नीतीश कुमार ने भाजपा के सामने मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर दो शर्त रखी थी। पहला यह कि मंत्री आपके ज्यादा होंगे, लेकिन विभाग बराबर अथवा मंत्री तथा विभाग बराबर-बराबर। वहीं, नीतीश ने दूसरी शर्त यह रखी थी कि राज्यपाल कोटे से मनोनीत एमएलसी में सीटें बराबर-बराबर। फिलहाल, जो जानकारी छनकर सामने आ रही है, उस अनुसार एमएलसी को लेकर बातें बन चुकी है।
जदयू के 13 मंत्रियों के पास 21 विभाग
क्योंकि, भाजपा ने नीतीश कुमार की पहली शर्त को मान लिया है। बीते मंगलवार को मंत्रिमंडल विस्तार में 17 नए मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली। इसमें से भाजपा कोटे से 9 तथा जदयू कोटे से 8 को शपथ दिलाई गई थी। संख्याबल के आधार पर कहा जा रहा था कि इस बार अधिक विभाग दिए जायेंगे। लेकिन, होशियार नीतीश कुमार के सामने भाजपा नेतृत्व का सोच बौना साबित हुआ। नीतीश कुमार अपना शर्त मनवाने में सफल रहे और भाजपा कोटे के 16 मंत्रियों के पास 22 विभाग, जबकि जदयू के 13 मंत्रियों के पास 21 विभाग हैं। 21 विभाग में भी से महत्वपूर्ण विभाग जैसे गृह, कार्मिक, शिक्षा, जल संसाधन, ग्रामीण विकास, ग्रामीण कार्य, ऊर्जा व सूचना एवं जनसम्पर्क सभी जदयू के पास ही हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार के साथ यह चर्चा आम है कि सीटें भले ही नीतीश कुमार की पार्टी जदयू की कम हो। लेकिन, बिहार एनडीए के बॉस वही हैं। छोटे भाई की भूमिका में होते हुए भी नीतीश कुमार बिहार में अपना कद बड़े भाई की तरह बरकरार रखा, तो दूसरी तरफ लोजपा को अभी तक एनडीए से दूर रखने में कामयाब हैं।
बड़ी पार्टी बनकर सख्त नहीं हो सकी भाजपा
इसके अलावा हाल ही में नीतीश कुमार दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से मिलकर बिहार की राजनीति में यह संकेत दे दिया कि किसी भी मसले पर बात-चीत के लिए इन तीन नेताओं के अलावा किसी और की आवश्यकता नहीं है। यानी बिहार में भाजपा बड़ी पार्टी बनकर भी नीतीश के समक्ष सख्त नहीं हो सकी।
लेकिन, आज की जो स्थिति है, उस अनुसार भाजपा राजग में सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन, कोई सीएम का चेहरा नहीं है। बिहार भाजपा के लिए निकट भविष्य में चीजें बहुत तेजी से बदलने वालीं हैं। नई सरकार के गठन के बाद और 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले बिहार भाजपा का स्वरूप क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में है।
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