रेणु के पात्र भीषण बीमारियों से मर सकते हैं लेकिन हार नहीं मानते
रेणु ने साधारण आदमी में विराट का चित्रण किया- अखिलेश
पटना : पटना विश्विद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती के अवसर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘रेणु-राग’ के दूसरे दिन की शुरुआत पटना कॉलेज सेमिनार हॉल में हुई। इस संगोष्ठी में बिहार तथा बाहर के विभिन्न विश्विद्यालयों से जुड़े साहित्यकार, आलोचक व प्रोफ़ेसर शामिल हुए। इसके साथ साथ बड़ी संख्या में पटना विश्विद्यालय के छात्रों के अलावा साहित्य, संस्कृति से जुड़े बुद्धिजीवी, रंगकर्मी सामाजिक कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधि मौजूद थे।
दूसरे दिन की संगोष्ठी का उद्घाटन रेणु के चित्र पर माल्यार्पण करने के साथ हुआ। चौथे सत्र का विषय था ‛हिंदी कहानी : परम्परा, प्रयोग और रेणु’। इस सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकर और तद्भव पत्रिका के संपादक अखिलेश ने की। इस सत्र की चर्चा की शुरुआत करते हुए दिल्ली से आये चर्चित कथाकार संजय कुंदन ने कहा कि फणीश्वर नाथ रेणु ऐसे कथाकार थे, जिन्होंने प्रेमचन्द के ग्रामीण जीवन के सम्पूर्ण वैभव को कथा के संसार में पुनर्स्थापित किया है। वे प्रेमचंद से भिन्न हैं और भिन्न इस मायने में हैं कि उन्होंने कथा लेखन की प्रेमचंदीय शैली को नहीं अपनाया। वे परिवर्तन के हिमायती कथाकार हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में साधारण आदमी के भीतर विराट का चित्रण किया है।
पटना के चर्चित कथाकार संतोष दीक्षित के अनुसार रेणु ने अपनी कथा में एक ऐसे इलाके के गाँवों के जन जीवन को उदभासित किया है जो बेहद पिछड़ा है। इस इलाके के सांस्कृतिक जीवन की संपूर्ण धड़कन को रेणु की कथाओं में सुना जा सकता है। मुज़्ज़फ़रपुर से आये चर्चित कवि डॉ0 राकेश रंजन ने इस सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि रेणु के पात्रों में अदम्य जिजीविषा देखा जा सकता है। उनके पात्र भीषण बीमारियों से मर सकते हैं लेकिन हार नहीं मानते।
अध्यक्षीय वक्तव्य में अखिलेश ने कहा कि रेणु देशज आधुनिकता के भाष्यकार थे। वे भी अपनी रचनाओं में अपने समाज की त्रासदी को चित्रित कर रहे थे। लेकिन अपने समकालीनों से भिन्न तरीके से वे इस त्रासदी को चित्रत कर रहे थे। उनकी आधुनिकता में अपने समकालीनों की टूटन और संत्रास की जगह समरसता की भावना थी। समाज के वंचित तबके के प्रति उनका समर्थन था। वे जीवन के उल्लास का जब चित्रित करते हैं तो उनका मकसद कभी वंचित समूह की समस्याओं को तिरोहित करना नहीं होता। रेणु प्रेमचंद के यथार्थवादी ढाँचे के विरोधी नहीं थे बल्कि उनकी यथार्थवादी परंपरा को वे दुरुस्त करते हैं।
इस सत्र के अंत में वक्ताओं से प्रश्न किया गया। इस सत्र का संचालन पटना वीमेंस कॉलेज के सहाय प्राध्यापक धनंजय कुमार ने किया और कंचन कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
संगोष्ठी के पाँचवें सत्र के की अध्यक्षता हिंदी के साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त प्रसिद्ध कवि अरुण कमल ने की। इस सत्र के अंतर्गत विभाजित विषय ‛रेणु : विविध रंग’ की शुरुआत करते हुए चर्चित कथाकर अवधेश प्रीत ने कहा कि रेणु समाज के अत्यंत वंचित समूह की लोक संस्कृतियों को अपने रिपोर्ताज का विषय बनाकर राष्ट्रीय फलक पर उभारते हैं। उनके बाढ़ पर की गयी ‛ऋणजल धनजल’ जैसी रिपोर्टिंग की चर्चा खूब होती है। उनके द्वारा बिहार में चले किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग बहुत दिलचस्प है। रेणु को साहित्यिक विधा के रूप में रिपोर्ताज को प्रतिष्ठित करने का श्रेय है।
हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि रेणु ने लोक नृत्य के वैभव को अपनी कथाओं में बहुत सफलता से समेटा है जबकि लेखक के लिए यह काम बहुत मुश्किल है। उन्होंने कथा लोक को लोक संगीत की संवेदना से भर दिया है। उनका लिखा रिपोर्ताज बहुत सजीव है। वे मूलतः एक्टिविस्ट लेखक हैं।
इस सत्र के विभाजित विषय ‛ रेणु और हिंदी सिनेमा’ में फ़िल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने कहा कि रेणु की कहानी ‛तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम’ पर बनी फ़िल्म ‛तीसरी कसम’ देखने लायक फ़िल्म है। इस फ़िल्म में रेणु की समस्त रचनात्मक विशेषताओं को शामिल किया गया है। उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‛मैला आँचल’ पर धारावाहिक भी बनी है।
इस सत्र के अध्यक्षीय भाषण में रेणु के संस्मरण से अपनी बातों की शुरआत करते हुए अरुण कमल ने कहा कि रेणु ने अपने एक रिपोर्ताज में लिखा है कि अरे आलोक तुम ! ये आलोक कवि आलोकधन्वा हैं। हममें रेणु के सबसे करीबी रहे हैं कवि आलोकधन्वा और रामवचन राय। अरुण कमल ने आगे कहा कि रेणु के कथेतर गद्य अयस्क हैं। उनके पास काफी स्मृतियां थीं। उनकी स्मृतियां काल के अहंकार को ध्वस्त करती हैं। रेणु अकेले आँचलिक कथाकर नहीं हैं। दुनिया के समस्त कथाकर, कलाएँ, साहित्य आँचलिक हैं। रेणु की कहानियां जीवन के गहरे रागों से लैश हैं। ये मनुष्य को कभी मरने नहीं देतीं। रेणु इसलिए बड़े लेखक थे कि उनमें धन और सत्ता के प्रति हिकारत की भावना थी। रेणु की कहानियों पर फिल्में नहीं बनायी जा सकतीं क्योंकि ये कहानियां भाषा के लिए रची गयी थीं, फ़िल्म बनाने के लिए नहीं लिखी गयी थीं।”
सत्र के अंत में वक्ताओं से प्रश्न भी किया गया। इस सत्र का संचालन शिप्रा प्रभा ने किया। अंत में वाणिज्य महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ0 चंदन कुमार ने किया।
संगोष्ठी के छठे सत्र का का विषय था ‛सुनो कहानी रेणु की।’ इस सत्र में रेणु की तीन कहानियों का अत्यंत रोचक पाठ किया गया। पटना के सुप्रसिद्ध रंगकर्मी एवं टीपीएस कॉलेज में हिंदी के प्रोफ़ेसर डॉ. जावेद अख्तर खां ने रेणु की प्रसिद्ध कहानी ‛एक आदिम रात्रि की महक’, रंगकर्मी मोना झा ने ‛संवदिया’ तथा दिल्ली की प्रसिद्ध कथानटी सुमन केशरी ने ‛रसप्रिया’ कहानी का पाठ किया। सुमन केशरी ने अद्भुत कहानी पाठ किया। कथानटी के कहानी पाठ ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
आज के तीनों सत्रों में भी श्रोताओं की उत्साहवर्द्धक उपस्थिति रही। इस सत्र का संचालन पटना विश्वविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. तरुण कुमार ने किया। अंत में प्रो. कुमार ने वक्ताओं, अतिथियों, विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, कर्मचारियों, छात्र-छात्राओं को इस सार्थक आयोजन को सफल बनाने में अप्रतिम सहयोग के लिए धन्यवाद दिया और संगोष्ठी के समापन की घोषणा की।
आज के कार्यक्रम में मौजूद लोगों में प्रमुख थे पटना कॉलेज के प्राचार्य प्रो. रघुनंदन शर्मा, डॉ. कुमारी विभा, सुप्रसिद्ध कवि आलोकधन्वा, प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. विनय कुमार, गजेन्द्र कांत शर्मा, जयप्रकाश, राजकुमार शाही, ग़ालिब, सुनील सिंह, डॉ. बेबी कुमारी, प्रो. वीरेंद्र झा,गोपाल शर्मा, डॉ. दिलीप राम, योगेश प्रताप शेखर, संजीश शर्मा, डॉ. सुलोचना, डॉ. चुन्नन कुमारी, उज्ज्वल कान्त, सुशांत कुमार, उचित कुमार यादव आदि।