कृषि बिल को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए ब्लॉग के जरिये बिहार भाजपा अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि किसानों के नाम पर इस देश का विपक्ष जिस तरह की दोहरी राजनीति कर रहा है, वह जनता देख भी रही है और समझ भी रही है। मैं इस वक्त बिहार की अलग-अलग जगहों पर किसान चौपाल के माध्यम से अपने किसान भाई-बहनों से मिल भी रहा हूं, उनकी बात समझ और सुन भी रहा हूं। मैं देख सकता हूं कि इस देश का विपक्ष किस कदर अनुशासनहीन और मर्यादाविहीन होकर संसदीय लोकतंत्र को तार-तार करने पर आमादा है।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
जायसवाल ने कहा कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ की तर्ज पर एक के बाद एक अपने ट्वीट में लगातार असत्य और कुतर्क का प्रयोग किए जा रहे हैं। हमेशा की तरह वह भूल जाते हैं कि झूठ बोलने के साथ समस्या यह है कि आपको खुद अपना पिछला बोला याद नहीं रहता है। यह वही कांग्रेस पार्टी है, जिसने 2019 के आम-चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में एपीएमसी (कृषि उपज मंडी समिति) को खत्म करने के साथ तीव्र आर्थिक सुधारों का वादा किया था, लेकिन आज वह दिल्ली को घेर कर बैठे हुए लोगों का किसान-आंदोलन के नाम पर समर्थन कर रही है।
केजरीवाल ने जो किया वह बेहद ही विक्षुब्ध करनेवाला दृश्य
यह बेहद ख़तरनाक स्थिति है, जब देश का विपक्ष गैर-जिम्मेदारी के साथ एक ऐसे टकराव को न्योता दे रहा है, जो किसी भी तरह राष्ट्र के हित में नहीं है। संसद हमारे लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था है, इसमें पूरे बहस-मुबाहिसे और तार्किक वाद-विवाद के बाद ही नए कृषि-कानून पारित हुए हैं। अब, इस तरह उनका विरोध करना कहां तक जायज है, जिसमें आप संसदीय गरिमा को ही ताक पर रख दे रहे हैं। नयी तरह की राजनीति का दावा करनेवाले केजरीवाल ने जिस तरह दिल्ली की विधानसभा में इस बिल को फाड़ा, वह बेहद ही विक्षुब्ध करनेवाला दृश्य है, देश के लिए भयावह भी। गौरतलब हो कि इससे पहले वह इन कानूनों को दिल्ली में लागू करने के लिए बाकायदा नोटिफिकेशन भी जारी कर चुके थे, लेकिन झूठ की आंच पर राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए वह दूसरों से भी दो कदम बढ़ गये।
सीएए और एनआरसी के विरोधी हैं अराजकता मचाने वाले लोग
आज किसानों के कंधों पर बंदूक रख कर अराजकता मचानेवाले ये वही लोग हैं, जो कभी सीएए और एनआरसी के विरोध के नाम पर पूरी दिल्ली को बंधक बना बैठे थे। मजे की बात तो यह है कि केजरीवाल हों, अमरिंदर सिंह हो, शरद पवार हों या और भी तथाकथित नेता, सभी ने उन्हीं कृषि-कानूनों का वादा किया था, जिसके विरोध में आज वे खड़े हैं। यह और भी मजे की बात है कि संसद में बाकायदा बहस के बाद, हरेक पक्ष पर नुक्ताचीनी के बाद ये कानून बने हैं, लेकिन सिर्फ झूठ की बुनियाद पर खड़े इस आंदोलन का सेहरा अपने माथे पर बांधने के लिए आज यह तमाम लोग अपने कहे से मुकर रहे हैं।
एपीएमसी एक्ट को लेकर हुई थी सर्वदलीय बैठक
कृषि-कानून कोई अचानक से या एक दिन में नहीं बने हैं। दो दशकों से भी अधिक समय से इन पर विचार-विमर्श चल रहा था और व्यापक विमर्श के बाद ये कानून बने हैं। एपीएमसी एक्ट को लेकर दिसंबर 2019 में ही सर्वदलीय बैठक भी हुई थी, उसी महीने संसद की स्थायी समिति ने भी एक बैठक की औऱ फिर 12 दिसंबर को संसद में रिपोर्ट दी गयी जिसमें बिचौलियों के हावी होने की बात स्वीकार की गयी। यह भी गौर करने वाली बात है कि जिस समिति ने यह रिपोर्ट दी, उसमें कुल 31 सदस्य थे और इन 31 सदस्यों में केवल 13 सदस्य भाजपा के थे, बाकी कांग्रेस, बीएसपी, टीएमसी, शिवसेवा, सपा, अकाली दल और टीआरएस के सदस्य इसमें शामिल थे।
कानून वापस होने लगें, तो फिर संसद की महत्ता ही क्या
यह सर्वविदित है कि प्रधानमंत्री ‘सबका साथ, सबका विकास’ केवल मुंहजबानी कहते ही नहीं हैं, बल्कि वह सबको साथ लेकर ही देशहित में काम करते हैं। लेकिन, विपक्ष क्या कर रहा है? जिस तरह एनआरसी को लेकर इन्होंने भ्रम और झूठ फैलाया, उसी तरह अब एमएसपी को लेकर कर रहे हैं, जबकि कृषि मंत्री से लेकर खुद प्रधानमंत्री तक यह कह चुके हैं कि एमएसपी की व्यवस्था जिस तरह थी, उसी तरह जारी रहेगी। आखिर, किसानों को अपनी ढाल बनाए हुए इन अराजक तत्वों की मांग क्या है? आपको अगर कोई गलतफहमी है, तो वार्ता की मेज पर उसे सुलझाना चाहिए, लेकिन आप कर क्या रहे हैं, दिल्ली को घेर कर बैठ गए हैं। यदि, इस तरह कानून वापस होने लगें, तो फिर संसद की महत्ता ही क्या है, फिर हम सांसद कानून बनाने बैठे ही क्यों और फिर इस देश में लोकतंत्र का मतलब क्या रह जाएगा?
अराजक शहरी नक्सलों को लगभग हरेक पार्टी कर रही सपोर्ट
दुख की बात है कि महज मोदी विरोध में किसानों को उनके अधिकार से वंचित रखने के लिए रचे गये इस आंदोलन के सूत्रधार अराजक शहरी नक्सलों को लगभग हरेक पार्टी अभी सपोर्ट कर रही है, लेकिन वे यह भूल जा रहे हैं कि हमारे श्रद्धेय अटलजी ने ही कभी कहा था, ‘सरकारें आएंगी, जाएंगी। सत्ता रहेगी, नहीं रहेगी, पर ये देश रहना चाहिए, ये देश तना रहना चाहिए।’ सत्ता पाने की हड़बड़ी और लालसा में सभी विपक्षी दल आग से खेल रहे हैं। यह आग उनके घर तक भी पहुंचेगी, वे भूल जाते हैं- ‘लगेगी आग, तो जद में आएंगे घर कई, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़े है।’