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सृष्टि सुरक्षित होगी तभी मानव जाति सुरक्षित व जीवन सुंदर होगा- मोहन भागवत

समाज को प्रकृति संरक्षण के प्राचीन परंपरा की ओर पुनः उन्मुख करने के लिए हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन तथा पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के बैनर तले आयोजित प्रकृति वंदन कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य मकसद है प्रकृति सरंक्षण। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं इसके तमाम अनुषंगी इकाइयों के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में लगे अन्य संघ-संगठन एवं युवा शामिल हुए हैं।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि पर्यावरण, यह शब्द आजकल बहुत सुनने को मिलता है और बोला भी जाता है और उसका एक दिन मनाने का भी यह तो कार्यक्रम है, वह भी अर्वाचीन है। उसका कारण है कि अभी तक दुनिया में जो जीवन जीने का तरीका था या अभी भी है, बहुत मात्रा में प्रचलित है, वो तरीका पर्यावरण के अनुकूल नहीं है, वो तरीका प्रकृति को जीतकर मनुष्यों को जीना है। और ऐसा हम गत 200-250 साल से जी रहे हैं। जिसका दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं, उसकी भयावहता अब दिख रही है, ऐसे ही चला तो इस सृष्टि में जीवन जीने के लिए हम लोग नहीं रहेंगे। अथवा ये भी हो सकता है कि ये सृष्टि ही नहीं रहेंगी। इसलिए मनुष्य अब विचार करने लगा, तो उसको लगा कि पर्यवारण का संरक्षण होना चाहिए। इसलिए पर्यावरण दिवस मना रहे हैं।

लेकिन भारत में तरीका एकदम भिन्न है। अस्तित्व के सत्य को हमारे पूर्वजों ने उसकी पूर्णता में समझ लिया और तब से उन्होंने ये समझा कि हम भी पूरे प्रकृति के एक अंग हैं। यह परस्पर संबंध सृष्टि का हमसे है, हम उसके अंग हैं, सृष्टि का पोषण हमारा कर्तव्य है। अपनी प्राण धारणा के लिए हम सृष्टि से कुछ लेते हैं, शोषण नहीं करते, सृष्टि का दोहन करते हैं। हमारे यहां यह कहा जाता है कि शाम को पेड़ों को मत छेड़ो, पेड़ सो जाते हैं। पेड़ों में भी जीव है, इस सृष्टि का वो हिस्सा है। जैसे एनीमल किंगडम है, वैसे प्लांट किंगडम है। ये आधुनिक विज्ञान का ज्ञान हमारे पास आने के हजारों वर्ष पहले से हमारे देश का सामान्य अनपढ़ आदमी भी जानता है पेड़ को शाम को छेड़ना नहीं चाहिए।

संघप्रमुख ने कहा कि हमारे यहां नदियों की भी पूजा होती है, पेड़-पौधों, तुलसी की पूजा होती है। हमारे यहां पर्वतों की पूजा-प्रदक्षिणा प्रदर्शणा होती है, हमारे यहां गाय की भी पूजा होती है, सांप की भी पूजा होती है।

भगवत गीता में कहा है, परस्परं भावयंतम, देवों को अच्छा व्यवहार दो, देव भी आपको अच्छा व्यवहार देंगे। परस्पर अच्छे व्यवहार के कारण सृष्टि चलती है, इस प्रकार का अपना जीवन था। लेकिन इस भटके हुए तरीके के प्रभाव में आकर हम उसको भूल गए। इसलिए आज हमको भी पर्यावरण दिन के रूप में इसको मनाकर स्मरण करना पड़ रहा है। वो करना चाहिए, अच्छी बात है। ऐसा स्मरण हर घर में होना चाहिए. ऐसे स्मरण का हमने प्रवर्तित किया हुआ इस साल का 30 अगस्त होगा।

लेकिन हमारे यहां नागपंचमी है, हमारे यहां गोवर्धन पूजा है, हमारे यहां तुलसी विवाह है, इन सारे दिनों को मनाते हुए आज के संदर्भ में उचित ढंग से मनाते हुए, हम सब लोगों को इस संस्कार को अपने पूरे जीवन में पुनर्जीवित और पुनर्संचरित करना है. जिससे नई पीढ़ी भी उसको सीखेगी, उस भाव को सीखेगी। हम भी इस प्रकृति के घटक हैं, हमको प्रकृति से पोषण पाना है, प्रकृति को जीतना नहीं। हमको स्वयं प्रकृति से पोषण पाकर प्रकृति को जिलाते रहना है। इस प्रकार का विचार करके आगे पीढ़ी चलेगी, तब यह, विशेष कर पिछले 300-350 वर्षों में जो खराबी हुई है, उसको आने वाले 100-200 वर्षों में हम पाट जाएंगे। सृष्टि सुरक्षित होगी, मानव जाति सुरक्षित होगी, जीवन सुंदर होगा।

इस दिन को मनाते समय, यह केवल हम कोई मनोरंजन का कार्यक्रम कर रहे हैं, ऐसा भाव न रखते हुए, संपूर्ण सृष्टि के पोषण के लिए, अपने जीवन को सुंदरतापूर्ण बनाने के लिए, सबकी उन्नति के लिए हम ये कार्य कर रहे हैं, ऐसा भाव हमको मन में रखना चाहिए। और आंखें खोलकर इस एक दिन का संदेश साल भर पूरे जीवन में छोटी-छोटी बातों का विचार करते हुए, हमें अपने आचरण में उतारना चाहिए, ऐसा मुझे लगता है।