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जलमित्र व जलनायक पुनर्जीवित करेंगे आहर-पइन

पटना : जल स्रोतों के सीमांकन, संरक्षण, पुनर्जीवन, चिह्नीकरण, अतिक्रमण से मुक्ति एवं परंपरागत गोमाम प्रथा को पुनर्स्थापित करने के लिए आहर—पइन बचाओ अभियान के तहत राज्य स्तरीय नीति निर्धारण एवं जलवायु संतुलन संगोष्ठी का आयोजन गुरुवार को किया गया। अनुग्रह नारायण सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के सभागार में आयोजित इस संगोष्ठी का उद्घाटन पशुपालन एवं मत्स्य विभाग की सचिव एन. विजयलक्ष्मी ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जनसंख्या वृद्धि एवं हमारी गलतियों के कारण पर्यावरण के समक्ष संकट की स्थिति पैदा हो गई है। उन्होंने कहा कि जनसंख्या वृद्धि के कारण उत्पन्न समस्याओं के निराकरण के लिए विकास की योजनाएं बनीं, जिसके कारण जल संरक्षण एवं संग्रहण के लिए बनाए गए प्राचीन उपक्रम नष्ट हुए या संकुचित हो गए। इसके परिणाम स्वरूप भूमिगत जलस्तर में तेजी से गिरावट आई है। बिहार जैसे जल संपदा से भरपूर राज्य में भी जल संकट की समस्या अत्यंत भयावह रूप में सामने खड़ी दिख रही है। इससे निपटने के लिए जन चेतना जागरण की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा की आहर—पइन जैसे प्राचीन उपक्रम को फिर से जीवित करना होगा। इस प्रकार के उपक्रमों की देखभाल एवं संरक्षण, संवर्धन समाज द्वारा होता था। समाज के लोग इसे अपनी संपत्ति समझते थे और श्रमदान कर उसको सुदृढ एवं संरक्षित करते थे। उन्होंने नवादा जिले में जिला अधिकारी के रूप में अपने अनुभव की चर्चा करते हुए कहा कि वहां आज भी गोमाम प्रथा जीवित है। किसी सार्वजनिक स्थल को संरक्षित एवं उसके जीर्णोद्धार के लिए गांव के लोग एकत्रित होकर श्रमदान करते हैं। उन्होंने कहा कि जल जीवन और हरियाली किनारे की योजना को सरकार जमीन पर उतारने के लिए संकल्पबद्ध है। आहर पइन बचाओ अभियान के संयोजक एमपी सिन्हा ने कहा कि जल संरक्षण के लिए चेतना जागरण अभियान को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए जल मित्र एवं जलनायक बनाए जाएंगे। समारोह में उपस्थित पशुपालन एवं मत्स्य विभाग की सचिव एन. विजयालक्ष्मी को उन्होंने जलनायक की उपाधि से सम्मानित किया। इस संगोष्ठी में बिहार के 17 जिलों से 300 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए थे। इनमें किसान ग्राम पंचायतों के मुखिया, सरपंच एवं स्वयंसेवी संगठनों के कार्यकर्ता शामिल थे। चार सत्रों में हुए इस कार्यक्रम में जल संरक्षण एवं संचयन के लिए बने प्राचीन उपक्रमों की वर्तमान स्थिति एवं उनकी स्थिति में सुधार से संबंधित प्रत्येक बिंदुओं पर चर्चा की गई। इसके साथ ही आहर जैसे जल स्रोतों के तटबंध हों एवं अलंगों पर पौधरोपण कराने पर भी विचार किया गया। संगोष्ठी में शामिल प्रतिनिधियों ने अपने अपने क्षेत्र की रिपोर्ट एवं सुझाव बिंदुवार प्रस्तुत किए। इन सुझावों व कार्य योजनाओं के आधार पर एक प्रपत्र तैयार किया जाएगा, जो राज्य सरकार को समर्पित किया जाएगा, ताकि जल जीवन और हरियाली अभियान के तहत जल संरक्षण के लिए आवश्यक इन प्राचीन उपक्रमों को पुनर्जीवित किया जा सके। समारोह में समाज विज्ञानी डॉक्टर जगदीश प्रसाद, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के बिहार प्रभारी गोपाल शर्मा एवं गंगा संरक्षण के लिए कार्य करने वाले एक्टिविस्ट गुड्डू बाबा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।