जातीय जनगणना- नीतीश ने दिए गियर बदलने के संकेत

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज ट्वीट कर जातीय जनगणना का समर्थन का ऐलान किया। उन्होंने कहा कि कम से कम एक बार जातीय जनगणना जरूर होनी चाहिए। सवाल यह उठता है कि नीतीश कुमार एकाएक आज इसके समर्थन में कैसे उतर गए? ये कही उनके राजनीतिक गियर बदलने का तो संकेत नहीं है?

जातीय जनगणना के समर्थन में नीतीश कुमार ने वर्ष 2019-20 में भी बयान दिया था। इसके पूर्व भी ऐसा बयान उन्होंने दिया था जब भाजपा से गठबंधन तोड़कर वह एनडीए से अलग हो गए थे और लालू प्रसाद यादव के राजद के साथ महागठबंधन में शामिल होकर भाजपा का विरोध कर रहे थे। उस समय जातीय जनगणना की जब चर्चा हो रही थी तो लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले राजद ने इसका खुलकर समर्थन किया था। राजद के साथ रहने के कारण नीतीश कुमार ने भी जातीय जनगणना कराने की मांग की थी।

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बाद में भाजपा के साथ दोबारा सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार ने इस मामले पर मौन धारण किया हुआ था। इस मुद्दे पर बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और अन्य विपक्षी पार्टियों के मुखर होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कोई न कोई प्रतिक्रिया तो देना ही था। चूंकि वह पूर्व में जातीय जनगणना का समर्थन कर चुके हैं, इसलिए ये उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि इसका समर्थन करें।

नीतीश कुमार की राजनीति का अभ्युदय ही जातीय भावनाओं के लहर के उभार के आधार पर हुई थी। आज भी चुनावी गणित में उनका सबसे बड़ा मोहरा जाति ही है। जनता दल व लालू प्रसाद से अलग होने के बाद जब उन्होंने समता पार्टी बनाई और भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो उस समय उन्होंने ‘लव-कुश’ की राजनीति की शुरुआत की थी। बिहार में सत्ता में आने के बाद उन्होंने महादलित और अति पिछड़ी जाति का एक नया समूह बनाकर राजनीति किया। वर्तमान में अपने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, केंद्र में मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, सहित ज्यादातर पदाधिकारी “दो विशेष जाति” से बनाए हुए हैं। जिस व्यक्ति की राजनीति का आधार ही जाति हो, वह व्यक्ति स्वाभाविक तौर पर जातीय जनगणना का समर्थन करेगा ही।

नीतीश कुमार का गृह राज्य बिहार है जहां की राजनीति का आधार जाति है। ऐसे में बिहार में राजनीति करने वाले व्यक्ति में स्वाभाविक तौर पर “जाति आधारित राजनीति” का गुण तो आयेगा ही। नीतीश कुमार इसके अपवाद नहीं हैं।

लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राजद के डर से भी नीतीश कुमार जातीय जनगणना के समर्थन में बोलने को विवश हुए। जिस तरीके का माहौल राजद ने जाति आधारित जनगणना के संबंध में निर्माण किया है उसमें नीतीश कुमार को यह डर सता रहा है कि कहीं पिछड़े वर्ग का पूरा जनसमर्थन पूरी तरीके से राजद की ओर न चला जाए।

संभावना यह भी हो सकती है कि अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर शायद नए समीकरण के जुगाड में नीतीश गियर बदलने के संकेत के लिए ऐसा बयान दिए हो।

वेद प्रकाश

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