पटना : शराबबंदी कानून को लेकर नीतीश कुमार चौतरफा घिरे हुए हैं। विपक्ष के साथ-साथ सूबे के मुखिया अपने सहयोगियों से भी घिरे हैं। सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने शराबबंदी को लेकर तल्ख टिप्पणी की है। इसके बाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने भी नीतीश को तत्काल समीक्षा करने की नसीहत दी है
इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अरविन्द कुमार सिंह ने कहा है कि बिहार में शराबबंदी कानून कुछ भ्रष्ट अधिकारियों का धन उगाही का साधन बन गया है। जिसके चलते आम गरीब दलित और पिछड़ा वर्गों का शोषण और धन उगाही का एक साधन पुलिसिया तंत्र को मिल गया है।
शराबबंदी कानून को बिहार में अगर अधिकारी ईमानदारी से लागू करते हैं तो आज महिलाओं बच्चों और गरीबों का उत्थान का साधन बनता। लेकिन आज अधिकारियों का भ्रष्ट तंत्र इसको धन उगाही का साधन बना चुके हैं। अगर इन अधिकारियों की संपत्ति की जांच किया जाए, तो शराब बंदी कानून का पोल खुल जाएगा।
अरविन्द ने कहा है कि बिहार में जो दारोगा और इंस्पेक्टर का पुलिसिया तंत्र है। यह शराब बंदी कानून के जरिए गरीबों दलितों पिछड़ों से जजिया कर के रूप में वसूल रहे हैं। और माफियाओं को संरक्षण दे कर के नकली शराब बिहार में इन्हीं भ्रष्ट तंत्र के संरक्षण में बिक रहे हैं। जिसका परिणाम है कि जगह-जगह दलित, पिछड़े और गरीबों की मृत्यु हो रही है।
जो शराब पीकर के कानून विरोधी काम कर रहे हैं वह तो काल के गाल के शिकार बन रहे हैं। लेकिन जो उन पर निर्भर परिवार था उनकी स्थिति बिहार में बहुत ही दुखदाई होते जा रहा है। ना उनको सरकारी मदद पहुंच पा रही है ना उनको कोई और माध्यम से मदद पहुंच रहा है।
शराबबंदी कानून की एक बार पुनः समीक्षा होनी चाहिए। और इसमें जो बहुत बड़ा रैकेट काम कर रहा है माफियाओं का, भ्रष्ट अधिकारियों का और भ्रष्ट राजनेताओं का, इसकी जांच करके इन सब पर कार्रवाई होनी चाहिए। ये सब का स्थान जेल के भीतर होना चाहिए। सिर्फ बिहार में कानून लागू कर देने से काम नहीं चलेगा। बिहार में सख्ती और ईमानदार से कानून को लागू करना पड़ेगा। बिहार में सिर्फ आई वाश से काम चलने वाला नहीं है, बिहार की जनता गांव गली में यह बात बोल रहे हैं।