हिंदी और भोजपुरी संगीत की आत्मा थे चित्रगुप्त

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पटना : बिहार पुरातनकाल से ही बुद्ध और बुद्धिजीवियों की धरती रही है। उन्हीं बुद्धिजीवियों में से एक थे कालजयी संगीतकार चित्रगुप्त। पाटलिपुत्र सिने सोसाइटी द्वारा आज महान संगीतकार चित्रगुप्त श्रीवास्तव की 101वीं जयंती मनाई गई तथा एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

इस संगोष्ठी में अतिथि के रूप में मौजूद फ़िल्म व संगीत समीक्षक धीरेंद्र तिवारी ने बताया कि 60-90 के दशक के नामचीन संगीतकारों में शुमार थे चित्रगुप्त। हाय रे तेरे चंचल नैनवा, चांद जाने कहां खो गया जैसे गीत उनके सिग्नेचर संगीत में स्थापित हैं। गोपालगंज के करनैनी गांव में जन्मे चित्रगुप्त डबल एमए थे, इसके बावजूद बॉम्बे में उन्हें खुद को स्थापित करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी।

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चित्रगुप्त ने भोजपुरी फिल्मों के शुरुआती दौर में संगीत निर्देशन कर उसे स्थापित करने में अहम योगदान दिया। गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो में लाता मंगेशकर एवं उषा मंगेशकर की आवाज़ में पहला गाना ‘गंगा मईया’ प्रचलित गीतों में से एक था। उस दौर में बॉलीवुड के नामचीन संगीत निर्देशकों ने भोजपुरी में संगीत दिए और चित्रगुप्त का अनुकरण किया। इतना ही नहीं, उन्होंने धरती मईया में किशोर कुमार से भी ‘हम तो हो गइनी तोहार’ गीत गवाया।
इस दौरान अनिता राकेश जो चित्रगुप्त के संबंधी हैं, उन्होंने उनके गीतों का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि साहित्य, कला और संगीत तीनों एक साथ ही चलते हैं। इन सब का समन्वय बना कर रखते थे चित्रगुप्त। संगोष्ठि में वीएसके के संपादक संजीव कुमार और पाटलिपुत्र सिने सोसाइटी के संयोजक प्रशांत रंजन भी मौजूद थे।

सत्यम दुबे

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