पटना : बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभागार में आयोजित अमरेन्द्र कुमार की सद्यः प्रकाशित पुस्तक-‘कोरोना कालजयी लघु कहानियां’ का लोकार्पण करते हुए पूर्व उपमुख्यमंत्री व सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि हर आंदोलन की तरह कोरोना काल ने भी कई नए शब्दों को गढ़ा है जो आज के पहले प्रचलन में नहीं थे। कोरोना काल का मुकाबला और लोगों में जागरूकता के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई आसान शब्दावलियों का सहारा लिया जो काफी प्रचलित भी हुआ।
सुशील मोदी ने कहा कि कारोना के प्रारंभिक काल में प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘ जान है तो जहान है, फिर उसके बाद जब हालात थोड़ा संभला तो उन्होंने कहा कि, ‘जान भी, जहान भी।’ आम लोगों को कोरोना के संक्रमण से बचने और उनमें जागरूकता पैदा करने के लिए उन्होंने कहा ‘ दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी। टीका निर्माण पर जब कार्य हो रहा था तो उन्होंने कहा ‘ जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं।’ टीका जब अंतिम परीक्षण के दौर में था उन्होंने कहा कि ‘ दवाई भी, कड़ाई भी।’ कोरोना काल के दौरान लोग घरों में रहे, इसलिए उन्होंने कहा कि ‘घर की लक्ष्मण रेखा’ को पार मत कीजिए।
इसी तरह कोरोना काल में क्वेरेंटाइन, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, पीपी किट, वेंटिलेटर, सेंनिटाइजर, कंटेंमेंट जोन, एंटी बाॅडी टेस्ट, पीसीआर टेस्ट के साथ ही टेलीमेडिसिन, एसिम्टोमेटिक आदि शब्दों का लोक व्यवहार और प्रचलन शुरू हुआ। घरों में बंद लोगों के बीच ‘वर्क फ्राॅम होम’ प्रचलित हुआ। सिनेमा हाॅल जब बंद हुआ तो मनोरंजन के क्षेत्र में ओटीटी प्लेटफाॅर्म का नया अवतार हुआ। अब मास्क तो लोगों के पहनावे का हिस्सा हो गया है।
सुशील कुमार मोदी ने कहा कि सरकार और वैज्ञानिकों की तत्परता से एक वर्ष के अंदर टीका आ चुका है। टीका को लेकर किसी को भी भ्रमित होने की जरूरत नहीं है, सभी टीका लें, मगर प्रधानमंत्री की बात को ध्यान रखें कि दवाई के बावजूद, कड़ाई जरूरी होगी क्योंकि किसी को पता नहीं कि टीके का कितने दिनों तक प्रभाव रहेगा।