– बंद मिल के सेवानिवृत्त कर्मचारियों से मिल की परिसंपत्तियों की ली जानकारी
नवादा : करीब 28 बर्षो से बंद जिले का एक मात्र उद्योग बिहार स्टेट सुगर कारपोरेशन लिमिटेड की इकाई वारिसलीगंज चीनी मिल में क्षेत्र वासियों को रोजगार का अवसर मिलने का असर दिखने लगा है। इस संदर्भ में सरकार के निर्देश पर शुक्रवार की शाम नवादा के जिलाधिकारी यशपाल मीणा जिला प्रखंड के अधिकारियों को साथ ले चीनी मिल परिसर में घूम घूमकर जायजा लिया।
इस दौरान जिला उपविकास आयुक्त विकास बैभव, बीडीओ सत्यनारायण पंडित, सीओ उदय प्रसाद के अलावे मिल की परिसंपत्तियों की सुरक्षा में लगे अस्थाई प्रहरियों तथा मिल के कई सेवानिवृत्त कर्मचारी मौजूद थे। मौके पर जिलाधिकारी ने फैक्ट्री के अंदर की स्थिति का जायजा लेते हुए, मिल का गोदाम, ताला बंद स्टोर रूम, मिल काॅलोनी, पुराने सड़ रहे कीमती वाहनों के अलावे मिल फाॅर्म का गहनता पूर्वक निरीक्षण किया। सेवानिबृत लिपिक जनार्दन प्रसाद सिंह व सरयुग प्रसाद ने मिल की स्थापना काल से अब तक कि स्थिति से डीएम को अबगत कराया ।
कहा गया कि पंजाब का उद्योगपति करमचंद थापर ने 1952 में वारिसलीगंज में मोहनी सुगर मिल की स्थापना की थी जो 1964 में बंद हो गई। 1967 में बिहार कॉपरेटिव सोसाइटी ने बंद पङे मिल को पुनः चालू करवाया । पुनः 23 दिसम्बर 1974 को बिहार सरकार ने अधिगृहित कर बिहार स्टेट चीनी निगम को सौप दिया। जिसे तत्कालीन लालू प्रसाद की सरकार ने घाटा दिखाकर पेराई सत्र 1992-93 में बंद कर दिया । बताया गया कि अप्रैल 2020 में बिहार सरकार के द्वारा बिहार राज्य औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण को सौप दिया है।
सिर्फ बनता रहा चुनावी मुद्दा:-
पिछले 28 सालों से बंद वारिसलीगंज चीनी मिल को लोकसभा व विधानसभा चुनाव में जनप्रतिनिधियों द्वारा मुद्दा बनाकर क्षेत्र वासियों को मिल खुलवाने का सपना दिखाकर सिर्फ वोट बटोरते रहे । वर्तमान सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने 2010 के एक चुनावी सभा के दौरान स्थानीय माफी गढ़ मैदान में उनकी सरकार बनने पर चीनी मिल को चालू करवाने का आश्वाशन दिया था। जबकि देश के प्रधानमंत्री ने 2014 में नवादा के आईटीआई मैदान में आयोजित चुनावी सभा में वारिसलीगंज चीनी मिल की चिमनी से धुंआ निकलने की संभाबना जताया था। लेकिन हर बार क्षेत्र की जनता ठगी गई।और अंततः जिले का एक मात्र उद्योग इतिहास के पन्नो में सिमटने को तैयार हो चुकी है।
क्षेत्र के युवाओं को मिलेगा रोजगार का अवसर:-
डीएम यशपाल मीणा के द्वारा शुक्रवार को बंद चीनी मिल के निरीक्षण बाद क्षेत्र के युवाओं को रोजगार का अवसर मिलने की संभावना बढ़ गई है। निरीक्षण में आये अधिकारियों के अनुसार सरकार दो विकल्पों पर चर्चा कर रही है। जिसमें मिल को पुनः चालू करवाने या फिर बियाडा के तहत अन्य प्रकार के औद्योगिक संयंत्रों की स्थापना की संभाबना है। इस बात की चर्चा मात्र से क्षेत्र के कुशल प्रशिक्षण प्राप्त युवा व अकुशल मज़दूरों में शीघ्र ही रोजगार मिलने की संभावना से खुशी देखी जा रही है।
पांच जिले के लाखो लोग चीनी मिल से होते थे लाभान्वित:-
वारिसलीगंज चीनी मिल से नवादा जिला के साथ-साथ नालंदा, शेखपुरा ,जमुई और गया जिले के लाखों लोग लाभान्वित थे। अच्छे क्वालिटी का चीनी उत्पादन करने वाला वारिसलीगंज चीनी मिल को गन्ना की कमी न हो इसके लिए रेलवे के माध्यम से जमुई जिला के गिद्धौर और गया जिला के वजीरगंज, नालंदा आदि स्थानों पर गन्ना खरीद केंद्र स्थापित किया गया था। जहा उक्त जिलों के स्थानीय किसान अपने खेतों में उपजाए गए गन्ना लाकर मिल को भेजवाते थे। खरीदे गए गन्ना को रेलवे बैगन से चीनी मिल लाने की व्यवस्था थी। जबकि क्षेत्र के किसान स्वयं के बैलगाड़ी या मिल का कार्यरत वाहन से मिल तक गन्ना पहुंचाया जाता था।
गन्ना खरीद बाद दी गई रसीद होता था किसानो का चेक:-
उद्योगपति करमचंद थापर ने 1952 में राज्य के तत्कालीन मुखिया बिहार केसरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह के कहने पर वारिसलीगंज में चीनी मिल की स्थापना की थी। उस समय गन्ना खरीदने के बाद ऑनस्पॉट किसानों को भुगतान दे दिया जाता था। लेकिन 1974 में चीनी निगम के द्वारा चीनी मिल का अधिग्रहण कर लिए जाने के बाद किसानों के भुगतान में कुछ देर होना शुरू हो गया। गन्ना खरीदने के बाद चीनी मिल के द्वारा दिया गया रसीद को किसान अपनी जरूरत पर बाजार के व्यापारी को रसीद देकर सामानों को आसानी से उपलब्ध करा देते थे। जिस कारण लोगों के पास पैसा नहीं रहने पर भी शादी विवाह, घर बनाना , बच्चों की पढ़ाई आदि कार्य प्रभावित नहीं होती थी।