पटना : केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का देहांत गुरुवार की रात दिल्ली के एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट में 74 वर्ष की आयु में हो गया था। रामविलास पासवान के बारे में कहा जाता है कि यह एक ऐसे नेता थे जिन्होंने अपने संपूर्ण जीवन काल में भारत के 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया था। इनका देश के हर एक प्रधानमंत्री के साथ बहुत ही पारिवारिक संबंध था।
इस बिच रामविलास पासवान के निधन की खबर मिलते ही बिहार के प्रमुख समाजवादियों में अग्रगण्य 89 वर्षीय रामजीवन सिंह बहुत देर तक मौन रह गए। सर्वप्रथम सोशलिस्ट पार्टी से टिकट देकर उन्हें पहली बार चुनाव जितवाने वाले पूर्व सांसद रामजीवन सिंह कहते है रामविलास पासवान में गजब की प्रतिभा थी जिसे उन्होंने प्रयत्न कर निखारा।
पटना में जब उनसे बात हुई तब उन्होंने कहा मुझ से 15 वर्ष छोटा रामविलास चला गया। यह समाचार सुनते ही मेरी आंखों के सामने अचानक अंधेरा जैसा लगने लगा। मेरी स्मृति में वर्ष 1969 का वह दृश्य कौंघने लगा जब मुंगेर जिला सोशलिस्ट पार्टी कार्यालय में मैं पहली बार रामविलास जी से मिला था। छरहरा बदन वाले उस युवक के चेहरे पर आत्मविश्वास था। आंखों में सपने थे। जाड़े का मौसम था। स्नान करने के बाद मैं धूप का आनंद लेने बैठा था। मेरे हाथों में उस समय के पार्टी का अखबार जनता था। तभी देखा सड़क पर से एक कुर्ता पाजामा पहने दुबला पतला लड़का पार्टी ऑफिस की तरफ आ रहा था। मैं अखबार पढ़ता रहा। वह लड़का मेरे सामने पहुंचा और प्रणाम कर खड़ा हो गया। मैंने पूछा किधर आए हैं ।
सर आप चाहेंगे तो मुझे टिकट मिल जाएगा
तो वे कहने लगे जी मेरा नाम रामविलास पासवान है और मैं अलौली क्षेत्र का निवासी हूं और आपसे सोशलिस्ट पार्टी का टिकट मांगने आया हूं। मैंरे कहने पर वे सामने रखे स्टूल पर बैठ गया। बातचीन शुरू हुई तो उन्होंने कहा सर आप चाहेंगे तो मुझे टिकट मिल जाएगा। मैंने कहा आप चुनाव कैसे लड़ेगा। कहां सर ही न व्यवस्था कराएंगे। मैंने कहा -, कितने तक पढ़े लिखे हैं तो कहे कि बीए पास हूं। ठीक हे एक आवेदन टिकट के लिए लिखिए। वह सामने से हटकर आवेदन लिखने लगा।
उस समय मुंगेर जिले में 22 विधानसभा चुनाव क्षेत्र थे। 1967 में कांग्रेस विरोधी गठबंधन के कारण मात्र 2 सीटों पर ही कांग्रेस के उम्मीदवार जीत सके थे। उसी में एक अलौली था। वहां से कांग्रेस के विधायक मिश्री सदा हुआ करते थे। मेरे प्रयास से रामविलास पासवान कों संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का टिकट मिला। उस समय मुझे ऐसा लगा था कि वह युवा बहुत आगे बढ़ेगा। मेरा वह अनुमान सत्य सिद्ध हुआ। वह चुनाव जीत गए। वहां से उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई तो आगे ही बढ़ती चली गयी।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि रामविलासजी का जाना दलितो, पिछड़ों शोषितों की आवाज बंद होने जैसा है। वे दलित अधिकार के हिमायती थे लेकिन सवर्ण विरोधी नहीं थे। किसी व्यक्ति के जाने के बाद उसके मोल का अहसास होता है।