भाजपा बन सकती है विकल्प!

राजद के यादवी दुर्ग में नीतीश का तीर सीधा निशाने का काम करेगी तो इस मसले पर थिंक-टैंक का मानना है कि जो भी नेता राजद छोड़कर एनडीए में आ रहे हैं। क्योंकि उन्हें तेजस्वी के नेतृत्व पर भरोसा नहीं है और वे इस भरोसे से आ रहे हैं कि नरेंद्र मोदी व नीतीश कुमार के काम की वजह से चुनाव में उन्हें सफलता मिलेगी।

वहीं जानकारों का मानना है कि जिन यादव नेताओं का तेजस्वी से मोह भंग हो रहा है, उनके लिए दूसरा विकल्प भाजपा ही है। क्योंकि पार्टी के पास अभी एक भरोसेमंद तथा नेतृत्वकर्ता के रूप में एक यादव नेता है, जो कि आगे चलकर यादवों को साधने का काम कर सकता है और ऐसा तभी होगा जब भाजपा वैसे सीटों पर यादव नेता को खड़ा करे, जिस सीट से राजद के यादव नेता राजद छोड़कर अन्य दलों का दामन थामे रहे हों।

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