पटना : आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बनने के बाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर कुछ नामों की चर्चा शुरू है। क्योंकि पार्टी में एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत की चर्चा तेज है। इसलिए अब आरसीपी राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रह सकते हैं। सवाल यह है कि आरसीपी के बाद जदयू के टेक्निकल सर्वे सर्वा कौन होंगे। चर्चाओं की मानें तो इस सूची में सबसे आगे हैं केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं बनाने वाले जदयू के वरिष्ठ नेता व मुंगेर से लोकसभा सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह।
ललन सिंह का नाम इसलिए चल रहा है, क्योंकि वे नीतीश कुमार के सबसे पुराने सहयोगी हैं। मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार में उनको शामिल होना तय माना जा रहा था। लेकिन, लोजपा प्रकरण और सांकेतिक भागीदारी के कारण ललन सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। इसको लेकर ललन सिंह नाराज भी हो गए हैं, उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए नीतीश कुमार ललन सिंह पर भरोसा कर सकते हैं और उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बना सकते हैं।
वहीं, ललन सिंह की मजबूत दावेदारी को लेकर दूसरा कारण यह है कि ललन सिंह भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं। जबकि नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह दोनों एक ही जाति से हैं। इसके अलावा जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा और जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, दोनों एक जाति से आते हैं। इस अनुसार जदयू में अहम पदों पर कुर्मी व कुशवाहा का कब्जा है। लव और कुश के सहारे जदयू अपनी आगे की राजनीति नहीं करना चाहती है, इस समीकरण से बाहर निकलते हुए नीतीश कुमार आरसीपी सिंह की रजामंदी से ललन सिंह के हाथों में जदयू का कमान सौंप सकते हैं।
ऐसा होने से जदयू एक बार फिर कुर्मी और कुशवाहा से ऊपर उठकर सवर्णों को भी साधने का प्रयास करेगी। वैसे भी वशिष्ठ नारायण सिंह के प्रदेश अध्यक्ष हटने के बाद जदयू के ऊपर सवर्ण विरोधी पार्टी होने का आरोप लगना शुरू हो गया है। इन आरोपों को खारिज करने के लिए फिलहाल ललन सिंह उपयुक्त हैं। एक और अहम कारण है कि बीते कुछ महीनों में तोड़फोड़ की राजनीति में ललन सिंह का बड़ा योगदान रहा है। सबसे पहले राजद के कुछ एमएलसी को तोड़ने का मामला हो या फिर लोजपा के सांसदों को चिराग के खिलाफ भड़काने का मामला। दोनों राजनीतिक प्रकरण में ललन सिंह की भूमिका अहम मानी जा रही है। बावजूद इसके ललन सिंह को उचित सम्मान नहीं मिल पाया है, इसलिए वे नाराज चल रहे हैं। उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए नीतीश कुमार ऐसा कर सकते हैं।
अगर, ललन सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो उपेंद्र कुशवाहा को जदयू का राष्ट्रीय महासचिव संगठन या प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। क्योंकि अभी जो जदयू के प्रदेश अध्यक्ष हैं उनका पार्टी के अंदर वह सम्मान हासिल नहीं है, जो हाल ही में जदयू में शामिल हुए उपेंद्र कुशवाहा का है। इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक कद भी उमेश कुशवाहा से कहीं ज्यादा है और यह सर्वमान्य और सर्व विदित है। उपेंद्र कुशवाहा की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल के दिनों में नीतीश कुमार उनकी जमकर तारीफ कर रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार कह रहे हैं कि उपेंद्र भाई के आने से पार्टी बहुत मजबूत हुई है भविष्य में और मजबूत होगी। इसे नीतीश का संकेत भी माना जा रहा है ।
चर्चाओं की माने तो जल्द ही जदयू में व्यापक परिवर्तन देखने को मिल सकता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर ललन सिंह और राष्ट्रीय महासचिव संगठन या प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उपेंद्र कुशवाहा को देखा जा सकता है और दिल्ली की राजनीति आरसीपी के जिम्मे रहेगी।