74वां स्वतंत्रता दिवस: टैगोर के स्वदेश समाज, गांधी के स्वराज और RSS के परम वैभवशाली राष्ट्र मांग रहा विशेष सक्रियता

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आज भारत देश अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। देश के प्रधानमंत्री परम्परा का निर्वाह करते हुए लाल किले से राष्ट्र को सम्बोधित कर चुके हैं, जहाँ अनेक राष्ट्रीय आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को रेखांकित किया गया है। राष्ट्र के सामर्थ्य और साहस पर विश्वास करते हुए सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण, परिमार्जन और उसके उत्कृष्ट रूप के अनुपालन की प्रतिबद्धताएं गम्भीर स्वर में घोषित की गईं हैं।

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राज्य के रूप में भारत की बात करना और उसके आगामी लक्ष्यों, योजनाओं एवं भविष्य के स्वरूप सम्बंधी विमर्शों मे सहभाग करना एक नागरिक के रूप मे हमारे अस्तित्व का महत्वपूर्ण पक्ष हो सकता है किन्तु एक समाज के रूप में अपने देश के उत्कृष्ट चिंतन एवं उसके स्वरूप की धारणाएँ गढ़ना और उसे सहज-सामान्य व्यवहार में प्रकट करना भी हम नागरिकों का ही दायित्व है। आज इस विशेष अवसर पर देश विशेष परिस्थिति में है। आज इसके पास अपनी विशेष परिस्थिति को बताने के लिए विभिन्न बातों में गम्भीर चुनौतियों के साथ कुछ विशिष्ट उपलब्धियाँ हैं।

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हाल के ही काल में देश की प्राप्त उपलब्धियों को बखान करने के लिए आज अनेक लोग खूब मुखर हैं। इन उपलब्धियों में राष्ट्रीय विकास और एकता के मार्ग में विशेष बाधक रहे अनुच्छेद 370 में संशोधन, लैंगिक न्याय और समानता की अवधारणा को साक्षात करने के लिए आवश्यक तीन तलाक के लिए कानून निर्माण, देश के राज्य के रूप में गठित होने के समय से ही अत्यावश्यक रहे नागरिकता कानून में हुए संशोधन और सकुशलता के साथ सभी के हित में उच्चतम न्यायालय द्वार दिया गया राम मंदिर से सम्बंधित उत्तम समाधान मुख्य रूप में गिने और गिनाए जा सकते हैं।

चूंकि देश के वर्तमान में जिस राजनैतिक दल की सरकार है, सर्वोच्च समाधान के रूप में उपलब्ध उक्त उपलब्धियाँ सदैव ही उसके प्रमुख विचारों में ऐजेंडे के रूप में रहीं हैं इसलिये जोर शोर से उनकी चर्चा होना भी स्वाभाविक है। किन्तु अभी भी हमें जागरूकता और विशेष सक्रियता की आवश्यकता है। देश को प्राप्त हुए उक्त समाधान अभी अतिउत्साह का विषय नहीं हैं, क्योंकि चुनौतियां अभी भी शेष है और प्राप्त हो चुके समाधानों से कहीं अधिक जटिल और दुष्कर हैं।

सशक्त देश और समृद्ध समाज के लिए नागरिक के रूप् में हमें अभी बहुत दूर तक की यात्रा करनी शेष है, अतः अभी ‘टिपिंग प्वाईंट’ की बात कहना निश्चय ही शेखी बघारना मात्र है। अभी तक हमारा ‘टिपिंग प्वाईंट’ हमसे कोसों दूर है। हम अभी अपनी समृद्ध दशा से उतना ही दूर हैं जितना कि नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ से हैं। यहां लक्ष्य मात्र ‘सेल्फ रिलायंट भारत’ का ही नहीं है बल्कि इसके समानांतर और भी अनेक उद्देश्य शेष हैं। भारत के युग नायकों के स्वप्न और भारतीय समाज की अवधारणात्मक दशाएँ शेष हैं। अभी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का ‘स्वदेश समाज’ दूर है, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का ‘स्वराज’ दूर है। अभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ‘परम वैभवशाली राष्ट्र’ दूर है। इन दशाओं की प्राप्ति का मार्ग जितना अधिक दुष्कर है उतना ही इन प्राप्तियों को दीर्घकालिक टिकाए रखना चुनौतीपूर्ण है।

अभी सनातन संस्कृति के वाहक के रूप में आदर्श आचरण युक्त व्यक्ति और सर्वपोषणकारी – सर्वसमावेशी भारतीय समाज की सतत और निर्भीक पुनर्यात्रा के स्वर्णिम काल का दिगन्तकारी जयघोष शेष है। “Be the change you want to see” महत्मा गांधी के इस अमर वाक्य को याद रखते हुए इस जयघोष की व्याप्ति की स्थाई प्राप्ति तक हमें अतिउत्साह से हीन हो सहर्ष – चेतन और वीर कदम बढ़ाते रहना होगा।

महेंद्र पांडेय

(लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

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