जानें नवादा में कहां है जमीन पर विद्यालय, झोला में कार्यालय?

0

नवादा : जमीन पर विद्यालय एवं झोला में कार्यालय। सुनने में किसी फिल्मी गाने की पैरोडी लगती है, लेकिन यह बिहार में शिक्षा के गिरते स्तर की तल्ख हकीकत है जो प्रतिदिन पकरीबरांवा प्रखंड क्षेत्र का पड़रिया प्राथमिक विद्यालय बयां करता है। विद्यालय में अधिकांश बच्चे अल्पसंख्यक और एससी वर्ग के हैं। वर्तमान में यह विद्यालय कब्रिस्तान की परती भूमि पर चल रहा है। उसी जमीन पर जर्जर सामुदायिक भवन अवस्थित है जिसमें एमडीएम का कार्य चलता है। जबकि बेंच, टेबल, कुर्सी आदि सामग्री स्कूल में छुट्टी के बाद पठन-पाठन के बाद सहायक शिक्षक के आवास में रखी जाती है।

2006 में हुई स्थापना, 152 बच्चे हैं नामंकित

यहां 2006 में विद्यालय की घोषणा हुई थी और वर्ष 2007 में पठन-पाठन का कार्य शुरू हुआ। प्रारंभ में विद्यालय कब्रिस्तान की जमीन पर बने सामुदायिक भवन में प्रारम्भ हुआ। परन्तु भवन की जीर्णशीर्ण हालात में बच्चे कब्रिस्तान की ही जमीन पर बैठकर पठन-पाठन का करते हैं । विद्यालय में कुल 152 छात्र-छात्राएं नामंकित हैं। जबकि 4 शिक्षक, 1 टोला सेवक व 3 रसोइया पदस्थापित हैं। सरकार द्वारा निर्धारित अनुपात से शिक्षक ज्यादा हैं और विद्यालय प्रतिदिन खुलता है।

swatva

कुव्यवस्था का आलम, क्यों नहीं बना भवन?

विद्यालय में न सिर के ऊपर छत है, और न ही बैठने की जगह। शौचालय और चापाकल की तो बात ही बेमानी है। एमडीएम बनाने के लिये कब्रिस्तान के चापाकल से पानी लाना पड़ता है। शौचालय नहीं रहने के कारण छात्राओ के साथ-साथ शिक्षिकाओ को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इस गांव में दो समुदाय के लोग रहते हैं। प्रारम्भ में जब सामुदायिक भवन में पढ़ाई शुरू हुई तो गांव वासियों ने कब्रिस्तान की भूमि पर विधालय भवन निर्माण पर सहमति बनाई। वर्ष 2008-2009 में भवन निर्माण के लिये लगभग 5 लाख 2 हजार रुपए आये। निर्माण प्रारम्भ करने के लिये जब अधिकारियों ने जमीन की जांच की तो दूसरे पक्ष के लोगों ने निर्माण कार्य को रोककर भवन का निर्माण दूसरी जगह पर करने की जिद कर दी। किसी तरह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने आपसी चंदा संग्रह कर 5.50 साढ़े पांच डिसमिल जमीन राज्यपाल के नाम कर दी। पुनः जमीन की जांच को अधिकारी आये तो पुनः विवाद ही गया। दोनों समुदाय के लोग अपने-अपने टोले में भवन निर्माण की बात पर अड़ गए। जिसके कारण निर्माण की आई राशि लौट गई। इस भवन निर्माण की लेकर पदाधिकारियों ने कोई नोटिस नहीं लिया। जिसके कारण यह विद्यालय भवन विहीन होकर रह गया।
विद्यालय में न तो शिक्षक की कमी है और न ही छात्र की। कमी है तो सिर्फ संसाधन की। भवन नहीं रहने के कारण संचिकाओं को रखने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। प्रतिदिन सभी पंजियों को घर से विद्यालय और विद्यालय से घर ले जाना पड़ता है। भवन नही रहने के कारण सभी मौसमों में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गर्मी में धूप तो ठंढ में सर्द ही लगती है। जमीन पर बैठने के कारण कई बच्चे विद्यालय आने में आनाकानी करते हैं। खुले आसमान के कारण शोर-शराबा भी अधिक होता है। इससे पठन-पाठन में बाधा उत्पन्न होती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here