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पुस्तक पर चर्चा: अटल जी के पास मुक्त बाजार के लिए थी दृष्टि

रविवार को बिहार यंग थिंकर्स फोरम (बीवाईटीएफ) ने “वाजपेयी: द इयर्स दैट चेंजेड इंडिया’ नामक पुस्तक पर एक चर्चा का आयोजन किया। चर्चा का आयोजन इस पुस्तक के लेखक शक्ति सिन्हा के अध्य्क्षता में किया गया।

पेंगुइन पब्लिशर्स द्वारा हाल ही में प्रकाशित की गई किताब में वाजपेयी दौर की विस्तृत चर्चा की गयी है। लेखक शक्ति सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी की पृष्ठभूमि देते हुए चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि निम्न मध्यम वर्ग के एक परिवार से आने वाले वाजपेयी, बिना किसी राजनितिक “गॉडफादर” के केवल अपनी राजनितिक सूझ-बूझ, प्रासंगिक चीजों को भांपने की क्षमता, विदेश नीति पर पैनी दृष्टि, कठोर परिश्रम और अपने वक्तृत्व कला के दम पर प्रधानमंत्री पद तक पहुँचने में सफल हुए थे।

उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को एक सहज सुधारक और अर्थशास्त्री के रूप में वर्णित किया। इसके बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री के पास मुक्त बाजार के लिए एक दृष्टि थी, जिसमें नवप्रवर्तकों और निजी खिलाड़ियों के लिए स्वायत्तता में वृद्धि की संभावना थी। जिसमे बुनियादी ढांचा सरकार द्वारा बनाया जाना था और व्यवसाय निजी क्षेत्र द्वारा चलाया जाना था। विभिन्न राजनीतिक दबावों और गठबंधन की बाधाओं के बावजूद दूरसंचार से लेकर बेहतर सड़क अवसंरचना बनाने तक, उन्होंने आम आदमी की सहजता और सामर्थ्य को आगे ले जाना सुनिश्चित किया।

अटल जी के बिहार में योगदान के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि बिहार राज्य को संभालना तब की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के लिए महत्वपूर्ण था परन्तु प्रदेश की लालू-राबड़ी शासन के दौरान जाति और अपराधों की राजनीति ने इसे बहुत कठिन बना दिया था। हालांकि, बाद के वर्षों में बिहार राज्य में महत्वपूर्ण विकासात्मक कार्य और बुनियादी ढाँचे का काम सुगमता से किया गया।

मुद्दों और नीतियों पर अलग विचार रखते थे अटल-आडवाणी

अटल-आडवाणी के आपसी समीकरणों पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि ये दोनों अक्सर मुद्दों और नीतियों पर अपने अलग विचार रखते थे लेकिन अंत में पार्टी द्वारा जो भी तय किया जाता था, उसी पर अपनी सहमति बना कर आगे बढ़ने में विश्वास रखते थे।

पुस्तक के शीर्षक के संबंध में एक सवाल का जवाब देते हुए, उन्होंने उन पांच महत्वपूर्ण कारकों को निर्धारित किया, जिन्होंने पुस्तक के शीर्षक को प्रेरित किया – भारत को परमाणु समतुल्य बनाना, एवं बाद में इसे एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में चित्रित करना, पाकिस्तान के साथ करीबी बढ़ाना, भारत और अमेरिका के कूटनीतिक संबंधों में सहयोगियों के रूप में काम करने की आधार-शिला रखना और कारगिल युद्ध का डट कर सामना करना।

शक्ति सिन्हा ने कहा कि अटल जी के पास विभिन्न राजनीतिक दलों को गठबंधन के सहयोगी के तौर पर मिला कर राष्ट्रीय हित में सामूहिक रूप से कार्य करने की एक अद्भुत क्षमता थी। सरकार एवं विपक्ष संबंधों पर अटल जी के विचारों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि विपक्ष के पास अपनी बात कहने की क्षमता होनी चाहिए, जबकि सरकार के पास अपना रास्ता चुनने का अधिकार होना चाहिए।

संसद में सीटें बढ़ाने को ले बहुत उत्सुक थे अटल

महिलाओं को 30% आरक्षण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि अटल जी मांग को स्वीकार करते हुए संसद में सीटें बढ़ाये जाने के लिए बहुत उत्सुक थे, हालांकि, बड़े पैमाने पर स्वयं के घटक दल तथा अन्य राजनीतिक दलों और नेताओं की अनिच्छा को देखते हुए, ऐसा करने में विफल रहे थे।

इस प्रश्न पर कि अपनी किताब को कलमबद्ध करने के लिए किस सोच ने उनको प्रेरित किया के उत्तर स्वरुप उन्होंने कहा कि प्राथमिक रूप में अटलजी के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद तथा उनके करीबी सहयोगी जैसे जॉर्ज फर्नॅंडेज़, जसवंत सिंह आदि के देहावसान के बाद अटल प्रशासन के कार्यों को आम जनमानस तक पहुँचाना उनका ध्येय रहा।

विपक्षी दलों द्वारा जनादेश को अपमानित करना गलत प्रथा

साथ ही, आज की मोदी सरकार के खिलाफ अटक सरकार जैसा ही सांप्रदायिक और फांसीवादी होने के आरोपों में समानता के चलते भी उन्होंने ये पुस्तक लिखी। उन्होंने कहा कि वर्तमान में विपक्षी दलों का जनादेश को अपमानित करने की आदत एक गलत प्रथा है। उन्होंने आगे कहा कि अकादमिक ईमानदारी, तथ्यात्मक विश्लेषण और बौद्धिक ईमानदारी द्वारा ही दोनों शासनों का अध्ययन और समुचित व्याख्या हो सकती है।

कंधार घटना एक बड़ा संकट था

सिन्हा ने भी पीएमओ में अटलजी के साथ कई दिलचस्प किस्सों और घटनाओं को याद किया। कंधार हवाई जहाज अपहरण के संबंध में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए वो इस बात से सहमत दिखे कि यह एक बड़ा संकट था जिसे उस समय की केंद्र सरकार ने अच्छी तरह से संबोधित नहीं किया था।

शक्ति सिन्हा ने 2004 के चुनावी हार, एनडीए सरकार के कार्यकाल शेष रहते चुनाव में जाने, इराक-युद्ध में भारत की सहभागिता पर अमरीकी दबाव, स्वदेशी और विभिन्न नीतियों के संबंध में उठे प्रश्नों का भी समुचित उत्तर दिया। इस चर्चा में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुरुप्रकाश समेत कई अन्य लोग शामिल थे।