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आरसीपी को बिहार से दूर होते ही पीके ने दिखाया जदयू प्रेम, चौंका सकते हैं नीतीश!

चुनावी रणनीतिकार के तौर पर खुद को प्रस्तुत करने वाले जदयू के पूर्व उपाध्यक्ष (अब दल से निष्कासित) प्रशांत किशोर दोबारा मौका मिलने पर बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के सर्वेसर्वा नीतीश कुमार के साथ काम करने की इच्छा जाहिर की है। बहरहाल, यह समझना आवश्यक है कि आखिर प्रशांत किशोर ने दोबारा नीतीश के साथ काम करने की इच्छा क्यों जाहिर की? क्या इसके पीछे की वजह आरसीपी सिंह हैं?

दरअसल, एक टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू में जब प्रशांत किशोर से पूछा गया कि वे दोबारा किस नेता के साथ काम करना चाहेंगे।इस सवाल में प्रशांत किशोर को तीन विकल्प दिए गए थे, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम था। इसके जवाब में प्रशांत किशोर ने कहा कि वे दोबारा नीतीश कुमार के साथ काम करना चाहेंगे।

वहीं, प्रशांत किशोर से जब यह पूछा गया कि आप दोबारा किस नेता के साथ काम करना नहीं चाहेंगे। इस सवाल में विकल्प के तौर पर चार नाम दिए गए थे, जिसमें राहुल गांधी, नीतीश कुमार, कैप्टन अमरिंदर सिंह और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम था। इन चार नामों के आधार पर पीके ने कहा कि वे दोबारा कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ काम नहीं करना चाहेंगे।

जब पीके ने कहा था सीटों का बंटवारा 1:1.4 के आधार पर होगा

दिसंबर 2019 की बात है, जब जदयू नेता प्रशांत किशोर ने आगामी विधानसभा चुनाव यानी 2020 का चुनाव नीतीश कुमार भाजपा के साथ लड़ेंगे, लेकिन कुछ अहम शर्तों के साथ। यह घोषणा नीतीश कुमार की तरफ से आरसीपी सिंह ने नहीं बल्कि चुनावी रणनीतिकार और जदयू नेता प्रशांत किशोर ने की थी। प्रशांत किशोर ने कहा था कि विधानसभा में सीटों का बंटवारा 1:1.4 के आधार पर होगा। यानी भाजपा को एक सीट तो जदयू को डेढ़ गुना से भी ज्यादा सीटें मिलेंगी। मतलब साफ था कि लोकसभा चुनावों की तरह सीटों का बंटवारा नहीं होगा, बल्कि यह 2010 के सीट बंटवारे जैसा ही होगा।

भाजपा की धमकी के बाद जदयू में पनपा था रोष

पीके के इस बयान को लेकर यह कहा जा रहा था कि नीतीश बन्दूक पीके के कंधे पर रखकर चला रहे हैं। पीके के इस एलान के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने पूछा था कि क्या पीके जदयू का शीर्ष नेतृत्व हो गए हैं, जो जदयू के लिए सीटों की संख्या बता रहे हैं? उन्होंने इस बारे में जदयू से जवाब मांगा था। डॉ. जायसवाल ने कहा था कि ‘जदयू बताए कि क्या पीके की बात पार्टी का आधिकारिक बयान है? सीटों का बंटवारा पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व का काम है। अगर पार्टियों का गठबंधन है, तो पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व इकट्ठे बैठकर यह तय करता है। जायसवाल ने कहा था कि जरूरत पड़ी तो भाजपा अकेले भी चुनाव में जाने को तैयार है क्योंकि यह किसी के चेहरे पर नहीं चलती, बल्कि संगठन के आधार पर चलती है।

जायसवाल के बयान के बाद जदयू के अंदर खलबली मच गई, जदयू के एक खेमे में रोष उत्पन्न हो गया था। आरसीपी और ललन सिंह की अगुवाई वाले दूसरे खेमे ने प्रशांत किशोर के इस ऐलान का अंदर ही अंदर विरोध करते हुए संकेत दिया था कि उनके इस कदम से पार्टी दोराहे पर खड़ी हो गई है। महागठबंधन के दरवाजे पहले ही बंद हैं, वहीं यदि एनडीए में भाजपा ने पीके के गणित को नकार दिया तब पार्टी कहीं की नहीं रहेगी।

आरसीपी और प्रशांत किशोर आमने-सामने

इसके अलावा प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह के बीच गहरा मनभेद और मतभेद था। जदयू में आरसीपी सिंह का खेमा प्रशांत किशाेर के बयानों पर आपत्ति जताते हुए कह चुका था कि वे अनुकंपा पर ही पार्टी में हैं। इसके जवाब में प्रशांत किशोर ने आरसीपी के चुनाव लड़ने की योजना को चुनौती देते हुए कहा था कि 15 साल बनाम 15 साल के मुद्दे पर चुनाव लड़ना फायदेमंद नहीं रहेगा। पीके ने कहा था कि पुरानी बातों की चर्चा तो होगी, लेकिन हमें यह बताना पड़ेगा कि अगले 5 साल में हम क्या करेंगे? चुनाव सिर्फ पुरानी बातों पर नहीं लड़ा जाता। हालाँकि, प्रशांत किशोर के निष्कासन के बाद पार्टी 2020 का चुनाव 15 साल बनाम 15 साल के मुद्दे पर मुखरता से लड़ी थी।

मौक़ा देखकर कह दी दिल की बात

वहीं, वर्तमान परिप्रेक्ष्य की बात करें तो जदयू अभी भी गुटबाजी के दौर से गुजर रही है। आरसीपी सिंह दिल्ली की राजनीति कर रहे हैं। नीतीश कुमार और ललन सिंह बिहार में डटे हैं। आरसीपी सिंह को पीएम मोदी के करीब होते देख प्रशांत किशोर ने दिल की इच्छा जगजाहिर कर दी। वैसे भी सांगठनिक रूप से कमजोर होने के कारण नीतीश कुमार चौंकाने वाला भी निर्णय ले सकते हैं!