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प्रकृति की मदद से पांच दिनों में जुड़ती है टूटी हड्डियां

जंगल की बेल की लेते मदद तीन पुश्तों से देते निःशुल्क सेवा

वीटीआर जंगल के समीप का इलाका अपनी जलवायु से सबको शीतलता प्रदान करता है। जहां असीमित जड़ी बूटियों और प्राकृतिक संपदाओं का भंडार है। इन संपदाओं का गूढ ज्ञान जिसे है वे इसकी मदद से असाध्य रोगों को दूर कर देते हैं।

ठीक ऐसे ही डुमरी गांव के विशुन महतो और उनका परिवार अपने अद्भुत ज्ञान से साल में हजारों टूटी हड्डियां जोड़ देते हैं। इनका जड़ी-बूटियों का ज्ञान इतना गहरा है कि सिर्फ पांच दिन में ही उसे जोड़ देते हैं।

इनकी इन खूबियों से जो वाकिफ है वे अपनी या नजदीकी की जैसे यदि हड्डी टूटती है तो सरपट इधर ही दौड़ पड़ते हैं। वे डॉक्टर के पास नहीं जाते। उसके बदले यहीं पहुंच जाते हैं। आर्थिक रूप से जो कमजोर है। ये उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। तीन पुश्त से इनका परिवार लोगों की सेवा देता है। जो गरीब है उनसे कोई दाम वसूल नहीं करते। फिर सिर्फ पांच दिन में उनकी हड्डियां पहले समान हो जाती है।

विरासत में मिली कला

विशुन महतो के भाई श्रवण महतो कहते हैं कि हमारे बाप दादा भी इसी तरह हड्डियां जोड़ते थे। उनको इस बेल की जानकारी कहां से हासिल हुई, मुझे सही से नहीं पता। इतना जरूर है कि मेरे परिवार का हर सदस्य इससे वाकिफ है। कोई भी इस बेल से टूटी हड्डियों को जोड़ देता है।

बांस कमचियों की लेते मदद

इलाज के लिए आए बैरिया थाना क्षेत्र के सुजीत कुमार सोनखर की कलावती देवी कहती है कि जहां कि आदमी या पशु की जो हड्डियां टूटी रहती है। वे उस जगह को बांस की पतली कमचियों को पतली रस्सी कि मदद से स्थिर कर देते है। इसी में बेल रख देते है। जो धीरे धीरे इसको आसानी से जोड़ देता है।

ड़ॉ चंद्रभूषण, चिकित्सा प्रभारी पदाधिकारी, रामनगर बताते हैं कि हड्डियों के बीच अपने आप प्राकृतिक गुण मौजूद रहता है। जब दो टूटे सिरे एक दूसरे से देर तक सटे रहेंगे। तो वे स्वाभाविक तौर से खुद जुड़ जाते है।