कुत्तों के कब्जा में अस्पताल 

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डॉक्टर के टेबुल पर कब्जा जमाए कुत्ते और टेबल के बगल में चहलकदमी करते कम्पाउंडर कुत्ते की तस्वीर वायरल हो रही है। वीडियों में दोनों कुत्तों की गतिविधियां इत्मीनान से चिकित्सा सेवा प्रदान करने वाली है।

सुगौली/चम्पारण, 22 जुलाई : जिला के सुगौली पीएचसी डॉक्टर और कम्पाउंडर की दोहरी भूमिका कुत्तों के हवाले है। डॉक्टर के टेबुल पर कब्जा जमाए कुत्ते और कम्पाउंडर की भूमिका में टेबुल की बगल में चहलकदमी करते कुत्ते की तस्वीर यहां वायरल हो रही है। वीडियों में दोनों कुत्तों की गतिविधियां इत्मीनान से चिकित्सा सेवा प्रदान करने वाली है। जैसे बगैर किसी बाहरी हस्तक्षेप के दोनों अस्पताल की सेवा संचालन में लगे हों।

यह अस्पताल ऐसे प्रखंड में स्थापित है, जहां गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों का प्रचंड बहुमत है। कई महत्वपूर्ण नदियों की उपस्थिति से यहां की भौगौलिक संरचना सदैव कठिन रही है। वर्षा ऋतु में आम आदमी की यह परेशानी चरम पर होती है। बाढ़ के प्रभाव के समय जनता के लिए इस अस्पताल की भूमिका डूबते को तिनके का सहारा जैसी जीवनदायी होती है। इतने महत्वपूर्ण अस्पताल की ऐसी गैरजिम्मेदाराना छवि आश्चर्जनक है।

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मौजूदा तस्वीर भ्रम पैदा करती है। समझ में नहीं आता कि डॉक्टर की जगह जानवर तैनात कर दिए गए है या आदमी के अस्पताल पर जानवरों ने कब्जा जमा लिया है या फिर अस्पताल ही जानवरों का है? यह तस्वीर डराने वाली है। इंसानों के अस्पताल में जानवरों की यह मौजूदगी स्वास्थ्य सेवा की बदहाली को अभिव्यक्त करती है। लापरवाही की यह पराकाष्ठा है।

जिसके पास जनता को निरोग रखने और उन्हें पीड़ामुक्त करने की अतिसंवेदनशील जिम्मेवारी हो वही पीड़ा और बीमारी परोसने का कारण बन जाएं तो ऐसी व्यवस्था पर जनता की कमाई को खर्च करने पर सवाल उठना लाजिमी है। जहां कुत्तें के काटने पर एन्टी रैबीज इलाज होना चाहिए वहीं कुत्तों की मौजूदगी रैबीज बांटने की सभवनाओं का द्वार खोले बैठी है। कांग्रेस के युवा नेता विनय उपाध्याय ने इस व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए कहा, “यही तो सुशासन है। प्रदेश में आज भी नीतीशे कुमार हैं जिनकी व्यवस्था ही बेकार हैं।”

इस बाबत प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी से पूछे जाने पर उन्होंने बताया की ओपीडी तीन बजे बंद हो जाता है। तस्वीर उसके बाद की है। उनकी बात सही भी है तो चिकित्सा कक्ष जानवरों का पनाहगार कैसे बन गया ? कार्य बंद और कार्यालय खुला…? समझ में नहीं आनेवाली दलील लगती है।

सफ़ी अहमद की रिपोर्ट

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