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सरकार द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को अधिकार विहीन बनाने की कवायद- राजद

पटना : राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा कि बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 में संशोधन कर पंचायती राज व्यवस्था को अधिकार विहीन बनाने की कवायद की जा रही है। बिहार में एनडीए की सरकार बनने के बाद बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 के द्वारा बिहार में पंचायती राज व्यवस्था के अधिकारों को पहले हीं काफी सीमित कर दिया गया था। नाममात्र के जो अधिकार बचा हुआ था उसे भी उक्त अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन के द्वारा समाप्त करने की साजिश की जा रही है।

उन्होंने कहा कि 73 वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया है। इस संशोधन के माध्यम से संविधान के 11 वीं अनुसूची में शामिल 29 विषयों को पंचायती राज संस्थाओं के साथ सम्बद्ध कर दिया गया है। उक्त संवैधानिक व्यवस्था के तहत राजद शासनकाल में बिहार पंचायत राज अधिनियम 1993 पारित किया गया और राबडी देवी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में पंचायतों का चुनाव कराया गया और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार 11 वीं अनुसूची में शामिल 29 विषयों को पंचायती राज संस्थाओं के साथ सम्बद्ध कर दिया गया था।

एनडीए की सरकार बनने के बाद बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 पारित कर पंचायतों के अधिकार सीमीत कर दिए गए। संविधान के अनुसूची 11 में शामिल एक भी विषय को पंचायतों को हस्तांतरित करने का कोई राजकिय अधिसूचना जारी नहीं की गई। पंचायतों के अधिकार केवल उन्हीं योजनाओं अथवा कार्यक्रमों तक सिमित कर दिए गए जिन्हें पंचायतों के माध्यम से निष्पादित कराने की वैधानिक अनिवार्यता है।

राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में कल लिए गये निर्णय के अनुसार अब डीडीसी के जगह पर बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी होंगे। जबकि 73वें संविधान संशोधन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिला परिषद का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी जिलाधिकारी के समकक्ष स्तर के पदाधिकारी हीं होंगे। डीडीसी को जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी नहीं रहने का मतलब है जिला के विकास योजनाओं से जिला परिषद की भूमिका से वंचित करना। बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी केवल रोटिन वर्क कर सकते हैं अन्य विभागों के जिला स्तरीय पदाधिकारी से कनीय रहने की वजह से वे प्रभावहीन साबित होंगे।

यही स्थिति प्रखंडों में पंचायत समितियों की होने जा रही है। प्रस्तावित संशोधन के अनुसार अब प्रखंड विकास पदाधिकारी पंचायत समिति के कार्यपालक पदाधिकारी नहीं होंगे। राजद प्रवक्ता ने आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य की यह सरकार संवैधानिक मजबूरी के कारण पंचायतीराज व्यवस्था के अस्तित्व को तो समाप्त नहीं कर सकती पर उसे प्रभावहीन और अधिकार विहीन बना कर केवल संवैधानिक खानापूरी करना चाह रही है।