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जानिए अक्षय तृतीया पर्व का धार्मिक महत्व

मृत्युंजय दीक्षित

भारतीय संस्कृति एवं परम्परा में प्रत्येक माह कोई न कोई महत्वपूर्ण पर्व अवश्य पड़ता है इसी क्रम में वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। अक्षय तृतीया अत्यंत पवित्र मानी गयी है ज्योतिषीय आधार में इसे अबूझ मुहूर्त भी कहा गया है। माना गया है कि अक्षय तृतीया को किसी भी प्रकार का शुभकार्य किया जा सकता है। इस दिन विवाह, यज्ञोपवीत, मुंडन, गृह प्रवेश, व्यापर आरम्भ सभी कुछ शुभ है तथा इस दिन किए गए दान का पुण्य भी अक्षय होता है अतः इस दिन दान का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया के दिन किया जाने वाला जप-तप, पूजा, यज्ञ आदि कई गुना अर्थात अक्षय फल देने वाले होते हैं। इस दिन किये गये किसी भी कार्य या वरदान का क्षय नहीं होता है।

मान्यता है कि अक्षय तृतीया का दिन देवताओं को अत्यंत प्रिय है। भविष्यपुराण के अनुसार इसे युगादि तिथि भी कहते हैं। अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग तथा त्रेतायुग का आरम्भ माना गया है। पद्म पुराण के अनुसार इसी दिन महाभारत युद्ध का विधिवत समापन हुआ था और द्वापरयुग का समापन भी इसी दिन हुआ था। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर, नारायण रूप तथा हयग्रीव और भगवान् भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था।

ब्रहमाजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इसी दिन बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित करके उनकी पूजा की जाती है और श्रीलक्ष्मीनारायण जी के दर्शन किये जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनाथ धाम के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन खुलते है और वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में भी इसी दिन विग्रह के चरण दर्शन होते हैं। अक्षय तृतीया के पर्व का जैन धर्म मे भी विशेष महत्व है।

अक्षय तृतीया के समय ग्रीष्म ऋतु की सघनता के कारण पशु-पक्षियों तथा यात्रियों के लिए जल की व्यवस्था, ग्रीष्म के प्रकोप से बचाने वाले भोज्य पदार्थों का दान करना महत्वपूर्ण है।