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कन्हैया को लेकर लालू चौकन्ने, ताकि तेजस्वी रहें ‘सुरक्षित’

यह है राजद व कांग्रेस के बीच दूरी का असली कारण

उपचुनाव को लेकर कांग्रेस और राजद में दरार पैदा होती दिख रही है। बीते 12 वर्षों से दोनों दल साथ मिलकर बिहार में राजनीति कर रहे थे, लेकिन एक आयातित नेता के कारण दोनों दलों के रिश्ते में कटुता बढ़ने लगी है। आयातित नेता किसी दूसरे प्रदेश का नहीं बल्कि इसी प्रदेश के महागठबंधन के घटक दल के नेता हैं। यानी बातबात हो रही जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष, कथित देशद्रोही नारों और अपने बयानों से सुर्खियों में रहने वाले कन्हैया कुमार की। कन्हैया के आने के बाद से या यूं कहें कन्हैया के कांग्रेस में जाने की जबसे खबर सामने आई है, इसके बाद से ही राजद और कांग्रेस के बीच स्थिति बिगड़ने लगी है।

लालू को अन्य वामदलों का मौन समर्थन

दरअसल, कन्हैया के भाकपा छोड़कर कांग्रेस में जाने के बाद से ही महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे राजद असहज हो गई है। क्योंकि, कन्हैया की छवि फिलहाल बिहार कांग्रेस में जितने भी नेता हैं उनसे ज्यादा लोकप्रिय है। इसी लोकप्रियता से हताश होकर राजद जल्द ही कांग्रेस को उसका औकात दिखाना चाहती थे। इसी कड़ी में राजद ने कांग्रेस को कॉन्फिडेंस में लिए बगैर उपचुनाव को लेकर अपने दोनों उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। जबकि, कांग्रेस का कहना था कि एक सीट पर मेरा दावा है और दूसरा सीट राजद का है, लेकिन राजद सुप्रीमो ने अन्य वाम दलों को कॉन्फिडेंस में लेकर कॉन्ग्रेस को आईना दिखाते हुए कुशेश्वरस्थान से राजद के उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी।

जानकारी के मुताबिक़ लालू को अन्य वामदलों का मौन समर्थन है। वामदल के नेताओं का कहना है कि अगर महागठबंधन के घटक दल ही अन्य दल के नेता पर डोरे डालने लगे, तो फिर गठबंधन धर्म का कोई मतलब नहीं रह जाता है और यह गठबंधन धर्म के खिलाफ है। लेकिन, मामला कुछ और है।

कन्हैया से सबसे ज्यादा नुकसान राजद और तेजस्वी को

दरअसल, कांग्रेस और राजद के बीच की लड़ाई का सबसे अहम पहलू है कि लालू और राजद के थिंक टैंक टीम का नेतृत्व कर रहे मनोज झा का मानना है कि अगर कन्हैया, तेजस्वी के खिलाफ राजनीति के मैदान में होंगे, तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान राजद और तेजस्वी को है। इसी का नतीजा है कि लालू यादव ने मनोज झा के कहने पर 2019 के चुनाव में बेगूसराय लोकसभा सीट से कन्हैया के खिलाफ अपने दूसरे सबसे बड़े मुसलमान चेहरे तनवीर हसन को चुनावी मैदान में उतारा था।

हाल ही में सूत्रों की माने तो राजद के वरिष्ठ नेता ने कुछ वरिष्ठ पत्रकारों के समक्ष इस बात को स्वीकार किया था कि राजद को यह मानना ही होगा कि कन्हैया भी काफी लोकप्रिय नेता है इसका सबूत हुआ 2019 के आम चुनाव में दे चुका है।

तेजस्वी को स्थापित करने के लिए हर दांव चलने के लिए लालू तैयार

ज्ञातव्य हो कि 2019 के आम चुनाव में भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह को बेगूसराय लोकसभा सीट से 692193 वोट मिले थे। वहीं, कन्हैया कुमार को 269976 वोट जबकि राजद के तनवीर हसन को 198233 वोट मिले थे। हालांकि सीपीआई और राजद के वोटों को जोर भी दिया जाए तो वे गिरिराज सिंह के नजदीक नहीं पहुंचते हैं। फिर भी लालू यादव कहीं ना कहीं यह जरूर समझ रहे हैं कि एक राष्ट्रीय पार्टी और पूर्व में जिसकी जड़ें मजबूत रही हो उस पार्टी में कन्हैया के जाने के बाद वे तेजस्वी के लिए एक चुनौती जरूर बनेंगे। इसलिए लालू भी समझौते की राजनीति न करते हुए तेजस्वी को बिहार की राजनीति में स्थापित करने के लिए हर दांव चलने के लिए तैयार हैं।

इसके बाद 2020 के चुनाव में कांग्रेस तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता इसी शर्त पर तैयार हुई थी कि उसे 70 सीटों पर चुनाव लड़ने दिया जाय। आखिरकार राजद को कांग्रेस की जान मांग मांगनी पड़ी क्योंकि उसे तेजस्वी कौन नेता के तौर पर स्थापित करना था। जब कांग्रेस के पास आज के दौर यानी की सोशल मीडिया के दौड़ का कोई लोकप्रिय नेता नहीं था, तो उस समय कांग्रेस राजद के साथ डील करने में सफल रही, तो अब उसके पास एक लोकप्रिय नेता भी है। इस लिहाज कांग्रेस अब राजद के साथ और अच्छे से सौदा कर सकती है। इसी भविष्य को देखते हुए लालू ने ऐन मौके पर इस तरह का निर्णय लिया है।

इस प्रकरण के बाद यह तय माना जा रहा है कि इस उपचुनाव में कांग्रेस, राजद, लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास व एनडीए सभी एक-दूसरे के विरोधी होंगे।