लोजपा में अरुण को शामिल कराते ही चिराग ने कर दी सूरजभान की भरपाई, बरकरार रहेगा वोटबैंक
पटना : बीते दिन चिराग पासवान की मौजूदगी में भारतीय सब लोग पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण सिंह अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ लोजपा में अपने दल का विलय कर लिया। बहरहाल, अरुण सिंह का लोजपा में अनौपचारिक विलय उसी समय हो गया था, जब जुलाई में लोजपा में टूट के बाद दोनों गुटों का शक्ति प्रदर्शन था। एक तरफ चिराग आशीवार्द यात्रा के नाम पर शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे, तो दूसरी तरफ उनके चाचा पशुपति कुमार पारस प्रदेश भर के 10 हजार कार्यकर्ताओं को भोजन के बहाने बंगले पर कब्जा करना चाह रहे थे।
आशीर्वाद यात्रा में सबसे चौंकाने वाला वाक्या उस वक्त यह सामने आया था, जब चिराग पासवान पूर्व सांसद व भारतीय सबलोग पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण सिंह के घर आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच काफी समय तक बातचीत चली थी। इस दौरान चिराग ने कहा कि पिताजी कहा करते थे कि जब तुम सही रास्ते पर जाओगे तब तुम्हारा कारवां बढ़ता जाएगा, आज पितातुल्य अभिभावक अरुण जी का सानिध्य मिल रहा है और आगे भी इनका मार्गदर्शन मिलता रहेगा। वहीं, अरुण सिंह ने कहा कि चिराग का जो बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का नारा है वह पूरा होगा और आने वाला समय अनुभव व युवा शक्ति की तरह काम करेगा।
हाल के दिनों में बिहार की राजनीति में जो भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं, उसमें अरुण सिंह कहीं नहीं नजर नहीं आ रहे थे। लेकिन, चिराग और अरुण के साथ आने के बाद नए समीकरण की बात होने लगी, यानी लोजपा का जो कैडर वोटबैंक है, वह पुनः एक होता दिखने लगा, जिसे सूरजभान के जाने के बाद खिसकने का डर था।
भूमिहार को नहीं छोड़ना चाहते हैं चिराग
अब सवाल यह है कि चिराग को अरुण सिंह या अरुण सिंह को चिराग की जरूरत क्यों पड़ी? इसके पीछे सामान्य सी बात है कि लोजपा का जो कैडर वोटर है वह है भूमिहार, पासवान व छिटपुट की संख्या में मुसलमान। हालांकि, 2020 के विधानसभा चुनाव में राजपूतों का भी खासा समर्थन मिला। सरल शब्दों में कहें तो नीतीश से नाराज अधिसंख्य वोटर चिराग के साथ थे। लेकिन, लोजपा के मूल वोटर पासवान व भूमिहार हैं। राजनीतिक चर्चाओं की मानें तो यह कहा जा रहा था कि लोजपा के अंदर जो राजनीतिक उठापटक हुई, उसमें पासवान वोटर तो चिराग के साथ हैं, भूमिहार को कैसे साथ लाएंगे? लेकिन, चिराग ने पूर्व में ही अरुण सिंह के साथ अनौपचारिक गठबंधन कर भूमिहार मतदाताओं को यह संकेत दे दिया कि चिराग की लोजपा को आपकी जरूरत है।
चिराग का सूरजभान से हो चुका मोहभंग
अगर चिराग व सूरजभान के रिश्तों की बात करें तो चिराग का सूरजभान से मोहभंग हो चुका है। जिसका खुलासा चिराग ने एक साक्षात्कार में किया था। चिराग ने कहा था कि दादा यानी सूरजभान से पिता जी के निधन के बाद परिवार के लिए सबसे मजबूत व भरोसेमंद सदस्य थे। लेकिन, उन्होंने ऐन वक्त ओर ऐसा किया, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। पार्टी में बगावत के बाद वे मां से मिलने आये और उन्होंने कहा था सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन, बाद में उन्हीं के नेतृत्व में सब कुछ हुआ। इसके अलावा चिराग ने सूरजभान को लेकर कहा कि 2020 के चुनाव में उन्होंने जितनी मदद की इस अनुसार यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि वे ऐसा करेंगे।
बहरहाल, चिराग पासवान भूमिहार वोटरों को साथ रखने के किये सूरजभान के समान एक नेता को ढूंढ लिया है। क्योंकि, चिराग यह बात समझ रहे थे कि जब तक अरुण सिंह उपेंद्र कुशवाहा के साथ थे। तब तक रालोसपा की स्थिति ठीक थी। दोनों के अलग होते ही दोनों का राजनीतिक पतन शुरू हो गया था। इसलिए, अरुण सिंह को भी राजनीतिक उत्थान के लिए एक वोट बैंक वाला नेता चाहिए था, जो कि चिराग के रूप में मिल गया है।