किसी व्यक्ति विशेष के जीवन काल की अपेक्षा एक राष्ट्र का जीवन हजारों गुना अधिक दीर्घकालिक होता है। किसी भी काल में राष्ट्र की उपस्थिति और उसकी अभिव्यक्ति उस काल विशेष में उपस्थित राष्ट्र के संवाहकों(लोगों) में देखी जाती है। ये लोग साझा जीवन-जगत (लाइफ़ वर्ल्ड) के प्रति संवेदनशीलता से आपसी विश्वास के साथ जुड़े होते हैं। उनका यह विश्वास जीवन के विभिन्न पक्षों और उनके विविध आयामों के विषय में साझे मतों के आधार पर टिका होता है।
इन अनेक विषयों से सम्बंधित साझे मतों का विकास लोगों की अनेक प्रकार की परस्पर सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक-शैक्षणिक और आर्थिक अन्तःक्रियाओं द्वारा होता है। चूकिं इन मतों का निर्माण सामूहिक प्रक्रिया के अंतर्गत घटित होकर सामूहिक प्रतिनिधित्व (कलेक्टिव रिप्रेजेंटेटिव) के रूप् में सभी के समक्ष साझे व्यवहार में उपस्थित होता है, इसिलिए ये मत सामूहिक विश्वास के प्रतीक होते हैं।
सामूहिक प्रतिनिधित्व के तौर पर उपजे ये मत और इनपर साझा विश्वास मात्र व्यवहार की एक निर्देशक विधि ही ना होकर अनेक स्वरूपों से परिलक्षित होते हैं। इन साझा विश्वासों के अनेक स्वरूपों में कुछ व्यवहार विधियाँ, कुछ परम्पराएं, कुछ अनुष्ठान, कुछ सांस्कृतिक प्रतीक, कुछ त्यौहार, रीति रिवाज एवं धार्मिक-आध्यात्मिक क्रियाकलापों की संस्थागत व्यवस्थाएँ पाई जाती है।
दुनिया के अनेक अन्य भूभागों एवं संस्कृतियोँ मे भी राम की उपस्थिति देखी जाती है
भगवान श्री राम भी विश्वासों के इन्हीं विभिन्न स्वरूपों के बीच एक स्वरूप हैं। भगवान राम को किसी भी मजहब – पंथ – सम्प्रदाय विशेष में नहीं बाँधा जा सकता है। भगवान राम सबके हैं। भगवान राम की व्यापक व्याप्ति भारत के कोने कोने में तो है ही साथ ही भारत भूभाग के अतिरिक्त भी दुनिया के अनेक अन्य भूभागों एवं संस्कृतियोँ मे भी राम की उपस्थिति देखी जाती है।
विशिष्ट जीवन दर्शन को किसी भी मजहबी स्वरूप में बांधकर कभी भी स्पष्टतः समझा नहीं जा सकता
इस बीच कुछ भ्रमितजनों द्वारा भगवान श्री राम को लेकर जो सवाल उठाए जाते हैं, वे मुख्यतः भारत राज्य के पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) चरित्र के साथ राम की धार्मिक उपस्थिति के विषय से सम्बंधित होते हैं। ऐसे लोगों को यह समझना आवश्यक है कि भारतीय संस्कृति का चरित्र स्वतंत्रता और बहुलता के संरक्षण की प्रमुखता से ओत प्रोत है। अतः इस व्यापक और विशिष्ट जीवन दर्शन को किसी भी मजहबी स्वरूप में बांधकर कभी भी स्पष्टतः समझा नहीं जा सकता है।
भगवान राम के प्रति निरपेक्षी भाव रखना ही सम्प्रदायिकता है
भारतीय संस्कृति का यह समावेशी और दिव्य चरित्र इसमें अंतर्निहित प्रतीकों, विश्वास प्रणालियों, मूल्यों और इसको जीने वाले आदर्श चरित्रों को आधार बनाकर विद्यमान है। वास्तव में इस संस्कृति और इसके संवाहक आदर्श प्रतीकों को संरक्षित रखकर ही हम सेक्युलर चरित्र वाले हो सकते हैं। भारत राज्य के संदर्श में पंथनिरपेक्ष(सेक्युलरिज्म) का अर्थ सभी विश्वासों, मजहबों, पन्थों, उपासना पद्धतियों के सहअस्तित्व से सम्बंधित है। यहां राज्य का सेक्युलर भाव सभी के साथ समान व्यवहार पर टिका है।
वास्तव मे विभिन्न उपासना विधियों के इस सहअस्तित्वकारी ताल मेल का ही नाम भारतीय संस्कृति है और यह महान संस्कृति भगवान राम जैसे व्यवहारिक आदर्शों के प्रति उपस्थित प्रबल विश्वासों और अनुकरणों पर ही आधारित है। यहाँ एक वास्तविकता यह भी जानना चाहिए कि सेक्युलरिज्म के भ्रांत अनुकरणकर्ता के रूप में इस संस्कृति और इसके प्रमुख प्रतीक भगवान राम के प्रति निरपेक्षी भाव रखना ही सम्प्रदायिकता है। हमें संकीर्णता के इस जहर से सदैव बचना चाहिए और सर्वसमावेशिता की पोषक भारतीय संस्कृति का सम्मान करना चाहिए। वास्तविक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र तभी सिद्ध हो सकेगा।
राम मजहबी देवता ना होकर भारत राष्ट्र के आदर्श चरित्र हैं
कुछ लोगों का भ्रम है कि राम एक हिन्दू देवता हैं और हिन्दू एक मजहब है। ऐसे लोगों को यह स्पष्टतः जानना चाहिए कि “हिन्दू” दुनिया में उपस्थित किसी भी मजहब का नाम नहीं है, बल्कि हिन्दू इस धर्म प्रधान संस्कृति का नाम है, जिसे सनातन काल से भारतवासी जीते आए हैं। “मजहब” धर्म का समानार्थी शब्द नहीं है बल्कि मजहब एक विशिष्ट व्यवस्था का नाम है, जिसका कोई एक संस्थापक होता है, उस संस्थापक के कुछ अनुयायी होते हैं और ये अनुयायी ही अपनी मजहबी पहचान अपने मजहब विशिष्ट से कराते हैं। एक मजहब के लिए इन दो तत्वों के साथ एक और तत्व आवश्यक होता है वह है इसके अनुयायियों की एक आचार संहिता (ग्रंथ)। ये तीन तत्व मिलकर मजहब का निर्माण करते हैं किन्तु धर्म के विषय मे बिल्कुल ही भिन्न बात है। अतः स्पष्ट है कि हिन्दू शब्द धर्म-धर्माचारण का प्रतीक हो सकता है न कि किसी मजहब का। अतः भगवान राम मजहबी देवता ना होकर भारत राष्ट्र के आदर्श चरित्र हैं , सदा – सर्वदा अनुकरणीय नेता हैं। भगवान राम सभी भारतीयों के मन में विराजमान राष्ट्र देवता हैं। भगवान राम की पूजा शुद्ध पंथनिरपेक्ष पूजा है।
भारतीयों के लिए 5 अगस्त 2020 का दिन अत्यंत ही सौभाग्य का दिन
भारतीयों के लिए आज 5 अगस्त 2020 का दिन अत्यंत ही सौभाग्य का दिन है। आज भगवान श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी है, उसके लिए भूमिपूजन किया गया है। यह भूमिपूजन एक शुद्ध पंथनिरपेक्ष धार्मिक राष्ट्र यज्ञ है। आज देशवासियों के लिए उनकी सांस्कृतिक आस्था के मूल एकत्व के तत्व का उत्सव है। यह बाह्य विविधताओं से युक्त आंतरिक एकत्व का पूजन है। यह सम्प्रदायिकता के विसर्जन और सामूहिकता के साक्षात सृजन का हिस्सा है।
किसी भी परिस्थिति में हम राम विहीन राष्ट्र का चिंतन तक नहीं कर सकते
यदि कोई भ्रम बुद्धि वाला भगवान राम को भारत राष्ट्र से भिन्न समझने का प्रयास करता है तो यह निश्चित ही समझा जाना चाहिए कि वह कहीं से भी “राष्ट्र” का विचार नहीं कर रहा है। क्योंकि राम ही राष्ट्र है। यदि हम राम और राष्ट्र को अलग करने की भूल करते हैं तो हमें समझना चाहिए कि हम भारत को मात्र एक भूमि का वीरान टुकड़ा समझकर उसे राष्ट्र की संज्ञा दे रहें हैं क्योंकि भारत की सरस और पोषक भूमि तो पुण्य भूमि है, राम को सांस्कृतिक-ऐतिहासिक चरित्र मानकर उनका अनुकरण करने वाले नागरिकों की मातृभूमि है। अतः किसी भी परिस्थिति में हम राम विहीन राष्ट्र का चिंतन तक नहीं कर सकते हैं।
आंतरिक एकत्व का भाव राम द्वारा ही सार्थक हो सकता है
जब राम ही राष्ट्र है, तब भूमि, जन और संस्कृति भी राममय है। इस यथार्थपरक भाव को स्वीकार करके ही हम यथार्थ राष्ट्र भाव का अनुभव कर सकते हैं और तभी भेदभाव मुक्त सदभाव युक्त समाज की स्थापना का विकास कर सकते हैं। यहां गोस्वामी तुलसीदास जी की उक्ति चरितार्थ होती है – “जड़ चेतन जग जीव जहं, सकल राममय जानि”। यह आंतरिक एकत्व का भाव राम द्वारा ही सार्थक हो सकता है। निश्चित ही आज इसका भौतिक रूप से प्रारम्भ हो चुका है।।
महेंद्र पांडेय
(लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र हैं, ये लेखक के निजी विचार हैं)