पटना: लोजपा प्रमुख चिराग पासवान 2020 के विधानसभा चुनाव में दबाव की राजनीति को भले नकार दें, पर उनका संकेत भविष्य के चुनाव 2025 पर है। अभी वे 143 सीटों पर अड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा को कितनी मिलनी चाहिए और जद-यू को कितनी? इसी उलझे हुए चुनावी गणितीय सूत्र के बीच वे कम से कम 40 सीटों को लेने में कामयाब हो सकते हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि चिराग दूर की गोटी खेल रहे हैं। थोड़ा खुल कर बात करें तो सत्ता में भागीदारी वे दलितों की कर रहे हैं। पिछड़ी जातियों में अग्रणी यादव तथा कुर्मी 15-15 साल ले गये। जबकि बिहार में दलितों की संख्या अच्छी है और पासवान परिवार पर हार्डकोर बैकवार्ड होने अथवा उसके लम्रदार होने का कभी ठप्पा भी नहीं लगा।
इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि रामविलास पासवान ने अपनी राजनीति तो चमकायी दलितों के नाम पर, लेकिन राजनीति की धुरी उनकी घूमती रही फारवर्डों के बीच। लिहाजा, उस जाति में भी उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। एनडीए सूत्रों ने बताया कि चिराग 40 सीटों पर मान जाएंगे। उनको मनाने की कोशिश चल रही है।
जानकारी यह भी मिली है कि बिहार में उनके दोनों विधायकों की कथित उपेक्षा से भी वे नाराज हैं। उपेक्षा इस मामले में कि दोनों में से किसी एक को भी न तो मंत्री बनाया गया और न ही कोई जिम्मेवार पद दिया गया। उधर, चिराग ने गुप्त बैठक कर करीब 200 कार्यकर्ताओं को बुलाया और 143 की पीठ ठोक दी। बैठक में कड़ा एक्शन लेते चिराग ने यह भी कहा था कि अगर उन्हें बच्चा समझ कर दरकिनार किया गया तो वे सभी सीटों पर अपनी दावेदारी पेश कर देंगे। वैसे, जे पी नडडा के आने के बाद स्थिति नियंत्रण में हो सकता है। जानकारी मिली है कि नडडा चिराग से भी वार्ता करेंगे और चुनाव की रणनीति पर चर्चा करेंगे।