हमारी पीढ़ी को रेणु का साहित्य बचायेगा- विजय कुमार चौधरी

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‘जूता पहनकर देखना चाहिए कि जूता काटता कहाँ है’

पटना : फणीश्वरनाथ रेणु का जन्मशती वर्ष पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग द्वारा मनाया जा रहा है। पटना महाविद्यालय के सेमीनार हॉल में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में उद्घाटन सत्र समेत कुल छह सत्र होंगें, जिनमें रेणु-साहित्य के विभिन्न पक्षों पर विचार-विमर्श होगा। संगोष्ठी का उद्घाटन बिहार के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने किया।

विषय प्रवेश कराते हुए हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो तरुण कुमार ने कहा कि रेणु बिहार से हिन्दी के अप्रतिम-अनूठे कथाकार हैं। उन्होंने अपनी कृतियों के द्वारा विश्व-मंच पर बिहार का मुख उज्ज्वल किया है। ऐसे गौरवशाली लेखक का उनके जन्म के सौ साल पूरे होने पर सारस्वत स्मरण किया जाना अत्यावश्यक है। स्वागत करते हुए पटना कॉलेज के प्राचार्य प्रो0 रघुनंदन शर्मा ने कहा कि पटना कॉलेज के छात्रों को अपने अतीत के साथ जुड़ाव रखना चाहिये क्योंकि बिहार में जो श्रेष्ठ उसके निर्माण में पटना कॉलेज की अहम भूमिका रही है। वहीं, पीयू के कुलपति ने कहा कि रेणु के जन्मशती पर एक बड़े आयोजन की जरूरत थी, हिंदी विभाग इसे पूरा किया। रेणु इतने बड़े लेखक थे कि उनकी कहानियों को आज की पीढ़ी भी बहुत चाव से पढ़ती है।

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उद्घाटन भाषण की शुरुआत बिहार के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने अपने पटना कॉलेज के अपने छात्र जीवन की स्मृति से की और रेणु होने अर्थ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रेणु होने का अर्थ अपनी जमीन से जुड़ाव होना है। आपका पाँव हमेशा जमीन पर होना चाहिए। जमीन से जुड़ाव रखते हुए आगे दो से तीन दशक तक का सोचना चाहिए।

हमारी पीढ़ी को रेणु का साहित्य बचायेगा

मंत्री चौधरी ने रेणु के 1972 में निर्दलीय चुनाव लड़ने का उदहारण देते हुए कहा कि वे अपने सामाजिक राजनीतिक अनुभवों को व्यवहार में सीखने के हिमायती थे। रेणु जी का ही कथन है कि जूता पहनकर देखना चाहिए कि जूता काटता कहाँ है। रेणु ने अपने इस कथन की आजमाइश की थी। वे लेखन से लेकर राजनीति तक में स्वयं अनुभव हासिल किया था। हम चले जायेंगे लेकिन रेणु का साहित्य बचा रहेगा। रेणु के साहित्य को बचाना हमारी पीढ़ी की जिम्मेदारी है और हमारी पीढ़ी को रेणु का साहित्य बचायेगा।

रेणु होने का अर्थ है जोखिम लेना

विशिष्ट अतिथि के रूप में पटना विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष व निवर्तमान विधान पार्षद रामवचन राय ने रेणु होने के अर्थ को समझाते हुए कहा कि रेणु ऐसे लेखक थे जो बोलते कम, लिखते ज्यादा थे। उनका मानना था कि लेखक के सामने अभिव्यक्ति का संकट कभी नहीं होता, लेखक अपनी अभिव्यक्ति का रास्ता तलाश लेता है। रेणु के पास कहानी की बड़ी दुनिया थी, इसलिए उन्होंने कहानी कहने के लिए सबसे पहले उपन्यास लिखना चुना। वे लोकतंत्र की तीन-तीन लड़ाइयां लड़ चुके थे। रेणु होने का अर्थ है जोखिम लेना होता है।

रेणु महत्वपूर्ण और प्रभावी इसलिए हैं कि वे बिना किसी हो-हंगामा के संस्कृति का रेखांकन करते चलते हैं

प्रसिद्ध आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि रेणु उन लेखकों में से हैं, जो जिनकी कहानियां अपने घर लौटने का संदेश देती हैं। वे जीवन भर लेखक रहते हुए एक्टिविस्ट भी रहे। वे चुनाव में भी हिस्सा लेने वाले लेखक थे और जुलूस में भी। आज रेणु होने का अर्थ है कि समाज और लेखन परस्पर विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं। रेणु महत्वपूर्ण और प्रभावी लेखक इसलिए हैं कि वे बिना किसी हो-हंगामा के संस्कृति का रेखांकन करते चलते हैं।

उषा किरण खान ने कहा कि हमारी पीढ़ी की कथाभूमि रेणु की कहानी की ही कथाभूमि है। रेणु के लेखन ने परमपरागत बिम्बों और नायिकाओं की अवधारणाएं बदल कर रख दिया।

रेणु का रूप परिवर्तनकारी

कवि आलोकधन्वा ने कहा कि रेणु जैसा बड़ा लेखक किसी समाज को विरले ही मिलता है। रेणु को हम ऐसे समय में याद कर रहे हैं, जिस समय में संवेदनशील आदमी आंसुओं से भरा हुआ है और रो भी नहीं सकता। रेणु संसदीय लोकतंत्र के अग्रणी प्रहरी थे। उनका लेखन संसदीय लोकतंत्र की रक्षा और उनका जीवन लोकतंत्र को बचाने के संघर्ष में रहा है। रेणु का रूप परिवर्तनकारी रहा है।”

मंच का संचालन प्रो दिलीप राम ने किया। वहीं, धन्यवाद भाषण में पटना कॉलेज हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ0 कुमारी विभा ने कहा कि रेणु के साहित्य पर विचार करने के लिए शिक्षामंत्री, प्रसिद्ध कवि आलोकधन्वा, डॉ0 रामवचन राय, देश के प्रसिद्ध हिंदी के आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल, उषाकिरण खान देश के विभिन्न राज्यों से आने वाले प्रतिभागियों, पटना विश्वविद्यालय के कुलपति, पटना कॉलेज के प्राचार्य प्रो0 रघुनंदन शर्मा, विश्वविद्यलय के शिक्षकों और कर्मचारियों, छात्र-छत्राओं के साथ आयोजन में शामिल समस्त रेणु के अनुरागियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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