खेती-किसानी : आलू की फसल में झुलसा रोग से रहे सावधान, ऐसे करें प्रबंधन
तापमान गिरने और लगातार मौसम में बदलाव से इस समय आलू की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बनी रहती हैं, अगर समय रहते इनका प्रबंधन न किया गया तो आलू की खेती करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इस बारे में गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय, जमुहार, सासाराम बिहार द्वारा संचालित नारायण कृषि विज्ञान संस्थान, हॉर्टिकल्चर विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं प्रभारी बागवानी डॉ. संदीप मौर्य ने बताया कि अभी तक क्षेत्र में आलू की फसल में कोई रोग लगने की जानकारी नहीं आयी है, लेकिन मौसम के आकलन के आधार पर आलू की फसल में झुलसा बीमारी निकट भविष्य में आने की संम्भावना है।
डॉ मौर्या ने बताया कि बादल होने पर आलू की फसल में फंफूद का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है जो झुलसा रोग का प्रमुख कारण होता है। झुलसा रोग दो प्रकार के होते हैं, अगेती झुलसा और पछेती झुलसा। अगेती झुलसा दिसंबर महीने की शुरुआत में लगता है। अगेती झुलसा में पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। सर्वप्रथम नीचे की पत्तियों पर संक्रमण होता है जहाँ से रोग ऊपर की ओर बढ़ता है जिनमें बाद में चक्रदार रेखाएं दिखाई देती है।
उग्र अवस्था मे धब्बे आपस में मिलकर पत्ती को झुलसा देते हैं। इसके प्रभाव से आलू छोटे व कम बनते हैं। जबकि पछेती झुलसा दिसंबर के अंत से जनवरी के शुरूआत में लग सकता है। इस समय आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग लग सकता है। पछेती झुलसा आलू के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है। इस बीमारी में पत्तियाँ किनारे व शिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है जिसके कारण पूरा पौधा झुलस जाता है। पौधो के ऊपर काले-काले चकत्ते दिखाई देते हैं जो बाद में बढ़ जाते हैं। जिससे कंद भी प्रभावित होता है।
बदली के मौसम एवं वातावरण में नमी होने पर यह रोग उग्र रूप धारण कर लेता है तथा चार से छह दिन में ही फसल बिल्कुल नष्ट हो जाती है। दोनो प्रकार की झुलसा बीमारी के प्रबंधन के लिये मौसम एवं फसल की निगरानी करते रहना चाहिये। जिन फसलों पर अभी तक पिछेती झुलसा बीमारी प्रकट नही हुई है उन पर मैंकोजेब /प्रोपीनेव/क्लोरोथेलोनील युक्त फफूंदनाशक एक किग्रा. को 400 लीटर पानी मे घोल कर प्रति एकड़ के हिसाब छिड़काव करें। जैसे ही बादल आए तुरंत दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।
जिन या फेनोमेडोन 400 ग्राम+मैनकोजेब 800 ग्राम अथवा डाईमेथामार्फ 400 ग्रा+ मैनकोजेब 800 ग्रा. को 400 लीटर में घोलकर 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। परन्तु बीमारी की तीव्रता को देखते हुए इस अन्तराल को घटाया या बढा़या जा सकता है। डॉ मौर्य ने कृषि स्नातक के छात्रों को सलाह दिया कि अपने गांव के आसपास के किसान भाईयों को सलाह जरूर दें ताकि इस बीमारी से आलू की फसल को बचाया जा सके। डॉ मौर्य ने बताया कि एक ही फफूँदीनाशक का छिड़काव बार-बार न करें। छिड़काव करते समय नाजिल फसल की नीचे की तरफ से ऊपर की तरफ करके भी छिड़काव करे जिससे पौधे पर फफूँदनाशक अच्छी तरह पड़ जाये।