पटना : विपक्ष समेत सत्तासीन एनडीए के कुछ घटक दल केंद्र सरकार से जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। वहीं, भाजपा सरकार ने सदन में जवाब देते हुए कहा कि केंद्र सरकार जातीय जनगणना नहीं कराने जा रही है। इसके बाद भाजपा को उनके साथी समेत कई विपक्षी दलों के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है।
बहरहाल, भाजपा ने इन आरोपों का काट निकाल लिया है। इसका झलक आज बिहार विधानमंडल में देखने को मिला, जहां भाजपा के विश्वसनीय दलित नेता व विधान परिषद के सदस्य संजय पासवान ने जातीय जनगणना की बदले गरीबी गणना की बात कही। वहीं इनका साथ देते हुए भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर ने भी जातीय जनगणना के बदले गरीबी गणना की बात कही।
जातीय जनगणना को लेकर बिहार के सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष एक सुर में बात कर रहा है, ऐसे में भाजपा ने बिहार से ही जातीय जनगणना के मुद्दे को शांत करने के लिए बिहार के नेताओं को आगे की है।
हालांकि, इस मुद्दे पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने आज मुख्यमंत्री से मुलाकात कर कहा कि वे इस मुद्दे को लेकर पीएम से बात करें और अपनी बात रखें। इस बात की जानकारी देते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री से वार्ता सकारात्मक रही, वे आगामी 2 अगस्त को पीएम से मुलाकात कर जातीय जनगणना पर चर्चा करेंगे।
ज्ञातव्य हो कि जातीय जनगणना को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पहले केंद्र सरकार पर दवाब बनाने के उद्देश्य से सार्वजनिक मंच से कहा था कि हम लोगों का मानना है कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए। बिहार विधान मंडल ने 18 फरवरी 2019 एवं पुनः बिहार विधान सभा ने 27 फरवरी 2020 को सर्वसम्मति से इस आशय का प्रस्ताव पारित किया था तथा इसेे केन्द्र सरकार को भेजा गया था। केन्द्र सरकार को इस मुद्दे पर पुनर्विचार करना चाहिए।
वहीं, जातीय जनगणना को लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा था कि बिहार के दोनों सदनों में BJP जातीय जनगणना का समर्थन करती है, लेकिन संसद में बिहार के ही कठपुतली मात्र पिछड़े वर्ग के राज्यमंत्री से जातीय जनगणना नहीं कराने का एलान करवाती है। केंद्र सरकार OBC की जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती? BJP को पिछड़े/अतिपिछड़े वर्गों से इतनी नफ़रत क्यों है?
उन्होंने कहा था कि जनगणना में जानवरों की गिनती होती है। कुत्ता-बिल्ली, हाथी-घोड़ा, शेर-सियार, साइकिल-स्कूटर सबकी गिनती होती है। कौन किस धर्म का है, उस धर्म की संख्या कितनी है इसकी गिनती होती है, लेकिन उस धर्म में निहित वंचित, उपेक्षित और पिछड़े समूहों की संख्या गिनने में क्या परेशानी है? उनकी गणना के लिए जनगणना किए जाने वाले फ़ॉर्म में महज एक कॉलम जोड़ना है। उसके लिए कोई अतिरिक्त खर्च भी नहीं होना है। अर्थात् सरकार पर कोई वित्तीय बोझ भी नहीं पड़ेगा।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि जब तक पिछड़े वर्गों की वास्तविक संख्या ज्ञात नहीं होगी तो उनके कल्यानार्थ योजनाएँ कैसे बनेगी? उनकी शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बेहतरी कैसे होगी? उनकी संख्या के अनुपात में बजट कैसे आवंटित होगा? वो कौन लोग है जो नहीं चाहते कि देश के संसाधनों में से सबको बराबर का हिस्सा मिले?
लेकिन, अब भाजपा मेडिकल शिक्षा में ओबीसी को आरक्षण देकर एक बड़ा राजनीतिक दांव खेल चुकी है। वहीं, अब जातीय जनगणना के गरीबी गणना की बात कर बड़े वर्ग को साधने के दिशा में कदम बढ़ा रही है।