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हृदय की भाषा है 56 देशों में बोली जाने वाली हिंदी

पटना : हिंदी हमारी मातृभाषा है, राजभाषा है, राष्ट्रीय भाषा है। यह विभिन्न भाषा और बोली से बनी हृदय की भाषा है। हृदय से निकलती है और हृदय तक पहुंचती है। उक्त बातें राजभाषा विभाग मंत्रिमंडल सचिवालय के निदेशक इम्तियाज अहमद करीमी ने ‘भारत की बोली एवं भाषा’ स्मारिका विमोचन कार्यक्रम में कहीं।
विश्व संवाद केंद्र सभागार में गुरुवार को आयोजित कार्यक्रम में इम्तियाज अहमद ने हिंदी भाषा के बारे में बताते हुए कहा कि यह मन की भाषा है, वेद की भाषा है। सभी धर्मों के धार्मिक ग्रंथो का अनुवाद हिंदी भाषा में उपलब्ध है। हिंदी की उदारता का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि आज हिंदी 56 देशों में और विश्व के 156 विश्वविद्यालयों में इसकी पढाई की जा रही है।

Imtiaz Ahmed Karimi

इस मौके पर स्मारिका के प्रधान सम्पादक व वरिष्ठ साहित्यकार डा. शत्रुघ्न प्रसाद ने स्मारिका के विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारत में विभिन्न बोलियाँ अस्तित्व में हैं। लेकिन प्रधान भाषा का दर्जा हिंदी को ही प्राप्त है। बिहार का उदाहरण देते हुए बताया कि बिहार में 5 बोलियाँ अस्तित्व में है। बिहार में तो बोलियों को लेकर कहीं कोई तनाव नहीं है। हिंदी भाषा का कभी भी दुसरे भाषा से कोई बैर नहीं रहा है। स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि आजादी की भाषा हिंदी थी। बोलियों को लेकर टकराव आजादी के बाद देखने को मिली है।
विश्व संवाद केंद्र के सम्पादक संजीव कुमार ने विश्व संवाद केंद्र की गतिविधियों की जानकारी देते हुए बताया कि विश्व संवाद केंद्र समय-समय पर महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्मारिका प्रकाशित करते रहती है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2019 को भाषा और बोलियों का वर्ष माना है। विश्व संवाद केंद्र बोली और भाषा के मुद्दे पर आगे और भी प्रकाशन लायेगी।
धन्यवाद ज्ञापन स्मारिका के सलाहकार सम्पादक कुमार दिनेश ने किया। स्मारिका पर विचार रखते हुए उन्होंने बताया कि भाषा और बोलियाँ को लेकर दंगा करने वाले कभी भी भाषा या बोली के पहरेदार नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय बोलियों को लेकर हम भावावेश में हिंदी की विराट क्षितिज में सेंध लगाते हैं। इससे हमें बचना चाहिए।
कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डा. सतीषराज पुष्करणा, भगवती प्रसाद द्विवेदी, प्रो. डा. बी.एन. विश्वकर्मा, मधुरेश नारायण, दरभंगा आकाशवाणी के सुधांशु कुमार, लेख्य- मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव, कवियत्री एकता कुमारी, लेखिका महिमाश्री इत्यादि उपस्थित थे।