बिहार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बहुविध गतिविधियों के पर्याय बने श्री कृष्णवल्लभ प्रसाद नारायण सिंह (बबुआ जी) का जन्म 16 सितम्बर, 1914 को नालन्दा जिले के रामी बिगहा ग्राम में रायबहादुर ऐदल सिंह के घर में हुआ था। बाल्यकाल में परिवार के सभी सदस्यों के नालन्दा से गया आ जाने के कारण उनका अधिकांश समय गया में ही बीता।
संघ की स्थापना के बाद डा. हेडगेवार जब बिहार गये, तो वहाँ उनका सम्पर्क बबुआ जी से हुआ। डा. जी की पीठ में बहुत दर्द रहता था। इसीलिए वे राजगीर (राजगृह) गये थे। वहाँ के गर्म झरने में बैठने से इस रोग में आराम मिलता है। उस समय डा. जी की सब प्रकार की चिन्ता और व्यवस्था बबुआ जी ने ही की थी। डा. जी की दृष्टि बहुत पारखी थी। वे समझ गये कि बबुआ जी संघ कार्य के लिए बहुत उपयोगी होंगे। डा0 जी ने उन्हें सर्वप्रथम गया नगर का संघचालक नियुक्त किया। इस प्रकार 24 वर्ष की युवावस्था में वे संघ से जुड़े और फिर जीवन भर काम करते रहे।
बबुआ जी से डा. जी का परिचय हिन्दू महासभा के भागलपुर अधिवेशन में हुआ था। वहाँ डाक्टर हेडगेवार ने उन्हें पुणे और नागपुर के संघ शिक्षा वर्गों को देखने के लिए आमन्त्रित किया। बबुआ जी मुम्बई होते हुए डा. हेडगेवार के साथ नागपुर आये। रेलवे स्टेशन पर डा. जी का स्वागत करने के लिए नागपुर वर्ग के सर्वाधिकारी श्री गुरुजी माला लेकर उपस्थित थे। डा. हेडगेवार ने हँसते हुए कहा कि माला मुझे नहीं इन्हें पहनाइये। इस पर गुरुजी ने बबुआ जी का माला पहनाकर अभिनन्दन किया।
बबुआ जी का सम्पर्क सामाजिक क्षेत्र की सैकड़ों महान हस्तियों से था। पटना स्थित उनके घर पर अनेक ऐसे लोग पधारे थे। उन्होंने आँगन में एक शिलापट पर ऐसे महान् लोगों के नाम लिखे थे, जिनके आने से वह घर पवित्र हुआ। बबुआ जी ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने संघ के पाँच सरसंघचालकों के साथ काम किया। ऐसे सौभाग्यशाली लोग कम ही होते हैं। जब तक उनका शरीर सक्रिय रहा, वे संघ कार्य करते रहे।
अत्यधिक सम्पन्न परिवार के होने के बाद भी बबुआ जी सदा स्वयं को सामान्य स्वयंसेवक ही समझते थे। जब भी कोई संकट का समय आया, उन्होंने आगे बढ़कर उसे अपने सीने पर झेला। वीर सावरकर के कहने पर वे 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय भागलपुर जेल में बन्द रहे। 1948 और 1977 में संघ पर प्रतिबन्ध के समय तथा 1992 में श्री रामजन्मभूमि आन्दोलन के समय भी वे जेल गये। जीवन की चौथी अवस्था में भी उन्होंने जेल का भोजन किया और सबके साथ जमीन पर ही सोये।
बबुआ जी को डा. हेडगेवार ने संघचालक नियुक्त किया था। इस प्रकार वे जन्मजात संघचालक थे। नगर संघचालक से लेकर क्षेत्र संघचालक और अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य तक के दायित्व उन्होंने निभाये। जब शरीर थकने लगा, तो उन्होंने संघ के वरिष्ठ अधिकारियों से निवेदन किया कि अब उन्हें दायित्व से मुक्त किया जाये, वे सामान्य स्वयंसेवक की तरह भी कुछ समय रहना चाहते हैं। उनकी इच्छा का सम्मान किया गया।
18 दिसम्बर, 2007 को 93 वर्ष की सुदीर्घ आयु में उनका देहान्त हुआ। उनकी इच्छानुसार उनका अन्तिम संस्कार अधिकांश समय तक उनके कार्यक्षेत्र रहे गया नगर में ही किया गया।