मनरेगा के आर्किटेक्ट, गांव-गांव में पक्की सड़कों की नींव रखने वाले, समाजवादी विचारधारा के कद्दावर नेता और वैचारिक राजनीति की अंतिम कड़ी रघुवंश प्रसाद सिंह सीने में वंशवाद का दंश लिए परम धाम की यात्रा पर निकल पड़े।
जिन्दगी के आखिरी दिनों में वे काफी चर्चे में रहे लेकिन, सही वजहों से नहीं। आम जनमानस रघुवंश बाबू को इस तरह याद करते हैं कि भारत की आत्मा गांव को समझना है तो रघुवंश प्रसाद सिंह के जीवन संघर्ष को देखना और समझना चाहिए। समाजवाद क्या है और समाजवाद को समझना है तो रघुवंश प्रसाद को समझना होगा। बड़े-बड़े शहरों में रहने वाले लोग जो भारत की आत्मा गावों को विकसित करने की आकांक्षा रहते हैं, वे रघुवंश बाबू के जीवन को देखें तो समझ में आएगा कि गावों को समृद्ध करने लिए क्या करना चाहिए।
बिहार का वो नेता जब खेत, खलिहान, पोखर, तालाब में उतरता था तो देखकर ऐसा लगता जैसे यह कोई नेता नहीं गांव का साधारण मजदूर या किसान है। उनकी सादगी के कारण लोग कभी उनको केन्द्रीय मंत्री नहीं समझते थे, लोगों को लगता था कि उनके बीच कोई उनका सहयोगी आ गया है, जो उनके साथ मिलकर काम करेगा।
लेकिन, जिन्दगी के आखिरी दिनों में उन्होंने जो पीड़ा झेली वह अत्यंत दुखदायी रहा। जिसका मुख्य कारण रहा रामा सिंह की एंट्री, तेजप्रताप द्वारा एक लोटा पानी कहा जाना, जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाना, जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में अनदेखी, पार्टी मीटिंग में बेरूखी से पेश आना।
2019 के आम चुनाव में रघुवंश प्रसाद सिंह को हराने के लिए रामा सिंह ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया था। जो एक समय में रघुवंश बाबू के धुर-विरोधी माने जाते थे। राजद उसी रामा सिंह को पार्टी में शामिल कराने को आतुर दिख रही है। इस वजह से रघुवंश प्रसाद काफी नाराज थे।
इसके बाद तेजप्रताप द्वारा रघुवंश प्रसाद सिंह को एक लोटा पानी कहा जाना। दरअसल, तेजप्रताप ने रघुवंश प्रसाद की नाराजगी को लेकर कहा था कि पार्टी समुद्र होता है, उससे एक लोटा पानी निकलने से कुछ नहीं होता है। लेकिन अब यही एक लोटा पानी के कारण समुद्र रुपी राजद सूख सी गई है।
बताया जाता है कि रघुवंश प्रसाद सिंह उस समय से नाराज थे, जब से पार्टी ने उनको तरजीह न देकर जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। रघुवंश बाबू का मानना था कि जिस पार्टी के लिए वे 32 सालों से मेहनत करते रहे, उस पार्टी ने उनके साथ उचित वर्ताव नहीं किया। इतना ही नहीं जगदानंद सिंह के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नए चेहरों को जगह दी जा रही थी तब पार्टी ने रघुवंश बाबू के मिजाज और उनके प्रस्तावों की अनदेखी की। पार्टी जिलाध्यक्ष और जिला पदाधिकारी के चुनाव में जगदानंद सिंह, राजद राज्यसभा सांसद मनोज झा, संजय यादव और आलोक मेहता की खूब चली। इसको लेकर वे काफी नाराज थे।
इसके आलावा यह भी बाते सामने आई थी कि पार्टी जब लोकसभा में शून्य पर सिमट गई थी तो रघुवंश प्रसाद ने कुछ नेताओं पर कार्रवाई का प्रस्ताव रखा था। इसको लेकर राजेद परिवार के एक नेता ने उन्हें चुप रहने की नसीहत दे डाली थी।
और सबसे आखिरी चिठ्ठी में उन्होंने राजनीति में वंशवाद पर कड़ा प्रहार किया जिसपर सियासत तेज हो गई है। उनका कहना था कि जिस पार्टी के बैनर में महापुरूषों की तस्वीर हुआ करती थी, आज उस जगह परिवार के 5 लोगों की तस्वीर होती है।
वैसे भी राजद ने जीते जी रघुवंश बाबू को भुला ही दिया था, हुआ यूँ था कि बीते दिन राजद कार्यालय में मिलन समारोह आयोजित किया था। इसके लिए जो पोस्टर जारी किया था और स्टेज पर लगाया था उस पोस्टर से रघुवश बाबू (ब्रह्म बाबा) गायब थे।
हालांकि, अब सभी जानते हैं कि राजनीति को भी सिद्धांतों के साथ जीने वाले रघुवंश बाबू अब इस दुनिया में नहीं रहे। रघुवंश प्रसाद सिंह सीने में वंशवाद का दंश लिए परम धाम की यात्रा पर निकल पड़े।
ब्रह्म बाबा के निधन को लेकर यह कहा गया कि एक बेहद खरी व आज की राजनीति में भी आख़री आदमी के हित में सोचने वाली दुर्लभ आवाज़ ख़ामोश हो गई! मनरेगा के मस्तिष्क व लोहिया जी-कर्पूरी ठाकुर की जनपक्षधर-वैचारिकी के वास्तविक उत्तराधिकारी रघुवंश बाबू का जाना न केवल बिहार अपितु देश के वंचितों का बड़ा नुक़सान है।