नई दिल्ली में दो दिवसीय राष्ट्रीय आयुष सम्मेलन सम्पन्न, विशेषज्ञों ने रखे विचार
दिल्ली : इंडिया इंटरनेशनल सेंटर,नई दिल्ली में आयुष्मान भारत न्यास के तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय आयुष सम्मेलन का सफल आयोजन किया गया। इस अवसर पर पूरे देश के बिभिन्न राज्यों से सैकड़ों प्रतिनिधियों ने भाग लिया I
उदघाटन सत्र की शुरुआत में राष्ट्रीय आयुष सम्मेलन के संयोजक डॉ. बिपिन कुमार ने विशिष्ट अतिथियों का स्वागत करते हुए वर्तमान परिदृश्य में आयुष की महता के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज आयुष का महत्व बढ़ा है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत को प्रशिक्षित आयुष सहयकों की अत्यंत आवश्यकता है, जिससे हम अपनी प्राचीन उपचार पद्धति को दुनिया तक पहुंचा सकें। उन्होंने उपस्थित सभी श्रोताओं से यह संकल्प लेने को कहा कि वे आयुष के संदेश को लोगों तक पहुचाएं। आयुष संबर्द्धन के लिए डॉ बिपिन कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का धन्यवाद किया। इसके पश्चात मंच पर उपस्थित सभी सम्मानित सदस्यों को शॉल और प्रशस्ति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
इस मौक़े पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद भारत सरकार के इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते एवं केंद्रीय कानून राज्य मंत्री एस. पी. सिंह बघेल ने अपने विचार रखे। कुलस्ते ने आयुष की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए आयुर्वेदिक-यूनानी चिकित्सा पद्धति की प्रसंशा की। उन्होंने सुदूर आदिवासी एवं पहाड़ी इलाकों में पाये जाने वाले औषिधीय भंडार की ज़िक्र किया।
कुलस्ते ने निराशा प्रकट की कि इस भंडार का सही उपयोग नहीं किया गया। आज वर्तमान मोदी सरकार ने इस दिशा में सार्थक पहल की है। नये तरीकों, नई पद्धतियों पर चिंतन हो रहा है। आज दुनिया भर के लोग भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति से जुड़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज ग्रामीण क्षेत्रों में आयुष पद्धति का निरंतर विकास हो रहा है। वर्तमान सरकार तमाम आसान सुविधाएं उपलब्ध करा रही है।
केंद्रीय कानून राज्य मंत्री एस. पी. सिंह बघेल जी ने आयुर्वेद एवं होम्योपैथी के महत्व पर बात की। उन्होंने मोदी सरकार की आयुष्मान भारत योजना की प्रसंशा करते हुए कहा कि आज गरीब से गरीब व्यक्ति भी मुफ्त इलाज करा सकता है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ शरीर से स्वस्थ मन और स्वस्थ मन से स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण होता है।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता राज्यसभा सदस्य रामचन्द्र जांगड़ा ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में जल,वायु एवं ध्वनि प्रदूषण को ग्रामीण अंचलों के बड़े रोचक उदाहरणों से प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतीय त्योहारों और सांस्कृतिक उत्सवों को मानने के पीछे के वैज्ञानिक कारणों की रोचक जानकारी दी। रामचन्द्र जांगड़ा ने खानपान और मन के संयम को आज के समय की ज़रूरत बताया।
उन्होंने कहा कि सादा जीवन जीवन का आधार होना चाहिए। साथ ही उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज उपभोक्तावादी समाज में बुजुर्ग बेहद अकेला हुआ है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद एवं होम्योपैथी आज के चिकित्सा विज्ञान का आधार है, हमें पुनः इस ओर विचार करना है। उन्होंने भारत सरकार के प्रयासों की भूरि भूरि प्रसंशा की। रामचन्द्र जांगड़ा ने इस दौरान भारत सरकार की कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण परियोजनाओं का ज़िक्र किया,जिनमें आयुष्मान भारत एवं तालाबों की स्वच्छता की ‘अमृतसरोवर परियोजना’ प्रमुख हैं।
विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष प्रो.सरोज शर्मा ने प्राचीन चिकित्सा आयुर्वेदाचार्यों की बात करते हुए उस पद्धति को वर्तमान शिक्षा पद्धति से जोड़ने का आग्रह किया। उन्होंने पर्यावरण-शिक्षा के महत्व को आज की ज़रूरत बताया और सांख्य दर्शन के प्रकृति एवं पुरुष पर बात की। उनके अनुसार प्राचीन शिक्षा पद्धति आज की ज़रूरत है। इस सत्र का संचालन मोनिका अरोड़ा ने किया।
इस दौरान प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. एच. के. चोपड़ा ने अपनी प्रस्तुति में उस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि भारत हृदय रोगियों का गढ़ है। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही भारत इससे मुक्त होगा। उन्होंने हृदय रोग से बचने के अनेक तरीके बताये। उन्होंने बताया कि हृदय रोग की सबसे बड़ी वजह नकारात्मक तनाव है। कार्यशैली में बदलाव से हम हृदय रोग से बच सकते हैं।
दोपहर के भोजन के बाद के सत्र का मंच संचालन डॉ. नीता कुमार ने किया। इस सत्र में डॉ. अखिलेश शर्मा,डॉ.अपर्णा रॉय,श्रीमती अरुणिमा सिन्हा (मेरु चिकित्सक) एवं डॉ. राकेश (आईआरसीएच,एम्स) ने अपनी बात रखी। डॉ.अखिलेश ने विदेशों में भारतीय आयुर्वेद पद्धति के महत्व पर बात की। डॉ. अपर्णा रॉय ने अरविंद दर्शन को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी माना। श्रीमती अरुणिमा सिन्हा ने उपस्थित श्रोताओं को मेडिटेशन कराया। डॉ. राकेश ने अपने वक्तव्य में निरोगी जीवन के महत्व पर बिस्तर से प्रकाश डाला।
नेशनल आयुष कांफ्रेंस के पहले दिन के सफल आयोजन के बाद दूसरे दिन के पहले सत्र का उद्घाटन राष्ट्रीय आयुष सम्मेलन के संयोजक डॉ. बिपिन कुमार के स्वागत भाषण से हुआ। इस सत्र में उन्होंने अपने वक्तव्य में कार्य और परिवार के बीच संतुलन की आवश्यकता को बेहद ज़रूरी माना। उन्होंने कार्यस्थल पर तनावमुक्त जीवन शैली पर प्रकाश डाला।
इसी सत्र में प्रख्यात मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ. बिश्वरूप रॉय चौधरी ने अपने अंदाज़ में अपने विषय की शुरुआत की। उन्होंने ‘स्यूडो इलनेस’ पर बात रखी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में कहा कि बीमारी से ज्यादा ‘बीमारी का भ्रम’ व्यक्ति को मारता है। हमारा समाज इन भ्रामक बीमारियों से ग्रसित है। उन्होंने कोरोना और मंकीपोक्स जैसी बीमारियों को लेकर विश्व संस्थाओं के नज़रिए को तथ्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने लोगों को एलोपैथी की बजाय नेचुरोपैथी की तरफ जाने का सुझाव दिया। उन्होंने अपने रिसर्च सेंटर में किये कोरोना संबंधी खोजों के कई चौंकाने वाले तथ्य प्रस्तुत किये। इस संबंध में उन्होंने अपनी पुस्तक ‘नेकेड ट्रुथ ऑफ कोविड टेस्ट’ पढ़ने की सलाह दी।
इसके बाद के सत्र में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस के डॉ. पी.के. सिन्हा ने ‘लाइफस्टाइल मैनजमेंट’ विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि अथर्ववेद में वर्णित पंचतत्व ही जीवन की आधारशिला है। डॉ. पी.के. सिन्हा के अनुसार पूरा बृह्मांड इन्हीं पंचतत्वों से बना है। उनका मानना है कि शरीर इन पंचतत्वों के संतुलन से ही स्वस्थ रह सकता है और अनुशासन से ही इस संतुलन को बनाये रखा जा सकता है।
इसी सत्र में भारतीय योग संस्थान के अध्यक्ष देशराज ने भारतीय योग संस्थान की स्थापना और उसके ऐतिहासिक-आध्यात्मिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने योग को विज्ञान की संज्ञा दी। उन्होंने बताया कि महँगी एलोपैथी के कारण लोग आज योग की तरफ आकर्षित हुए हैं। उन्होंने छात्रों के बीच बढ़ रहे तनाव के प्रति चिंता प्रकट की और बताया कि योग से उनकी समस्या से लड़ा जा सकता है।
मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ. जयकुमार दीक्षित ने एक्यूपंक्चर से मधुमेह रोग के उपचार की सलाह दी और उसके महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने तनाव को मधुमेह का सबसे बड़ा कारण बताया।
इसके बाद के तीसरे-चौथे सत्र में आचार्य मनीष ने आयुर्वेद-नेचुरोपैथी की वर्तमान पद्धतियों पर गंभीरता से प्रकाश डाला। उन्होंने एलोपैथी की जगह आयुर्वेद-नेचुरोपैथी को ज्यादा प्रभावशाली बताया। इस सत्र में डॉ. अपर्णा रॉय, डॉ. सीमा मिश्रा, डॉ. कविता त्यागी, डॉ. नलिनी त्रिपाठी ने भी अपने अपने विचार रखे। आइ .सी .एम.आर. की डॉ. नीता कुमार ने इस सत्र का सफलतापूर्वक संचालन किया।डॉ. बिपिन कुमार ने मंच पर उपस्थित सभी वक्ताओं को शॉल और प्रशस्ति चिन्ह देकर सम्मानित किया।
कार्यक्रम के अध्यक्ष के.सी. त्यागी ने मंच को संबोधित करते हुए कहा कि महामारी केवल आज की समस्या नहीं है। 1918 में प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद यह महामारी फैली थी। त्यागी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की प्रशंसा की कि उन्होंने कोरोना महामारी में लोगों की जान-माल की रक्षा के लिए सराहनीय कार्य किया। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर प्रस्तुत की। इसके लिए उन्होंने किसानों और वैज्ञानिकों के योगदान की भी खूब प्रशंसा की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर भी बात की। आयुष के महत्व पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि विस्मृति का इलाज आयुष विज्ञान में उपलब्ध है। उन्होंने डॉ. बिपिन कुमार को इस प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए विशेष धन्यवाद दिया।
डॉ. बिपिन कुमार ने अंतराष्ट्रीय योग दिवस के लिए प्रधानमंत्री नरेंद मोदी का विशेष धन्यवाद किया। उन्होंने पुनः सभी प्रतिभागियों को संकल्प लेने का आग्रह किया कि वे आयुष के विचार को जन जन तक पहुँचाएंगे। उन्होंने साथ ही भारत की विशाल आयुष संपदा का ज़िक्र भी किया। उन्होंने मंच पर उपस्थित सभी सम्मानित सदस्यों का विशेष आभार प्रकट किया। साथ ही उन्होंने सभी प्रतिभागियों को भी साधुवाद किया। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े व्यक्तियों और संस्थाओं को उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए शॉल और प्रशस्ति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किये गये।