आईआईटीयन का काम, क्रेडिट हड़प गए पीके, पढ़ें कैसे?

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प्रशांत किशोर ने 18 फरवरी को कहा था कि सोशल मीडिया पर सिर्फ गुजरात वालों का हक़ है क्या? पीके के बारे में एक बात यह भी कहा जाता है कि वे किसी और के काम का क्रेडिट खुद ले लेते हैं। जैसे ‘चाय पर चर्चा’ ये राहुल गुप्ता नाम के एक आईआईटी ग्रेजुएट ने सुझाया था, जो 2014 के अभियान से पहले सीएजी से जुड़ा था और चाय पीते-पीते ये नाम अचानक उसके जेहन में आया था। यह व्यक्ति पहले ‘सिटिजंस फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस’ यानी सीएजी से जुड़ा हुआ था, जो कि अब नई संस्था एसोसिएशन ऑफ बिलियन माइंड्स यानी एबीएम के तौर पर काम कर रही है। जो काम 2014 लोकसभा चुनावों के पहले सीएजी के बैनर तले हो रहा था। वही काम अब एबीएम के जरिए हो रहा है।

प्रशांत किशोर भरोसेमंद नहीं हैं। यह बात जग जाहिर है। खुद नीतीश कुमार ये बात कह चुके हैं कि उन्होंने तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कहने पर पीके को अपनी पार्टी में जगह दी थी। मूल्यों की राजनीति करने वाले नीतीश जैसे नेता झूठ नहीं बोलते। लेकिन, प्रशांत किशोर ने अपने निजी फायदे के लिए नीतीश और अमित शाह के रिश्तों में दरार डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

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युवाओं को ठगने का हथकंडा

प्रशांत सिर्फ नेताओं को ही नहीं बल्कि बिहार के लाखों युवाओं को भी झूठे सपने दिखाकर उन्हें धोखा दिया है। जदयू में रहते हुए प्रशांत ने ‘युथ इन पॉलिटिक्स’, ‘पॉलिटिक्स एंड ब्यूरोक्रेसी’ जैसे कई कैंपेन चलाकर 2 लाख से अधिक युवाओं को अपने साथ जोड़ रखा है। उन्होंने बिहार की 8463 पंचायतों के  युवाओं को मुखिया बनाने की सपना भी दिखाया।

कन्हैया के लिए पटकथा तैयार कर रहे हैं पीके

ऐसी पूरी संभावना है कि कन्हैया कुमार आने वाले कुछ दिनों में या बिहार चुनाव से ठीक पहले प्रशांत किशोर की टीम से जुड़ जाएं। नागरिकता कानून और एनआरसी के विरोध में कन्हैया कुमार की पूरे बिहार में हो रही यात्रा प्रशांत किशोर की पटकथा के अनुरूप ही है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर एक रणनीति के तहत कन्हैया कुमार को पूरे बिहार में नागरिकता कानून के विरोध में उतार कर आगामी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मौके को भांप रहे हैं। खुद प्रशांत किशोर भी बिहार के सभी पंचायतों के दौरे पर निकलने वाले हैं।

गुजरात की तरह माहौल बनाना चाहते हैं पीके

गुजरात की राजनीति को करीब से देखने वाले प्रशांत किशोर बिहार में वैसा ही माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जैसा कि गुजरात मे भाजपा सरकार के खिलाफ  ने किया था। यह देखना दिलचस्प होगा कि गुजरात का यह फार्मूला बिहार में कितना सफल होता है।

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