आखिर पूर्व डीजीपी को क्यों कहना पड़ा कि प्रक्रियाओं का ग़ुलाम है भारतीय कानून?
बिहार के पूर्व डीजीपी और सुपर 30 के संस्थापक अभयानंद सोशल मीडिया पर मुखरता से अपनी बात रख रहे हैं। वे समय-समय पर अलग-अलग विषयों पर अपने अनुभव के आधार पर विचार साझा करते हैं। इसी कड़ी में उन्होंने आज कहा कि भारतीय कानून प्रक्रियाओं का गुलाम है। अभयानंद ने बताया कि जिस युग में मैं जिले का SP हुआ करता था, उस युग में संवाद के दो ही साधन थे, चिट्ठी और लैंडलाइन। मेरी कार्य प्रणाली में आम आदमी के द्वारा चिट्ठी के माध्यम से गुप्त सूचना प्राप्त कर, उसपर कार्यवाई करना निहित था।
कहानी 1989 की है। नालंदा जिले के मुख्यालय, बिहारशरीफ़ में, गैर कानूनी स्पिरिट का भण्डारण और व्यापार मुख्य समस्या थी और मैं वहाँ का पुलिस अधीक्षक। आम आदमी इस अवैध कारोबार और उससे जनित काला धन से ख़ासा परेशान था क्योंकि इसी काले धन से अनेकों प्रकार के अपराध सृजित हो रहे थे। निवारण के लिए वे मुझे बंद लिफ़ाफ़े में, मेरे नाम से चिट्ठी लिखते थे जिसमें अपराध सम्बन्धी विशिष्ट और गुप्त सूचनाएँ रहती थीं। मैं कार्योपयोगी सूचना अपनी डायरी में लिख कर, चिट्ठी फाड़ दिया करता था। पुनः उन सूचनाओं पर कार्यवाई करता था।
एक शहर के विषय में स्पिरिट सम्बन्धी सूचना मिली थी। मैंने थाना अध्यक्ष को बुला कर वह सूचना दी, इस आदेश के साथ कि वे तुरंत रेड कर, बरामदगी करें।
उन्होंने ऐसा ही किया पर कुछ भी बरामद नहीं हुआ। शहर के गणमान्य लोग मुझसे मिल कर अपना विरोध प्रकट करने आए। मुझे आभास हो गया कि यह मामला तूल पकड़ेगा। मैंने अपने थाना के पदाधिकारी को बुला कर हिदायत दी कि दंड प्रक्रिया संहिता और पुलिस मैन्युअल के नियम, जिनका पालन करने के लिए मैं अपने सभी अधीनस्थों को निरंतर प्रेरित करता रहता था, उसका विस्तृत उल्लेख थाना के अभिलेखों में, इस मामले में किया जाए।
मामले ने तूल पकड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कमिश्नर एवं DIG की संयुक्त जांच बिठा दी। पूरे दो दिन तक गंभीर जांच हुई। सभी गवाहों और दस्तावेज़ों की जांच हुई। लौटने के पूर्व कमिश्नर साहब ने मुझे अलग से बुला कर बताया कि अगर मैंने कानूनी प्रक्रियाओं और नियमों का पालन नहीं किया होता तो उन्हें मेरे विरुद्ध सख्त कार्रवाई की अनुशंसा करनी पड़ती।
रिपोर्ट में मेरे विरुद्ध कोई अनुशंसा नहीं की गई थी। बताते चलें कि कमिश्नर और DIG साहब दोनों ही ईमानदार एवं सख्त पदाधिकारी में शुमार किए जाते थे। कानून पुलिस पदाधिकारी का अस्त्र और ढाल, दोनों है।