पटना : पत्रकारिता में उन्माद, विद्वेष का कोई स्थान नहीं है। पत्रकारिता की भाषा संयम और संस्कार की भाषा होनी चाहिए, जिसमें पत्रकारिता को साहित्य से अपने टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ना होगा। उक्त बातें सोमवार को ‘पत्रकारिता और साहित्य’ विषय पर आयोजित व्यख्यान में भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहीं।
आज की पत्रकारिता की भाषा पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि समाज का विश्वास बनाए रखना आज पत्रकारिता के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि आज सबकुछ संशय के घेरे में है। सच दिखाने के नाम पर जैसी भाषा में जैसी चीजें दिखाई जा रही हैं, वह कई बार किसी सभ्य समाज से बाहर की चीज लगती है। आज जो मीडिया में प्रतिबिंबित हो रहा है, वह क्या भारतीय समाज का सत्य है। इस पर विचार किए जाने की जरूरत है।
प्रो. सुरेश ने कहा कि आज नए सिरे से पाठकों-दर्शकों की सच्ची रुचियों को ध्यान में रखने की जरुरत है और उनके भाषिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों को जनोन्मुख बनाने की जरुरत है। पहले से ही दर्शकों-श्रोताओं की रुचियों को निर्धारित करना सही नहीं है।
इससे पूर्व पटना विवि में हिंदी के विभागाध्यक्ष व स्नातकोत्तर पत्रकारिता विभाग के निदेशक प्रो. तरुण कुमार ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि यह सुखद संयोग है कि भाषा व साहित्य से जुड़े हिंदी विभाग में ही पत्रकारिता विभाग को संलग्न किया गया है। प्रो. कुमार ने आगे कहा कि प्रो. केजी सुरेश माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। वह विश्वविद्यालय जिन माखनलाल जी के नाम पर है, वे स्वयं भी कालजयी पत्रकार एवं साहित्यकार थे।
पटना विश्वविद्यालय के हिंदी एवं पत्रकारिता विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विभागाध्यक्ष प्रो. तरुण कुमार की अध्यक्षता में सोमवार को ‘पत्रकारिता और साहित्य’ विषय पर व्यख्यान का आयोजन किया गया।
मौके पर पटना कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ कुमारी विभा, शिक्षक डॉ मार्तण्ड प्रगल्भ, डॉ पीयूष राज, डॉ गौतम कुमार, प्रशांत रंजन समेत हिंदी व जनसंचार विभाग के स्नातक एवं स्नातकोत्तर के विद्यार्थी उपस्थित थे।