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केवल अफसरों की बहार है, नीतीशे कुमार हैं!

पटना : बिहार में अफसरशाही चरम पर है। इसके कारण जनता के त्रस्त रहने की खबरें आए दिन आती रहती है। मुख्यमंत्री द्वारा हरेक सप्ताह लगाये जाने वाला जनता दरबार हो या विपक्ष के नेतायों के साथ किया गया व्यवहार हर कोई राज्य में हावी अफसरशाही से हर कोई परेशान है। राज्य में अफसरशाही का रोआब इस कदर बढ़ गया है कि सरकार के मंत्री या विधायक कोई भी इससे बच नहीं पा रहे हैं।

बता दें कि, बीते दिन सिर्फ बिहार विधानसभा में मंत्री की गाड़ी को रोकने के मामलों से ही यह नहीं मालूम चला है कि बिहार में अफसरशाही हावी है बल्कि इससे पहले भी कई अन्य मामले देखा गए हैं कि बिहार के अफसर अपने तरीके से राज्य की कानून व्यवस्था को चला रहे हैं। लेकिन इससे पहले राज्य के कोई भी मंत्री या विधायक सामने से कुछ भी बोलने से कतराते रहते थे। हलांकि कल जब भाजपा के नेता और सरकार के मंत्री ने खुद विस में इसकी शिकायत की तो धीरे-धीरे सभी दलों के नेताओं ने माना कि सही मायने में राज्य में अफसरशाही हावी है।

राजनीतिक जानकारों की माने तो, सरकार में शामिल मंत्री और विधयाकों द्वारा भले सार्वजनिक रूप से कुछ न कहा जाता हो लेकिन ऑफ रिकोर्ड सब मानते हैं राज्य में अफसरशाही हावी है। वे लोग सिर्फ कुर्सी के दबाव के कारण कुछ भी बोलने से कतराते रहते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि राज्य सरकार में कुछ अफसर ऐसे भी हैं जो सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री के आदेशों का ही पालन करते हैं। इक्के दुक्के ही ऐसे कोई सत्ताधारी नेता हैं जिनकी हनक यह अधिकारी मानें।

गौरतलब है कि इससे पहले दिसंबर 2018 की एक घटना के अनुसार जब विपक्षी दल के नेता ने थानेदार से यह कहा था कि उनके थाने में महिला के साथ बदसलूकी की गई है तो जवाब में थानाध्यक्ष ने कहा था हम कोई मंत्री , नेता , विधायक को नहीं मानते हैं मुझे जो उचित लगेगा वही करूंगा।

इसके साथ ही इसी साल जुलाई में सरकार के मंत्री मदन सहनी ने भी अफसरशाही से परेशान होने का आरोप लगाकर इस्तीफे की बात कर दी थी। सहनी के मामले में सरकार की खूब छीछालेदर हुई थी। वहीं, कई ऐसे मामले आए जब सरकार ने मंत्री और विधयाकों ने अपनी शिकायत मुख्यमंत्री से की।

वहीं, लगातार मिल रही ऐसी ही शिकायतों पर संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री की ओर से नवंबर 2021 में अधिकारीयों को निर्देश जारी किया था। सामान्य प्रशासन विभाग ने पत्र जारी कर अधिकारिओं को सांसदों, मंत्रियो और विधायकों से शिष्टाचार से पेश आने का सुझाव दिया था। पत्र में साफ तौर पर कहा गया था कि पत्र में यहाँ तक कहा गया कि जब सांसद और विधायक मिलने आयें तब अधिकारी अपनी जगह से उठकर उनका स्वागत करें।

वहीं, सामान्य प्रशासन विभाग के तरफ से जारी इस पत्र का कोई खास असर अधिकारीयों पर देखने को नहीं मिल रहा है। पत्र जारी होने के एक पखवाड़े बाद ही 2 दिसम्बर को मंत्री जीवेश मिश्रा की गाड़ी रोककर अधिकारियों की गाड़ी निकालने का विवाद हुआ।

बहरहाल, ऐसे में यह सवाल उठने लगा है कि बिहार पुलिस द्वारा कहे जाने वाला वाक्य कि आपकी सेवा में सदैव तत्पर का क्या मतलब रह जाता है क्योंकि जो पुलिस सरकार के मंत्रियों की ही बात नहीं मानती हो वह आम जनता की बात कैसे मानेगी।