भारत अंत्योदयवादी, विकास का फल जब बंटता है तो सबसे आगे रखे जाते हैं दलित और पिछड़े- सहस्त्रबुद्धे

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पटना : भारत की सौम्य संपदा कई रूपों में परिलक्षित होती है। अगर देखा जाए तो आध्यात्मिक जनतंत्र की परिकल्पना भारत में दिखती है और बहु संस्कृतिवाद पर चर्चा चल रही है। भारत में आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा है और भारत इसमें एकाधिकार नहीं रखता। उक्त बातें बिहार विधान परिषद् सभागार में पद्मश्री डॉ शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव की 86 वीं जयंती के मौके पर ‘भारत की सौम्य संपदा और हम’ विषय पर व्याख्यान के दौरान राज्यसभा सदस्य डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे ने कही।

डॉ सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि भारत में एकता में विविधता दिखती है। हमारी सोच एक है पर प्रकटीकरण अलग-अलग है। प्रकृति के प्रति हमारी समन्वय दृष्टि रहती है, प्रकृति का हमने कभी विरोध नहीं किया, यही भारत के प्रति आकर्षण है। उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ समन्वयक रुप से जुड़ाव रहा है और प्रकृति के विरोध में कभी भी भारत नहीं रहा। यही कारण है कि यहां पेड़ की भी पूजा होती है।

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उन्होंने कहा कि भारत अंत्योदयवादी रहा है और भारत का विचार अंत्योदय का विचार है। विकास का फल जब बांटना होता है, तो सबसे आगे दलित-पिछड़े रखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त वासुदेव कुटुंबकम भारत में दिखता है और पूरा विश्व इसे मानता भी है। यही कारण है कि भारत के लोग बिल्ली को मौसी कहते हैं और चूहे को मामा कह सम्मान दिया जाता है।

उन्होंने कहा कि हम संपदा के प्रति लापरवाह हुए हैं, जो कि चिंता का विषय है। यूक्रेन-रूस के युद्ध की चर्चा करते हुए डॉ विनय ने कहा कि यूक्रेन से 22,000 लोगों को सुरक्षित भारत लाया गया। यहां तक की भारत के कहने पर युद्ध विराम तक लागू किए गए। इतना ही नहीं भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोगों ने भारत से अपने यहां के लोगों को मंगाने का अनुरोध किया और कहीं से विरोध नहीं हुआ। यह बातें दर्शाती है कि भारत के प्रति दूसरे देश अपेक्षाओं की दृष्टि से देख रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीयों ने प्रेम अर्जित किया है। भारत अच्छे शिक्षकों को निर्यात कर सकता है। भारत में शिक्षकीय परंपरा रही है। भारत ने शिष्य-शिक्षक परंपरा को स्थापित किया है।

इसी कार्यक्रम में अश्विनी चौबे ने कहा कि डॉ शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव भाजपा और साहित्य के लिए समान रूप से समर्पित थे। वे भाजपा के संगठन कर्ता, विधायक सांसद, समाज सेवक और साहित्यकार के रूप में पूरे समर्पण भाव से काम किया था। उनको प्रेरणा स्रोत मानकर बिहार भाजपा में कार्यकर्ताओं की एक नई फौज आई जिसने आगे भाजपा के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। बिहार में भाजपा को मजबूत करने वाले कुछ स्तंभों की जब हम चर्चा करते हैं तो उसमें एक मजबूत स्तंभ डॉक्टर शैलेंद्र श्रीवास्तव है। राजनीति में रामकरण के साथ ही साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था।

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