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माँ, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर जन सामान्य में मातृभाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने सहित देश की सारी व्यवस्थाओं का कामकाज मातृभाषा में हो इसके लिए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के द्वारा देश भर में कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है। इस संदर्भ में जानकारी देते हुए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने बताया कि न्यास पूरे भारत में “माँ, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं” इस ध्येय वाक्य को लेकर कुछ वर्षों से भारतीय भाषाओं पर कार्य कर रहा है।

उन्होंने कहा कि इस दिन के इतिहास पर गौर करें तो पता चलता है कि कैसे 1952 में बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) के हज़ारों छात्रों ने अपनी मातृभाषा बांग्ला को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु आंदोलन किया तब पुलिस की गोलीबारी में कई छात्रों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी।

उन्होंने कहा कि विश्व के किसी भीविकसित देश में प्राथमिक शिक्षा विदेशी भाषा में नहीं दी जाती। लगभग सभी उन्नत व विकसित देशों में वहाँ की शिक्षा, शोधकार्य, शासन-प्रशासन का माध्यम एवं जनभाषा वहाँ की भाषा ही होती है। महात्मा गाँधी, विनोबा भावे, मदन मोहन मालवीय, डॉ. ए पी.जे. अब्दुल कलाम, आदि महापुरुषों और शिक्षाविदों ने भी इसी प्रकार के सुझाव दिये हैं।

विश्व में भाषा से सम्बन्धित यूनेस्को सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय/ राष्ट्रीय संस्थानों के कई अध्ययन हुए हैं, उनका निष्कर्ष भी यही है कि मातृभाषामें शिक्षण व अध्ययन से चिंतन में मौलिकता एवं सृजनात्मकता आती है और विषय को सरलता से ग्रहण किया जाता है। न्यास द्वारा मातृभाषा में शिक्षा के लिए देश भर में अभियान चलाया जा रहा है। यह आनंद का विषय है कि मातृभाषा के इस महत्व को स्वीकार करते हुए भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 में इस बात का समावेश किया है।

मातृभाषा में शिक्षा यह पूर्ण रूप से वैज्ञानिक दृष्टी है। इजराइल जैसे छोटे से देश में मातृभाषा में शिक्षा होने के परिणाम हमारे सामने हैं। इजराइल के नागरिकों ने सर्वाधिक नोबेल पुरस्कार अर्जित किए हैं यह उनकी मातृभाषा में शिक्षा का ही परिणाम है। इस मातृभाषा दिवस पर भी देशभर में न्यास की विभिन्न इकाइयों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास आप सब से निवेदन करता है कि अपने घर, विद्यालय, महाविद्यालय सहित संस्थान एवं विभाग में भी अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित करें।इस दिन एक छोटी सी शुरुआत करते हुए अपने हस्ताक्षर अपनी भाषा में करने से की जा सकती है।

हमारा विश्वास है कि माँ के प्रति आदर, मातृभूमि के प्रति समर्पण और मातृभाषा के प्रति प्रतिबद्धता से ही संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास संभव है। हम में अन्य भाषाओं के प्रति कोई अनादर का भाव नहीं होना चाहिए।आचार्य विनोबा भावे ने कहा था कि मैं विदेश की सभी भाषाओं का सम्मान करता हूँ परन्तु मैं अपने देश में अपनी भाषाओं को अपमानित होते नहीं देख सकता।

अतुल कोठारी ने निवेदन करते हुए कहा कि व्यक्ति से लेकर समाज एवं राष्ट्र का सही दिशा में विकास अपनी भाषा के माध्यम से ही संभव हो सकता है। इस हेतु हम सब को मिलकर अपनी मातृभाषाओं की पुनः प्रस्थापित करने की शुरुआत अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस से करें।