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जब तक जदयू में थे श्याम, तभी तक वहां सामाजिक न्याय था, कैसे?

पटना : चुनावी बयार की आहट के साथ बिहार में विधिवत रूप से ‘आया राम-गया राम’ का खेल शुरू हो गया है। इसके आगाज में श्याम रजक बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभरे। पाला बदल की संदिग्ध हरकतों पर जहां जदयू ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया वहीं रजक ने आज सोमवार को अपने पुराने घर राजद का बजाप्ता 11 साल बाद दामन थाम लिया। इसके साथ ही उन्होंने मीडिया के सामने कहा कि जदयू में सामाजिक न्याय का अपमान हो रहा था। इसीलिए उन्होंने फिर से राजद ज्वाइन कर लिया। प्रश्न उठता है कि फिर वे 11 साल तक जदयू में क्या करते रहे? क्या सामाजिक न्याय उनकी निजी संपत्ति है जो उनके जदयू से हटते ही वहां से गायब हो गया। या फिर पर्दे के पीछे का सच कुछ और है।

फुलवारी सीट पर अरुण मांझी को ह​री झंडी से रजक थे परेशान

दरअसल सारा मामला फुलवारी सीट से जुड़ा है। श्याम रजक इस सीट से 1995 से जीतते आ रहे हैं। लेकिन इसबार जदयू उनकी सीट फुलवारी को चेंज करना चाह रहा था। पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले आरसीपी सिंह ने अरुण मांझी को वहां अपने तैयारी पूरी रखने को कहा था और उन्हें हरी झंडी भी मिल चुकी थी। यह बात श्याम रजक को नागवार गुजरी। उधर सीएम नीतीश भी रजक के हाल में बैठक कर पार्टी लाइन से अलग विचार मीडिया में रखने से काफी नाराज थे। इसी बीच रजक की हरकते भी संदिग्ध लग रही थी। वे लगातार अंदर ही अंदर राजद के संपर्क वालों से घनिष्ठता बढ़ा रहे थे।

सामाजिक न्याय सिर्फ बहाना, राजद से नजदीकी बढ़ा रहे थे

यद्यपि जदयू ने वरिष्ठ मंत्री विजेंद्र यादव को उन्हें समझाने और बात करने पर लगाया था, लेकिन श्याम रजक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे थे। जब नीतीश ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया तो अचानक श्याम रजक को जदयू में सामाजिक न्याय का अपमान होता दिख गया। ऐसे में राजद को ज्वाइन करते वक्त उन्होंने अपनी पूरी भड़ास मीडिया के सामने निकाल दी। इस सबके बीच एक बात तो साफ तौर पर उभर कर सामने आई है कि मुद्दे सिर्फ अपने स्वार्थ को साधने का लिबास भर होते हैं। यह किसी नेता की बपौती नहीं होते, बल्कि गरीब—गुरबों के दुख का आइना होते हैं जिसमें हर चालाक नेता अपनी शक्ल देख इसे इस्तेमाल करता है, और फिर पाला बदल के खेल में आगे बढ़ जाता है।