सैकड़ों विशाल नावें, हज़ारों स्नानार्थियों का सैलाब, सीताराम धुन, पर्व का उल्लास और इन सबके बीच अनेक स्थानों से पधारे सन्त-महन्तों का समाज। पुराण-इतिहास की महिमा समेटे सारण-छपरा का चिरांद गाँव मौनी अमावस्या को विशाल तीर्थ के रूप में दिखाई पड़ा। आसपास के ज़िलों से निजी वाहन, बसों और ट्रालियों में भरकर अबला-वृद्ध, नर-नारी मौनी अमावस्या पर्व का स्नान करने बीती शाम से ही यहाँ एकत्र होने लगे थे।
प्रातःकाल से ही यहाँ कुम्भ का दृश्य उपस्थित हो गया। उमड़ती भीड़ की श्रद्धा में इस संगम का महत्त्व स्वयमेव परिभाषित हो रहा था। गंगा-सरयू और सोन का संगम शास्त्र पुराणों की माहात्म्य कथाओं के साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी के मानस में सुन्दर रूपक की छवि में सामने आया है। मानस में कहा गया है कि श्रीराम का पावन चरित्र मानसरोवर से प्रकट सरयू की धारा है, जो अविरल प्रवाहित होती हुई श्रीराम भक्ति की गंगा में मिल जाती है और यह मिली हुई धार आगे चलकर श्रीराम की संग्रामकथा के सोननद में मिल जाती है।
यह सुखद संयोग है कि इन तीनों नदियों के महामिलन से निर्मित पुण्यभूमि चिरांद का गौरव है। संगम के इसी तट पर अवस्थित श्रीरसिकशिरोमणि मन्दिर में चल रहे पाँच दिवसीय धार्मिक आयोजन इस अवसर पर सोने में सुगन्ध जैसा रहा। अयोध्या, मिथिला, चित्रकूट, बक्सर तथा अन्य अनेक स्थानों से पधारे पूज्य सन्तों के सामूहिक स्नान ने इसमें कुम्भ के शाही स्नान की झलक पैदा कर दी।
लक्ष्मणकिलाधीश महान्त मैथिलीरमणशरण जी, अयोध्या से पधारे आचार्य श्री मिथिलेशनन्दिनीशरण जी , गोधरौली के महान्त श्री सीताकांतशरण जी , महान्त जनकदुलारी शरण जी, महान्त अमितकुमारदास जी, महान्त मिथिलाबिहारीशरण समेत अनेक सन्त-महान्त ने भक्त समुदाय के साथ नौकारोहण करके संगम स्नान किया और उसके बाद संगम तट पर ही दही-चूड़ा का भण्डारा सम्पन्न हुआ। आगन्तुक महानुभावों ने इस तीर्थ में स्नान कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुये इसके धार्मिक-ऐतिहासिक पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित होने की अपेक्षा व्यक्त की।