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हिंदू को हिंदुत्व की जरूरत नहीं तो फिर किसे? राम मंदिर के बाद क्या है कांग्रेस की नई दुविधा!

नयी दिल्ली : पहले अयोध्या और भगवान राम, तथा अब हिंदू और हिंदुत्व। कांग्रेस पार्टी फिर से एक नई दुविधा में फंसती दिख रही है। अयोध्या पर अनिर्णय वाली मानसिकता ने जहां कांग्रेस को न घर का रखा न घाट का। नतीजतन सबको साधे रखने की दुविधापूर्ण कलाबाजी में पार्टी सत्ता से धड़ाम हो गई। अब सलमान ख़ुर्शीद की नई किताब में हिंदुओं की तुलना ISIS और बोको हरम जैसे आतंकी संगठनों से करने को लेकर कांग्रेस एक बार फिर ‘हिल—डुल’ वाली स्थिति में आ गई है। इस पूरे विवाद में पार्टी अनिर्णय या कुछ नहीं सूझने वाली स्थिति में तब साफ दिखी जब खुर्शीद, चिदंबरम और दिग्विजय के बाद इसके मौजूदा खेवनहार राहुल गांधी ने इंट्री मारी। आइए जानते हैं क्या है कांग्रेस की दुविधा?

विवाद में राहुल की इंट्री पसोपेश में कांग्रेस

सलमान खु​र्शीद की पुस्तक में हिंदुओं और हिंदुत्व पर जिहादी प्रहार का मामला गर्माने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस के एक शिविर को वर्चुअली संबोधित करने के दौरान खुर्शीद की पुस्तक में हिंदुत्व पर की गई टिप्पणी का बचाव करते हुए एक अजीब तर्क दिया। उन्होंने कहा, “हिंदू धर्म और हिंदुत्व में फर्क़ है। अगर फर्क़ नहीं होता तो नाम एक होता। हिंदू को हिंदुत्व की ज़रूरत नहीं होती?” उन्होंने आगे कहा, “क्या हिंदू धर्म किसी सिख या मुस्लिम को मारने का नाम है? लेकिन हिंदुत्व है। मैंने उपनिषद पढ़ा है। उसमें नहीं लिखा है कि किसी बेगुनाह को मार सकते हैं। मैंने नहीं पढ़ा है। लेकिन हिंदुत्व में मैं इसे देख सकता हूँ।”

अल्पसंख्यक वोट के मोह की फांस

दरअसल, राहुल गांधी का प्राब्लम ये है कि राम मंदिर विवाद वाले जमाने की तरह वे भी एक बार फिर कांग्रेस को उसी लाइन पर रखना चाहते हैं जिसमें किसी भी पक्ष का समर्थन पार्टी से दूर न जा सके। इसीलिए वे सलमान ख़ुर्शीद का बचाव भी करना चाहते हैं और हिंदुत्व वाले वोटरों को नाराज भी नहीं करना चाहते। शायद उनकी यही माया इस मामले में कांग्रेस की दुविधा के रूप में दिख रही है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे पार्टी के लिए काफी खतरनाक मानते हैं। उनके अनुसार राम मंदिर मामले के समय तो दांव पर लगाने के लिए कांग्रेस के पास सत्ता थी। लेकिन आज इस सलमान खुर्शीद के हिंदुत्व वाले मुद्दे के समय तो पार्टी के वजूद के सिवा कुछ नहीं है। राजनीतिक टीकाकार आशंका जताते हैं कि कहीं इस बार वोट की माया वाली इस दुविधा में पार्टी का अपना वजूद ही न दांव पर लग जाए।

गांधी परिवार समर्थक और विरोधी गुट

दरअसल इस पूरे मुद्दे पर कांग्रेस के भीतर भी दिलचस्प हालात हैं। कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद ने राहुल गांधी और सलमान समेत तमाम नेताओं के हिंदुत्व वाले विचार और टिप्पणी से ख़ुलकर अपनी असहमति जताई है। उन्होंने हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस या जिहादी इस्लाम से करने को गलत तथा अतिशयोक्ति बताया। कांग्रेस के लिहाज से देखें तो दो बातें काफी अहम हैं।
पहली ये कि ग़ुलाम नबी आज़ाद जम्मू-कश्मीर से आते हैं जो मुस्लिम बहुल इलाका है। पूर्व में वो कांग्रेस के असंतुष्ट गुट G-23 के बागियों में गिने जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ़ सलमान ख़ुर्शीद गांधी परिवार भक्तों के खेमे से ताल्लुक़ रखते हैं।

खुर्शीद और गुलाम नबी का भिन्न नजरिया

दूसरी अहम बात ये कि किताब अयोध्या पर है और ‘हिंदुत्व’ की बात करने वाले दोनों नेता मुसलमान हैं। यही कारण है कि गुलाम नबी आजाद और सलमान खुर्शीद की बातों के विरोधाभास को कांग्रेस की दुविधा से जोड़ा जाने लगा है। शायद इसी दुविधा का ज़िक्र भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी ने भी किया। ईरानी ने कहा कि वो लोग जो चुनाव आते ही मंदिर-मंदिर घूमते हैं, वो कम से कम ये बता दें कि क्या वो वाक़िफ़ हैं कि सलमान खुर्शीद ने हिंदुओं और सिखों के लिए अपने पूर्व के लेखों में क्या कहा था। भाजपा नेत्री ने साफ कहा कि कांग्रेस और उसके नेताओं के जेहन में एक ही विषय चलता रहता है—’हिंदुत्व’। कांग्रेस के तीन बड़े नेता हैं-सलमान ख़ुर्शीद, ग़ुलाम नबी आज़ाद और राहुल गांधी। तीनों की पार्टी एक है, विचारधारा एक है। लेकिन हिंदुत्व के मसले पर विचार अलग क्यों हैं?

याद आयी एंटनी कमेटी की सिफारिश

बहरहाल, ताजा विवाद पर राजनीतिक गलियारे में एक बार फिर कांग्रेस और उसके नेतृत्व के समक्ष एंटनी कमेटी की सिफारिशों को उठाने की बात भी दबे मुंह लोग करने लगे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में हुई हार की समीक्षा के लिए कांग्रेस ने एके एंटनी की अध्यक्षता एक कमेटी गठित की थी। एंटनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ कहा था कि कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह ये थी कि पार्टी ‘मुसलमानों का तुष्टिकरण’ करते हुए दिखी, जिसकी वजह से हिंदुओं का बड़ा तबका पार्टी से नाराज़ दिखा। एंटनी कमेटी की रिपोर्ट का ही असर था कि 2014 की हार के बाद कांग्रेस ‘सॉफ़्ट हिंदुत्व कार्ड’ खेलने की राह पर चलती दिखनी शुरू हुई थी। राहुल गांधी मंदिर—मंदिर घूमने लगे, जनेऊ पहनने लगे आदि।

माया मिली न राम वाले हालात

लेकिन अब इस ताजा विवाद के बाद फिर पार्टी फिर से यू टर्न लेकर अल्पसंख्यक वोट का मोह करती दिख रही है। ऐसे में यदि कांग्रेस के लिए राहुल और उनके नेताओं का यह दांव उल्टा पड़ गया तो वजूद पर संकट खड़ा हो जाएगा। तब कांग्रेस के सामने इसके सिवा कुछ नहीं बचेगा कि दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम। शीघ्र ही इसके नतीजे भी समने आने लगेंगे क्योंकि पूरी बहस अयोध्या से शुरू होकर, हिंदुत्व तक पहुँच गई है। लिहाजा उत्तर प्रदेश चुनाव इससे अछूता कैसे रह सकता है। तभी तो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के जीबी पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफ़ेसर बद्रीनारायण ने एक ऐसा ट्वीट किया है जिसका सार है कि इस मुद्दे का फ़ायदा आने वाले यूपी चुनाव में बीजेपी को होगा।