इम्पोर्टेड नेताओं ने 5 राज्यों में हराया भाजपा को, अब उतरेगी ‘पुराने’ चेहरों की नई टीम
आरएसएस 1925 में बना संगठन जिसे विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा अपना मातृत्व संगठन मानती है। आरएसएस जिसे लोग यह कहकर परिभाषित करते हैं कि यह संगठन हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को अपना यूएसपी मानता है। इसी संगठन की उपज है भारतीय जनता पार्टी जिसका दबदबा 2014 के आम चुनाव के बाद लगातार बढ़ता जा रहा है। और भाजपा इतना सफल इसलिए है कि इसके पीछे आरएसएस चट्टान बनकर खड़ा रहता है।
लेकिन, 2019 के आम चुनाव में जबरदस्त सफलता के बाद आमजन में यह चर्चा का विषय बन गया था कि भाजपा 2 आदमी की पार्टी बनती जा रही है। और इस चर्चा का नुकसान पार्टी को उठाना भी पड़ा। आम चुनाव 2019 के बाद लगातार खिसक रही सियासी जमीन के बाद भाजपा डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार झारखंड में तो भाजपा पूरी टीम ही बदलने वाली है। इसके तहत जहां बाबूलाल मरांडी की पार्टी में वापसी की जमीन तैयार हो चली है, वहीं नाराज सरयू राय को भी झारखंड में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।
5 राज्य गंवाने के बाद बैकफुट पर भाजपा
दरअसल, मध्यप्रदेश और राजस्थान में शाह की मनमानी और महाराष्ट्र में शिवसेना के प्रपंच और झारखंड में मिली मात ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि झारखण्ड में भाजपा इसलिए हार गई क्योंकि आरएसएस नहीं चाहता था कि झारखण्ड में भाजपा इसबार रघुवर दास के चेहरे के साथ चुनावी मैदान में जाए। लेकिन, सूत्रों के अनुसार अमित शाह यह मानने को तैयार नहीं हुए और झारखण्ड को रघुवर के भरोसे छोड़ दिया। शाह की इस हरकत के बाद आरएसएस झारखण्ड चुनाव से किनार कर ली । आरएसएस के चुनाव से दूर होने के बाद रघुवर दास अपने मर्जी से झारखंड भाजपा को चलाया।
नतीजा यह हुआ कि झारखण्ड भाजपा के कद्दावर नेता और आरएसएस की छत्रछाया में संगठन चलाने की ककहरा सीखने वाले ईंमानदार छवि के नेता सरयू को चुनावी प्रक्रिया से बाहर कर दिया। उसके बाद हुआ यूँ कि सरयू राय ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ चुनाव लड़ने का एलान कर दिया और झारखण्ड के मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास को करारी शिकस्त दी। जानकारों का कहना है कि सरयू को चुनाव जितवाने में आरएसएस का बहुत बड़ा योगदान है।
सरयू को मिल सकती है झारखंड में कमान
चुनाव में हार के बाद बिखरे संगठन को संगठित करने की जिम्मेदारी आरएसएस के कन्धों पर है इसलिए पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर भी एक ऐसे ईमानदार छवि वाले नेता को सामने लाना चाह रही है जो सांगठनिक क्षमता में भी महारथ रखता हो। इन दोनों ही योग्यताओं पर खड़े उतरनी वाले एकमात्र नेता सरयू राय जिन्हें गोविंदाचार्य के साथ सांगठनिक कार्य करने का उनका लंबा अनुभव रहा है। साथ ही, बागी होने के बावजूद पार्टी ने अभी तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। सरयू राय भी अपनी मातृ पार्टी से बाहर नहीं जाना चाहते।
मरांडी को नेता प्रतिपक्ष बनाने की रणनीति
यही कारण है कि झारखंड में नेता प्रतिपक्ष का अभी तक चयन नहीं हो सका है। पार्टी का मानना है कि अभी तक राज्य में बाबूलाल मरांडी को छोड़कर कोई भी ऐसा नेता सामने नहीं आ सका है, जिसकी स्वीकार्यता आदिवासी—नन आदिवासी सभी वोटरों के बीच हो। बाबूलाल मरांडी भी संघ की शाखा में जाकर अनुशासन का एबीसीडी सीखे हैं। बाबूलाल भी तमाम कोशिशों और इतने वर्षों की मेहनत के बाद भी वह सबकुछ नहीं प्राप्त कर सके, जो उन्हें भाजपा में रहते मिला था। ऐसे में बाबूलाल मरांडी की भाजपा में घर वापसी और उनको राज्य में भाजपा का चेहरा बनाने पर गंभीरता से विचार चल रहा है। बाबूलाल की इंट्री से भाजपा को नई टीम और सशक्त आदिवासी सपोर्ट भी हासिल होगा, जो पार्टी जो पार्टी के हित में होगा ।