– दरबार हॉल में सीनेट की 44वीं बैठक आयोजित
दरभंगा : संस्कृत एवम संस्कृति के माध्यम से हमारा देश सम्पूर्ण विश्व के चारित्रिक शिक्षा का केंद्र रहा है। वसुधैव कुटुम्बकम के साथ स्वदेशो भुवनत्रयम का उदघोष करने वाले संस्कृत साहित्य की ओर आज सभी आशाभरी नजरों से देख रहा है।
देशद्रोह, अशांति, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, नाड़ी उत्पीड़न समेत अन्य अमानवीय कृत्यों से दूर रखने में इसका साहित्य काफी समर्थ है। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, आचार: परमो धर्म: समेत सैकड़ों संस्कृत वाक्य मानवाधिकार एवम कर्तव्यों की रक्षा के साथ चारित्रिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। बस आवश्यकता है इन आदर्शों से समाज को अवगत कराने के लिए संस्कृत का समावेश प्रारम्भिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में ही हो।यानी बाल्यकाल से ही संस्कृत शिक्षा बेहद जरूरी है।ऐसा कर हम बेशक सामाजिक व मानवीय कुरुतियों से छुटकारा पाने में सफल होंगे।
रविवार को संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में आयोजित सीनेट की 44वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए विद्वान कुलपति डॉ शशिनाथ झा ने अपने अभिभाषण में उक्त सारगर्भित बातें कही। उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत ने बताया कि लगे हाथ कुलपति ने अफसोस जताया कि बावजूद इसके संस्कृत भाषा व साहित्य के प्रति समाज में उदासीनता व्याप्त है जो हमसभी के लिए चिंता का व्यापक सबब बना हुआ है।
जनता चरित्र शिक्षा के बजाय सिर्फ़ व्यावसायिक शिक्षा को महत्व देने में लगी है। समाज मे यह दुर्भावना आम हो गयी है कि संस्कृत मात्र पूजा पाठ की भाषा है और इसमें अर्थोपार्जन की संभावनाएं कम है। आधुनिक विद्या की अपेक्षा इसमे रोजगार के अवसर काफी कम हैं जबकि सच्चाई इससे विल्कुल ही इतर है। हमें समाज को समझाना होगा कि संस्कृत वांगम्य हमेशा सुसमृद्ध व सर्वगुण सम्पन्न है।इसमें आज भी भावाव्यक्ति एवम नवनिर्माण की शक्ति अक्षुण्ण है। संस्कृत साहित्य में वर्तमान विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र, गणित आज भी विशेषज्ञों का मार्गदर्शन करने में समर्थ है।यानी कि संस्कृत में स्वरोजगार की संभावनाएं किसी भी अन्य भाषाओं से अधिक है।
* सम्वर्धन के लिए चल रहा है प्रयास
संस्कृत विश्वविद्यालय के संस्थापक दानवीर महाराजाधिराज डॉ0 सर कामेश्वर सिंह , तत्कालीन मुख्यमंत्री बिहार केशरी डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह एवम तत्कालीन राज्यपाल महान शिक्षाविद डॉ0 जाकिर हुसैन के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कुलपति डॉ0 झा ने देववाणी संस्कृत के विकास व संवर्धन के लिए अपने संकल्पों को दोहराया।
उन्होंने कहा कि इसके लिए वे अपने शिक्षकों व पदाधिकारियों के साथ मिलकर अनेक योजनाओं का निर्माण करने जा रहे हैं। उनका प्रयास है कि संस्कृत साहित्य में वर्तमान तथ्यों को सरल, सुबोध एवम सर्वग्राह्य बनाकर सर्वजनों के लिए उपलब्ध कराएं। उपयोगी ज्ञान विज्ञान की बातों को संकलित कर सरल संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से समाज के समक्ष परोस सकें। साथ ही , पाली, प्राकृत, पँजि प्रबन्ध में प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम तथा हिन्दू अध्ययन में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया गया है।मिथिलाक्षर शिक्षा का भी विशेष पाठ्यक्रम चलाया जाएगा।स्किल डेवलपमेन्ट, रेमिडियल कोचिंग, कौशल विकास, आयुर्वेद फार्मेसी जैसे समयोपयोगी कोर्स पर भी फोकस है।
* छात्रों की संख्या में ह्रास पर चिंता
कुलपति डॉ0 झा ने संस्कृत शिक्षा के प्रति छात्रों की संख्या में हो रहे ह्रास पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि हमारे अधिकांश कालेज सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में है जहां इंटरनेट व कम्प्यूटर की सुविधा कमतर है। इन कालेजों के अधिकांश शिक्षक भी कम्प्यूटर में दक्ष नहीं हैं।ऐसी स्थिति में हमारे छात्रों को शहरों में जाकर साईबर कैफे का सहारा लेकर ऑनलाईन नामांकन व परिक्षावेदन करना पड़ता है।
व्यय व परेशानी के डर से निर्धन व साधनहीन छात्र नामांकन से उदासीन हो चले हैं। कुलपति ने कहा कि उपशास्त्री कालेजों में अमूमन मध्यमा उत्तीर्ण छात्र ही नामांकन लेते हैं। मध्यमा परीक्षा का अकसर विलम्ब से आयोजन होने के कारण छात्रों का नामांकन अपने विश्वविद्यालय में नहीं हो पाता है। लाजिमी है कि इसका सीधा असर यहां के छात्रों की संख्या बल पर पड़ता है।