24 की लड़ाई में 33 की मांग कैसे पूरा करेगी NDA, जानें क्या हो सकता है फॉर्मूला ?
पटना : बिहार में स्थानीय निकाय में 24 सीटों पर बिहार विधान परिषद का चुनाव होना है। इस चुनाव को लेकर एनडीए के अंदर थोड़ी खटपट शुरू हो गई है। भाजपा ने कहा कि वह 13 सीटों पर चुनाव मैदान में होगी, क्योंकि यह उनकी सीटिंग सीट है। वहीं, इसके बाद एनडीए में शामिल बाकी दलों के लिए मात्र 11 सीट बच रही है। अब इसी को लेकर पहले से भी अधिक घमासान एनडीए के अंदर शुरू हो गई है। क्योंकि बाकी बचे 11 सीट पर न तो जदयू चुनाव चाहती है न ही वह इन सीटों में से कुछ सीट दूसरे सहयोगी दलों को देना चाहती है।
सीट बंटवारे को लेकर की खींचातानी तेज
दरअसल, बिहार में जुलाई में स्थानीय निकाय में 24 सीटों पर बिहार विधान परिषद का चुनाव होना था, लेकिन बढ़ते कोटा संक्रमण के चलते पंचायत चुनाव में विलंब हुआ जिसके कारण विधान परिषद चुनाव में भी देरी हुई लेकिन अब इसको लेकर राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा सभी तैयारी कर ली गई है। वहीं, इस चुनाव को लेकर बिहार के प्रमुख दलों में सीट बंटवारे को लेकर की खींचातानी तेज हो गई है।
सभी की मांग पूरी करने के लिए इतनी सीटों की जरूरत
बिहार की दो प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के बीच विधान परिषद चुनाव को लेकर चल रही सीट शेयरिंग की खींचतान में अब एनडीए में शामिल अन्य सहयोगी दल भी शामिल हो गए। विधान परिषद चुनाव के लिए जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने 2 सीट की मांग की है, वहीं उत्तर प्रदेश चुनाव में अधिक भाव मिलने के बाद मुकेश सहनी की पार्टी बिहार विधान परिषद चुनाव में कम से कम 4 सीट लेने की बात कह रहे हैं।
जबकि वहीं, विधान विधान सभा चुनाव के बाद मोदी कैबिनेट विस्तार के समय लोजपा से अलग हुए पशुपतिनाथ पारस की पार्टी भी बिहार विधान परिषद चुनाव में 2 सीट की मांग कर रही है। जदयू ने स्पष्ट कर दिया है कि वह कम से कम 12 सीट पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में दिलचस्प बात यह है कि यदि भाजपा, जदयू, हम, लोजपा ( पारस गुट) और वीआईपी से तरफ से मांग गई कुल संख्या को जोड़ें तो कुल 33 सीट होती है जबकि चुनाव मात्र 24 सीटों पर होने हैं। ऐसे में एनडीए के अंदर किन्हीं न किन्हीं को तो संतोष करना ही होगा चुनाव लड़ने के लिए।
किसकी कितनी है मांग
वहीं, मसले पर राजनितिक जानकारों की माने तो विधान परिषद चुनाव में भाजपा अपना कद छोटा करना नहीं चाहती है वैसे भी भाजपा विधानसभा चुनाव में भी बिहार में दूसरे स्थान पर रही है, इस लिहाज से वह परसों चुनाव में भी सबसे अधिक सीट चाह रही है। गौर करने वाली बात यह भी है कि वह वर्तमान में कितनी सीटें चाह रही है सब पर पहले से भी उन्हीं के पार्टी के विधान परिषद काबिज हैं। वही बात करें जेडीयू की तो उसके पास 8 से 9 सीट इसके बाबजूद वो 12 सीटों की मांग कर रहा है। इसके अलावा मुकेश सहनी जिन्हें यूपी में भाजपा के तरफ से कोई महत्व नहीं दिया गया वो अब बिहार में अपनी पार्टी और खुद का महत्व बताना इसलिए वह भी 4 सीट की मांग कर रहे हैं इसको लेकर वह कह चुके हैं कि यदि एनडीए में उन्हें भाव नहीं दिया गया तो वह राजद के साथ जाने से परहेज नहीं करेंगे। जबकि बात करें जीतन राम मांझी की तो अभी 2 सीट पर चुनाव लड़ने को अड़े हैं उनका कहना है कि बिहार एनडीए की सरकार उन्हीं के बदौलत टिकी हुई है इस कारण कम से कम उन्हें 2 सीट जरूर मिलनी चाहिए। जबकि लोजपा से अलग हुए पारस का भी विधान परिषद चुनाव में 2 सीट की मांग है।
ये हो सकता है फॉर्मूला
वही, सीट बंटवारे के फार्मूले को देखे तो भाजपा को अपने 13 सीट में से कुछ सीट छोड़नी होगी और उसे एनडीए में शामिल सपने सभी सहयोगी दलों को सीट देनी है तो फिर भाजपा के 13 सीट के फॉर्मूले पर जदयू को समझौता करना होगा, तभी बाकी के 11 सीटों से सभी दल आपसी सहमति से मैदान में आ सकेंगे।
जदयू को नहीं होगा अधिक नुकसान
वैसे भी वर्तमान में जदयू के सेटिंग विधायकों की संख्या 10 से कम है इस लिहाज से वह 8 या 9 सीट पर चुनाव लड़ती है तो उसे अधिक नुकसान नहीं उठाना होगा। बाकी से 4 सीटों में से कम से कम 1 सीट हम को तो 2 सीट सहनी को और 1 सीट पारस को देती है तो मामला शायद कुछ सुलझ जाए। लेकिन इस फार्मूले के लिए जदयू को अपनी 12 सीटों की जिद छोड़नी होगी।
बहरहाल देखना यह है कि, बिहार एनडीए के अंदर उठी घमासान पर रोक कैसे लगती है क्योंकि इस पर बहुत जल्द रोक नहीं लगती है तो फिर चुनाव में इसके प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलेंगे जिसका नुकसान पूरे गठबंधन को उठाना होगा।