जाति आधारित जनगणना को लेकर पुनर्विचार करे केंद्र सरकार- सीएम नीतीश
पटना : जातीय जनगणना को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री ने एक बार फिर अपनी राय रखते हुए केंद्र को पुनः विचार करने का आग्रह किया है। जदयू नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि हम लोगों का मानना है कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए। बिहार विधान मंडल ने 18 फरवरी 2019 एवं पुनः बिहार विधान सभा ने 27 फरवरी 2020 को सर्वसम्मति से इस आशय का प्रस्ताव पारित किया था तथा इसेे केन्द्र सरकार को भेजा गया था। केन्द्र सरकार को इस मुद्दे पर पुनर्विचार करना चाहिए।
विदित हो कि जातीय जनगणना को लेकर एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि केंद्र सरकार जातीय जनगणना नहीं कराने जा रही है। इसके बाद से ही सहयोगी समेत अन्य कई विपक्षी दल मुखर होकर भाजपा से जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं।
ज्ञातव्य हो कि इससे पहले जातीय जनगणना को लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा था कि बिहार के दोनों सदनों में BJP जातीय जनगणना का समर्थन करती है, लेकिन संसद में बिहार के ही कठपुतली मात्र पिछड़े वर्ग के राज्यमंत्री से जातीय जनगणना नहीं कराने का एलान करवाती है। केंद्र सरकार OBC की जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती? BJP को पिछड़े/अतिपिछड़े वर्गों से इतनी नफ़रत क्यों है?
उन्होंने कहा था कि जनगणना में जानवरों की गिनती होती है। कुत्ता-बिल्ली, हाथी-घोड़ा, शेर-सियार, साइकिल-स्कूटर सबकी गिनती होती है। कौन किस धर्म का है, उस धर्म की संख्या कितनी है इसकी गिनती होती है, लेकिन उस धर्म में निहित वंचित, उपेक्षित और पिछड़े समूहों की संख्या गिनने में क्या परेशानी है? उनकी गणना के लिए जनगणना किए जाने वाले फ़ॉर्म में महज एक कॉलम जोड़ना है। उसके लिए कोई अतिरिक्त खर्च भी नहीं होना है। अर्थात् सरकार पर कोई वित्तीय बोझ भी नहीं पड़ेगा।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि जब तक पिछड़े वर्गों की वास्तविक संख्या ज्ञात नहीं होगी तो उनके कल्यानार्थ योजनाएँ कैसे बनेगी? उनकी शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बेहतरी कैसे होगी? उनकी संख्या के अनुपात में बजट कैसे आवंटित होगा? वो कौन लोग है जो नहीं चाहते कि देश के संसाधनों में से सबको बराबर का हिस्सा मिले?